दुनिया की सारी भाषाओं की जननी संस्कृत को कहा जाता है। संस्कृत जिस वक़्त भारत में आम बोलचाल की भाषा हुआ करती थी उस काल को हम Vaidik Kal के नाम से जानते हैं। इस पोस्ट में हम आपके लिये लेकर आये हैं Vaidik Kal से जुड़ी कई सारी रोचक बातें। तो आइए वैदिक काल को इस पोस्ट के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं।
Vaidik Kal से जुड़े साक्ष्यों से पता चलता है कि यह काल बहुत ही उन्नत और परिपक्व था। वेदों को गहराई से पढ़ने पर पता चलता है कि इस काल की सामाजिक बनावट ऋग्वेद के बनने के बाद बदल गयी थी क्योंकि ऋग्वेद और बाद के वेदों में जिन सामाजिक व्यवस्थाओं का ज़िक्र मिलता है वह एक दूसरे से काफ़ी अलग हैं।
इसलिए समझने में आसानी हो, इसके लिए हम वैदिक काल को दो हिस्सों में बांटते हैं:
पहले काल को हम ऋगवैदिक काल के नाम से जानते हैं। और इसके बाद के काल को हम उत्तर वैदिक काल कहते हैं।
इस पोस्ट में हम ऋगवैदिक काल को विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे।
ऋगवैदिक काल की शुरुवात कब हुई? (When did the Purv Vaidik Kal Begin in Hindi?)
भारत में Purv Vaidik Kal की शुरुआत बारह सौ ईसा पूर्व से हुई थी जो छह सौ ईसा पूर्व तक चली। उन्नीसवीं सदी तक लोग यही मानते थे कि आर्य कोई एक वंश था जो कई सालों पहले भारत आया था। लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह साबित हो चुका है कि आर्य किसी वंश का नाम नहीं था। आर्य उन लोगों को कहा गया जो भारत में आकर सप्त सैन्धव नामक जगह पर आकर बस गए थे। यही सप्त सैन्धव आज पंजाब का इलाका कहलाता है।
ऋग्वेदिक काल को ही Purv Vaidik Kal के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि इसमें समझने वाली बात यह है कि भारत में सिंधु घाटी सभ्यता जिसे हम सिंधु सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानते हैं, तो इतनी उन्नत और सुव्यवस्थित सभ्यता जब अपने अंतिम चरण में लगभग समाप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी थी तो Purv Vaidik तकनीकी रूप से वह समय है जहाँ ताम्र युग का आखिरी समय और लौह युग के शुरुआत का समय है। अब वैदिक सभ्यता के बारे में विस्तार से जानते हैं
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वैदिक काल में राजनैतिक स्थिति (Political Situation in the Vaidik Kal in Hindi) :
Vaidik Kal की शुरुआत में आर्यों के इलाके मूलतः गांव की बसावट तक ही सीमित थे। अगर आर्यों को कबीलाई लोग कहें तो कोई दो राय नहीं है। कबिलों के मुखिया को राजन के नाम से जाना जाता था। जब राजन लोगों ने अपनी मनमानी करना शुरू कर दिया तो आर्यों ने ईसका हल निकालने के लिए एक ऐसी इकाई या संस्था बनाने का विचार किया जो इन राजनों की मनमानी पर अंकुश लगा सके। इन इकाइयों को बाद में विदथ कहा गया। ये विदथ ही बाद में समिति और सभा कहलाये जाने लगे।
आर्यों ने अपना राजकाज सही तरीके से संभालने के लिए अपनी राजनीतिक व्यवस्था को पांच हिस्सों में बांट दिया था। यह इकाइयां इस प्रकार थीं :
- कुल – कुल का मतलब होता था परिवार। परिवार आर्यों के राजनैतिक व्यवस्था की सबसे पहली संस्था या इकाई कहलाई जाती थी।
ग्राम – परिवार के बाद आता था ग्राम। यह इनकी राजनैतिक संस्था का दूसरा चरण था जिसमें कई सारे परिवारों को मिलाकर एक ग्राम बनाया जाता था। - विश – विश बहुत सारे ग्राम के समूहों को कहा जाता था। Vaidik Kal में विश के मुखिया को विशपति के नाम से बुलाया जाता था।
- जन – जन बहुत सारे विश का एक समूह होता था। राजा जन का मुखिया होता था। Vaidik Kal में राजा अनुवांशिक तरीके से चुना जाने लगा था लेकिन लोगों को राजा को हटाने का अधिकार भी दिया गया था।
- राष्ट्र – वैदिक काल में देश को राष्ट्र कहा जाता था।
वैदिक काल में सामाजिक स्थिति (Social Status in the Vaidik Kal in Hindi) :
Vaidik Kal की सामाजिक व्यवस्था ही इसके फलने फूलने का सबसे बड़ा कारण बनी।
