हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है। देवनागरी लिपि का आविष्कार कई शताब्दियों पहले हुआ था लेकिन हिंदी भाषा में साहित्य रचना की शुरुआत के बारे में इतिहासकारों में ज़रा मतभेद देखने को मिलता है। मोटे तौर पर इसे हिंदी साहित्य का आदिकाल, वीरगाथा काल, वीर रसात्मक काल आदि नामों से जाना जाता है। आज की इस पोस्ट में हम आदिकाल या वीरगाथा काल के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे जिसमें आदिकाल क्या है?, आदिकाल का इतिहास, आदिकाल के कवि आदि पर चर्चा करेंगे।
आदिकाल क्या है? (What is Aadikal in Hindi?) :
हिंदी भाषा के साहित्य का वह शुरूआती समय जब कवि ज़्यादातर किसी ना किसी राजा के राज दरबार में संरक्षण प्राप्त करते थे। उनके द्वारा बनाई गई रचनाओं में वीर रस की प्रमुखता, युद्धों का वर्णन, नायिका या राजकुमारी के अप्रतिम सौंदर्य की विवेचना, शत्रु द्वारा आक्रमण करना आदि साहित्य लेखन के प्रमुख विषय हुआ करते थे। इसी काल को आदिकाल कहा जाता है।
आदिकाल की विशेषताएं क्या है? (What are the Characteristics of Aadikal in Hindi?) :
आदिकाल की विशेषताओं को हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं :
श्रुंगार रस का वर्णन :
- श्रृंगार रस के इस्तमाल के पीछे का कारण यह है कि इस काल में जितनी भी रचनाएं हुई है उनमें नायिकाओं और राजकुमारियों की सुंदरता का वर्णन करने के लिए श्रृंगार रस का इस्तेमाल बहुतायत में किया गया।
- श्रृंगार रस के इस्तेमाल का एक और कारण यह भी है कि इस काल में जितनी भी रचनाएं वीर रस के ऊपर बनाई गयी हैं उसमें कोई न कोई नायिका या राजकुमारी ही युद्ध का प्रमुख कारण होती थी।
- बहादुर और वीर राजा या नायक सुंदर नायिका और राजकुमारी से विवाह करने की हमेशा इच्छा रखते थे। युद्ध में वीर रस के साथ-साथ नायिका के पात्र का चरित्र चित्रण करने के लिए श्रृंगार रस का इस्तेमाल करना अनिवार्य हो गया था।
- इस काल के कवियों को किसी न किसी राजा का आश्रय मिला हुआ था इसलिए यह सामान्य से सामान्य घटना को भी चमत्कार से भरी हुई और अद्भुत बनाने का प्रयास करते रहते थे।
- इस दौरान बनी हुई रचनाओं की प्रमाणिकता पर कई इतिहासकार संदेह करते हैं।
- इस काल की रचनाओं में काल्पनिक विवरणों का बखान सबसे ज़्यादा देखने को मिलता है।
- इस काल की रचना में राष्ट्रीयता की भावना की कमी देखने को मिलती है।
- राजा अपने ही राज्य और इसके इलाकों को बचाने के लिए हमेशा युद्धों में ही तत्पर रहता था।
- इस युग की लगभग सभी प्रमुख रचनाओं में लड़ाई और युद्धों का जिस प्रकार वर्णन हुआ है वह अद्भुत है।
- इसस काल की रचनाओं को पढ़कर यह लगता है कि युद्ध सजीव हो गए हैं।
- इस काल की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि सभी रचनाएं वीर रस को मुख्य केंद्र बना कर लिखी गई है। उत्तर भारत के लगभग सभी बड़े वीर राजाओं के दरबारी कवियों ने उनकी प्रशंसा में अपने ग्रंथ बनाएं हैं।
आदिकाल का इतिहास क्या है? (History of Aadikal in Hindi) :
हिंदी साहित्य के इतिहास के बारे में कई इतिहासकारों का मत अलग-अलग है। हिंदी साहित्य का इतिहास इतिहास की कई सारी घटनाओं, दृष्टिकोणों, परिस्थितियों, सामाजिक परिस्थितियों और ऐतिहासिक स्रोतों से प्रेरित होकर लिखा गया था।
हालांकि हिंदी के साहित्य में लेखन की शुरुआत तो हो चुकी थी लेकिन इतिहासकारों के बीच में इस बात पर मतैक्य नहीं है कि इसका आरंभ हुआ कहां से। हिंदी साहित्य का इतिहास के बारे में पता करने के लिए प्रसिद्ध इतिहासकार जॉर्ज ग्रियर्सन ने 700 से लेकर 1380 ईस्वी के काल को चारण काल का नाम दिया है।
वहीं दूसरी तरफ हिंदी साहित्य के महान विद्वान आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपनी किताब हिंदी साहित्य का इतिहास में बहुत ही सटीक और वैज्ञानिक स्पष्टीकरण दिया है। हिंदी साहित्य के शुरुआती 1000 सालों का इतिहास और उसके प्रमाणिकता पता करने में इतिहासकारों को सबसे ज़्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि इस समय की रचनाओं की प्रामाणिकता संदिग्ध और इतिहास की घटनाओं के अनुसार ज़्यादा मेल नहीं खाती। फिर भी आदिकाल की शुरुआत आठवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी तक माना जाता है।
