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तुगलक वंश का इतिहास (Tuglak Vansh in Hindi)

Tuglak Vansh मध्यकालीन भारत का एक मुस्लिम राजवंश था जिसकी स्थापना गयासुद्दीन तुगलक ने 1320 ई. में खिलजी वंश के आखिरी शासक कुतुबुद्दीन मुबारक शाह को मारकर की थी। Tuglak Vansh के शासको ने दिल्ली सल्तनत पर 1320 ई. से लेकर 1414 ई. तक राज किया था। Tuglak Vansh का पहला शासक ग्यासुद्दीन तुगलक था।

ग्यासुद्दीन तुगलक (Ghiyasuddin Tuglak in Hindi) :

ग्यासुद्दीन तुगलक का असली नाम गाजी मलिक था, इसने 1320 में खिलजी वंश के अंतिम शासक कुतुबुद्दीन मुबारक शाह के शासनकाल को समाप्त कर Tuglak Vansh की स्थापना की। ग्यासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली के आस पास के क्षेत्र में सिंचाई हेतु कुएँ, तालाबों, एवं नहरों का निर्माण करवाया। इतिहासकार ऐसा मानते है कि सम्भवतः नहरों का निर्माण कराने वाला वह वह दिल्ली सल्तन का प्रथम शासक था।

ग्यासुद्दीन ने दिल्ली के निकट Tuglak Vansh के नाम पर तुगलकाबाद नामक नगर स्थापित किया तथा इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया। निजामुद्दीन औलिया के साथ ग्यासुद्दीन तुगलक के बहुत ही कटु रिश्ते थे। इसलिए एक बार निजामुद्दीन औलिया ने इनके सम्बन्ध में कहा था कि ‘दिल्ली अभी दूर है।’

मुहम्मद बिन तुगलक (Muhammad bin Tuglak in Hindi) :

ग्यासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद 1 फ़रवरी 1325 को मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली सल्तनत और Tuglak Vansh का अगला शासक बना। इसका जन्म 1290 में दिल्ली में हुआ था इसका वास्तविक नाम जूना खाँ था। मुहम्मद बिन तुगलक मध्यकालीन भारत के जितने भी शासक हुए उनमें सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा, शिक्षित, विद्वान् एवं योग्य शासक था। मुहम्मद बिन तुगलक कई भाषाओ बोलने में महारत थे। उसकी कई योजनाएँ असफल हो गई थी इसलिए इतिहास में उसे अदूरदर्शी शासक के रूप में जाना जाता है। कई इतिहासकार इसे पागल शासक भी बोलते है।

ये भी पढ़े –

  • गुलाम वंश का इतिहास
  • मगध साम्राज्य का इतिहास

जियाउद्दीन बरनी ने मुहम्मद बिन तुगलक के चार असफल अभियानों का वर्णन किया है।

  • राजधानी का स्थानान्तरण – मुहम्मद बिन तुगलक ने सन 1327 ई. में अपनी राजधानी दिल्ली से देवगिरि (जिसे आज दौलताबाद कहते है ) स्थानान्तरित कर दी ताकि वो उत्तर एवं दक्षिण के सभी राज्यों को और भारत के सम्पूर्ण साम्राज्य को नियन्त्रित किया जा सके। उसने दिल्ली के सभी लोगो को देवगिरि शिफ्ट होने के लिए बोल दिया। लोग भी सम्राट के डर से राजधानी से देवगिरि स्थानांतरित होने लगे। लेकिन रास्ता बहुत लम्बा होने के करना लोग भूख और प्यास से मरने लगे। इसके कारण थोड़े समय बाद इसने अपनी ये योजना बदल दी।
  • सांकेतिक मुद्रा – मोहम्मद बिन तुगलक ने सोने और चाँदी के सिक्कों के स्थान पर ताँबे की सांकेतिक मुद्रा चलायी। उसका उद्देश्य सोने-चांदी जैसी बहुमूल्य धातुओं को नष्ट होने से बचाना था, परन्तु लोग थोड़े ज्यादा होशियार निकले उन्होंने अपने घरो पर ही नकली सिक्के बनाने शुरू कर दिए। जब मुहम्मद बिन तुगलक को इसका पता चला तो उसने घोषणा करवाई की अब से ताम्बे के सिक्के नहीं चलेंगे जितने भी ताम्बे के सिक्के आपके पास हो आप राज्य के खजाने में जमा करा दीजिये उसके बदले में आपको चाँदी के सिक्के दिए जाएंगे। इससे राज्य के खजाने पर असर पड़ा और रातो रातो राज्य के खजाने में बढ़ी संख्या में ताम्बे के सिक्के भर गए। जिससे उसकी ये योजना भी असफल हो गई।
  • खुरासान अभियान – मध्य एशिया में स्थित खुरासान राज्य में वहाँ के राजा के मरने पर उत्तराधिकारीयो के बीच गद्दी के लिए लड़ाई हो गई। इसी अव्यवस्था का लाभ मुहम्मद बिन तुगलक उठाना चाहता था। इसलिए उसने खुरासान पर आक्रमण करके वहाँ पर कब्जा करने की सोची। खुरासान पर आक्रमण करने के लिए उसने अतिरिक्त सेना का गठन किया और एक साल का वेतन भी दे दिया, लेकिन उसको योजना बनाने में एक से लग गया इसी बीच खुरासान में उत्तराधिकारियों की लड़ाई समाप्त हो गई और मोहम्मद बिन तुगलक यह योजना भी विफल रही।
  • मुहम्मद बिन तुगलक के सांकेतिक मुद्रा की योजना असफल होने पर उसनेदोआब के क्षेत्र में कर की वृद्धि कर दी, ये कर वृद्धि ऐसे समय में की जब दोआब के क्षेत्र में पर अकाल पड़ा था और फिर उसी क्षेत्र में प्लेग नामक महामारी फैल गयी। जिससे सुल्तान को वहाँ से कुछ भी कर नहीं मिल पाया। इस प्रकार मुहम्मद बिन तुगलक की यह योजना भी विफल रही।

मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने राज्य में कृषि के विकास के लिए ‘दीवान-ए-कोही’ नामक एक नए विभाग की स्थापना की थी ।

उसके शासन के अन्तिम दिनों में लगभग सम्पूर्ण दक्षिण भारत स्वतन्त्र हो गया था और मुहम्मद बिन तुगलक के अंतिम दिनों में विजयनगर, बहमनी और मदुरै जैसे शक्तिशाली स्वतंत्र राज्यों की स्थापना हुई ।

1351 ई. में मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु हो गई तथा उसकी मृत्यु की बाद उसका चचेरा भाई फिरोजशाह Tuglak Vansh की गद्दी पर बैठा।

फिरोजशाह तुगलक (Firoazshah Tuglak in Hindi) :

फिरोजशाह तुगलक का जन्म 1309 ईस्वी में दिल्ली में हुआ था वो मुहमदद बिन तुगलक का चचेरा भाई था जब मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु हुई तो उसके कोई वारिश नहीं था इसलिए फ़िरोज़शाह तुगलक दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बन गया। फ़िरोज़शाह Tuglak Vansh की गद्दी पर 1351 से लेकर 1388 तक शासन किया।

फिरोजशाह तुगलक एक उदार और धार्मिक किस्म का व्यक्ति था वो उलेमा वर्ग की सारी सलाहें मानता था। इसलिए उसने दिल्ली सल्तनत को इस इस्लामिक राज्य बना दिया। उसने उलेमाओ की सलाह पर अपनी सेना में वंशवाद को बढ़ावा दिया। सेना किसी भी राज्य के सबसे महत्वपूर्ण अंग होती है। लेकिन यहाँ भी काबिलियत को तर्जी ना देकर वंशवाद को बढ़ावा दिया इससे उसके शासन काल में सेना बहुत कमजोर हो गई, सेना में पूरी तरह से भ्रष्टाचार फ़ैल गया था।

फिरोजशाह तुगलक ने जगन्नाथ पुरी मन्दिर पर हमला किया और मंदिर को क्षतिग्रस्त किया तथा अपने नगरकोट अभियान के दौरान ज्वालामुखी मन्दिर को अपमानित किया। फ़िरोज़शाह के आदेश पर जब एरिजुद्दीन खान उत्तर के अभियान पर था तब उसने ज्वालामुखी मन्दिर को क्षतिग्रस्त किया और वहां से 1300 पाण्डुलिपियों को दिल्ली लेकर आया उन पांडुलिपियों को संस्कृत से फारसी में ‘दलाइल-ए-फिरोजशाही’ नाम से अनुवाद किया। फिरोजशाह तुगलक ने अपने काल में कई आर्थिक व प्रशासनिक सुधार किये जिसके कारण इसे ‘Tuglak Vansh का अकबर’ भी कहते है।

फिरोजशाह तुगलक ने इस्लामी कानून द्वारा स्वीकृत चार कर लगाए। जो की निम्नलिखित है।

फिरोजशाह ने हिन्दुओ पर खराज, खुम्स, , जजिया तथा जकात नामक कर लगाया ।

जब राज्य की सेना किसी और राज्य पर आक्रमण करती और वहां से जो भी धन लुटा जाता था उसको पहले Tuglak Vansh के खजाने में जमा कराना होता था। खुम्स सेना द्वारा लूटे गए माल पर लगने वाला कर होता था। जिसमें 1/5 भाग राज्य के खजानें में जाता था तथा लुटे हुए माल 4/5 भाग सैनिकों का होता था। जजिया पहले ब्राह्मणों का छोड़कर सभी हिन्दुओं पर लगाया जाता था, लेकिन इसने जजिया कर ब्राह्मणो पर भी लगा दिया।

फिरोजशाह तुगलक ने अपने शासन काल के दौरान हिसार, फिरोजाबाद, फतेहाबाद, फिरोजशाह कोटला, जौनपुर जैसे बड़े बड़े नगरों की स्थापना की। आज की तारीख में ये ज्यादातर सारे शहर उत्तर प्रदेश आते है।

उसने फारसी भाषा में अपनी आत्मकथा ‘फुतुहात-ए-फिरोजशाही’ की रचना की। प्रसिद्ध इतिहासकार ने फिरोजशाह के आदेश पर ‘तारीख-ए फिरोजशाही’ तथा ‘फतवा-ए-जहाँदारी’ नामक प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं। 1388 में फ़िरोज़शाह की मौत हो गई।

Tuglak Vansh ka Antim Shasak Kaun tha?

Tuglak Vansh ka Antim Shasak महमूद तुगलक था जो की एक अयोग्य शासक था तैमूर के आक्रमण के बाद Tuglak Vansh का अंत हो गया। सही तरीके से कहा जाए तो फिरोजशाह तुगलक की मृत्यु के बाद ही Tuglak Vansh का पतन शुरू हो गया था। फ़िरोज़शाह तुगलक की मृत्यु के Tuglak Vansh का अगला शासक नसरत शाह तुगलक बना और नसरत शाह की मृत्यु के बाद Tuglak वंश का अगला शासक महमूद तुगलक बना लेकिन ये दोनों आखरी शासक Tuglak Vansh को चलाने में अयोग्य थे। इस तरह Tuglak Vansh का पतन हो गया।

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