आर्यों की बुद्धिमत्ता का परिचय हम उस समय की सामाजिक संरचना को देख कर ही लगा सकते हैं। आर्य लोगों ने अपने समाज को चार हिस्सों में बांट रखा था।
इसे प्रसिद्ध वर्णाश्रम व्यवस्था कहा जाता है।
Vaidik Kal में आर्यकालीन वर्णाश्रम व्यवस्था :
- ब्राह्मण – ब्राह्मण वर्णाश्रम व्यवस्था के सबसे पहले पायदान पर आते थे। इनका काम पढ़ाने का था। हवन, यज्ञ, पूजा पाठ जैसे काम इनके हिस्से के होते थे। ब्राह्मण गुरुकुल चला कर अपने समाज में योगदान दिया करते थे। ब्राह्मण सब जगह पूजनीय थे।
- क्षत्रिय – समाज का दूसरा चरण क्षत्रियों का था। इनका काम राजा और आम लोगों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना था। क्षत्रिय ब्राह्मणों को अपना पुजारी या पुरोहित निहुक्त करते थे। क्षत्रियों का समाज में बहुत सम्मान था।
- वैश्य – समाज का यह हिस्सा व्यापार यानी करोबार चलता था। आयात और निर्यात, मुद्रा और इससे जुड़े लेनदेन, बाज़ार और साहूकारी इनका काम होता था।
- शुद्र – शुद्र समाज में सबसे निचले तबके के लोग होते थे। ये दास, घरेलू कामकाज करने वाले, मज़दूर, लोहार, चमड़ा बनाने वाले, सफाईकर्मी वगैरह होते थे। औरतों को पूरा सम्मान दिया जाता था और इन्हें सम्पत्ति में भी हिस्सा दिया जाता था। आर्य कालीन आश्रम व्यवस्था की खास बात यह भी है कि आर्यों के समय के इस सामाजिक ढांचे पर अगर गौर करें तो हम यह देखते हैं कि समाज भले ही चार हिस्सों में बंटा हुआ था लेकिन लोगों का वर्ण उनके जन्म से नहीं बल्कि उनके कर्म से आधारित किया जाता था। आसान शब्दों में कहें तो आर्यों के समय में एक इंसान अपने हुनर से अपना वर्ण बदल सकता था।
वैदिक काल में धार्मिक स्थिति (Social Status in the Vaidik Kal in Hindi) :
Vaidik Kal के वक़्त लोग पूरी तरह से धर्म में डूबे हुए थे। वैदिक समाज एक पूरी तरह से आदर्श समाज था।
इस समय तक दुनिया की सबसे प्राचीन और सबसे पहली लिखी गयी किताब या धर्मग्रंथ जिसे हम ऋग्वेद कहते हैं, को बनाया जा चुका था। चारों वेदों में से सिर्फ ऋग्वेद ही अस्तित्व में आया था और बाकी तीन वेदों को अभी तक नहीं लिखा गया था। इस समय तक मूर्तियों की पूजा के कोई भी प्रमाण या अवशेष नहीं मिलते हैं। यज्ञ जीवन का सार था। लोग देवों के मानवीय स्वरूपों की पूजा करना नहीं जानते थे।
बात करें वैदिक कालीन देवी देवताओं की तो लोग प्रकृति और इसके तत्वों की ही प्रमुखता से आराधना करते थे।
इनमें से प्रमुख थे –
पुरन्दर इंद्र, इन्हें सर्वोच्च देवता का स्थान मिला हुआ है। इंद्र के बाद अग्नि, वरुण, सोम, सवितू यानी वनस्पति जगत, पूषण यानी प्राणी जगत के देवता, रुद्र, यम, अश्विनी आदि देवताओं की स्तुति और आराधना होती थी। वहीं उषा, अदिति, सन्ध्या, रात्रि, आदि शक्ति और प्रमुख नदियाँ ये सभी प्रमुख देवियाँ थीं।
सरस्वती नदी को पूरे ऋग्वेद में ‘नदीतमा’ के नाम से पुकारा गया है। नदीतमा का अर्थ सबसे पवित्र और सबसे महत्वपूर्ण नदी होता है इसलिए सरस्वती नदी की सबसे ज़्यादा स्तुति की गई है।
वैदिक काल में आर्थिक स्थिति (Economic Condition in Vaidik Kal in Hindi) :
Vaidik Kal में आर्य सबसे ज़्यादा कृषि यानी खेती और इससे जुड़े कामों को ही किया करते थे। खेती आर्यों के अर्थव्यवस्था की सबसे बुनियादी कड़ी थी। खेती के अलावा वैदिक कालीन आर्य पशुपालन भी करते थे। पालतू जानवरों को दौलत यानी सम्पत्ति समझा जाता था। गाय सभी पशुओं में सबसे ज़्यादा पूजनीय और शुभ मानी जाती थी।
ऋग्वेदिक काल को ही पूर्व वैदिक काल के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि इसमें समझने वाली बात यह है कि भारत में सिंधु घाटी सभ्यता जिसे हम सिंधु सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानते हैं, तो इतनी उन्नत और सुव्यवस्थित सभ्यता जब अपने अंतिम चरण में लगभग समाप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी थी तो Purv Vaidik Kal तकनीकी रूप से वह समय है जहाँ ताम्र युग का आखिरी समय और लौह युग के शुरुआत का समय है।