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आदिकाल का नामकरण (Aadikal ka Namkaran in Hindi) :
आदिकाल का नामकरण मुख्य रूप से इस काल में हुई रचना और उनके साहित्यिक परिवेश, लेखन शैली, कालक्रम, ऐतिहासिक साक्ष्यों, लेखन की प्रमाणिकता आदि मानकों पर किया गया। साहित्य के कई महान विद्वानों ने इसे अलग अलग नाम से पुकारा है। आदिकाल के नामकरण के बारे में प्रसिद्ध मत और इनके प्रणेताओं का विवरण इस प्रकार है –
- आचार्य रामचंद्र शुक्ला ने हिंदी साहित्य के प्रारंभिक काल को आदिकाल के नाम से पहचान दिलाई। उन्होंने इस कालक्रम में रची गई बारह प्रमुख रचनाओं और उनके साहित्य विवेचना के बाद यह नामकरण दिया।
- इस काल की प्रमुख रचनाओं में बीसलदेव रासो, हम्मीर देव रासो, पृथ्वीराज रासो, विजयपाल रासौ और परमाल रासो आदि प्रमुख ग्रंथ है।
- राजकुमार वर्मा ने इस काल को दो हिस्सों में बांटा है। इन्होंने संवत 750 से लगाकर 1000 तक के काल को संधि काल और 1000 से लगाकर 1335 तक के काल को चारण काल का नाम दिया है।
- राहुल सांकृत्यायन ने इस युग को सिद्ध सामंत युग के नाम से पुकारा है। उन्होंने इस काल में प्रचलित नाथ और सिद्ध योगियों के द्वारा बनाए गए साहित्य और सामंती प्रथा के प्रचलन में होने की वजह से यह नामकरण किया।
- लेकिन सबसे ज़्यादा प्रसिद्धि मिली आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी को। इन्होंने इस इस काल को आदिकाल कहा और उनके इस मत को बहुत सारे विद्वानों और इतिहासकारों ने अपना समर्थन दिया।
आदिकाल के कवि (Poet of Aadikal in Hindi) :
आदिकाल के कवियों और उनकी रचनाओं का वर्णन इस प्रकार है-
- महर्षि वाल्मीकि को इस काल के पहले कवि के रूप में जाना जाता है। महर्षि बाल्मीकि ने अपने विश्व प्रसिद्ध ग्रन्थ रामायण को लिखा था।
- पृथ्वीराज रासो के लेखक चंदबरदाई थे।
- सारंगधर ने हमें हम्मीरदेव रासो की रचना की।
- ढोला मारू रा दूहा नामक रचना महाकवि कलोल द्वारा बनाई गई।
- विद्यापति ने कीर्ति लता, कीर्ति पताका और पदावली जैसे ग्रंथों की रचना की। नरपति ने वीर पराक्रमी राजा बीसलदेव के जीवन पर बीसलदेव रासो नामक रचना बनाई।
- खुमान रासो के रचयिता दलपति विजय हैं।
- भट्ट केदारनाथ ने प्रसिद्ध जयचंद्र प्रकाश नामक ग्रंथ की।
- विजयपाल रासो नामक ग्रंथ की रचना नन्ह सिंह ने की। अमीर खुसरो ने खाली बारी और किस्सा चाहा दरवेश नामक ग्रंथों की रचना की।
- नरोत्तम दास ने सुदामा चरित की रचना।
- तुलसीदास ने जानकी मंगल और पार्वती मंगल जैसे ग्रंथों की रचना की।
- एकांत वासी योगी नामक रचना श्रीधर पाठक ने की।
- मैथिली शरण गुप्त ने रंग में भंग, नल दमयंती, शकुंतला, किसान, अनाथ जयद्रथ वध नामक प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की।
आदिकाल की प्रवृत्तियां (Aadikal Ki Pravratiyan in Hindi) :
आदिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियां इस प्रकार हैं-
- इस काल में महान धार्मिक साहित्य लिखा गया।
- इस काल का साहित्य वीर रस से ओतप्रोत और युद्ध के जीवंत वर्णन की वजह से जाना जाता है।
- इस काल की रचनाओं में लगभग सभी प्रकार के अलंकारों का इस्तेमाल कवियों ने अपनी रचनाओं में किया है।
- आदिकाल में मिश्रित भाषाओं का भी इस्तेमाल बहुतायत में देखने को मिलता है।
- इन भाषाओं में मिश्रित खड़ी बोली, मिश्रित मैथिली, मिश्रित राजस्थानी जिसे डिंगल भी कहा जाता है, का इस्तेमाल भी प्रचुर मात्रा में हुआ।
आदिकाल को वीरदाता काल क्यों कहा जाता है?
आदिकाल को वीरदाता काल इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस काल में सबसे ज़्यादा रचनाएं वीर कथात्मक शैली में ही बनाई गईं। इस काल की रचनाओं में वीर रस का इस्तेमाल सबसे ज़्यादा किया गया। वीर रस प्रदान होने की वजह से भी इस काल को वीर रसात्मक काल कहा जाता है।
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