आज हम आपको भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कहानी के बारे में बताएंगे। हम सभी को पता है हमारे हिन्दू धर्म अनुसार इस संसार में चार युग होते हैं। ये चार युग हैं – सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग। हर युग को भगवान ब्रह्मा का एक दिन माना जाता है और भगवान ब्रह्मा का एक दिन चार अरब सालों के बराबर होता है। हर युग के अंत में भगवान ब्रह्मा सो जाते हैं। भगवान ब्रह्मा की योजनाओं का सृजन वेदो में बताया गया है। जब भगवान ब्रह्मा सो जाते है तो संसार में कोई सृजन नहीं होता है और दुनिया का अंत होने लगता है। बुरी शक्तियों का प्रकोप बढ़ने लगता है।
भगवान् विष्णु को सृजन का देवता माना जाता है। और जब दुनिया खतरे में होती है और बुरी शक्तियों का प्रकोप बहुत ज्यादा बढ़ जाता है तो बुरी शक्तियों से संसार को बचाने के लिए भगवान विष्णु धरती पर अवतार लेते हैं। भगवान विष्णु के दस अवतार है और भगवान विष्णु का प्रथम अवतार मत्स्य अवतार कहलाता है। तो आइये जानते हैं भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कहानी बताते है।
भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कहानी (The Story of the Fish Incarnation in Hindi)
भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कहानी की शुरुवात होती है जहाँ सतयुग में एक मनु नाम का एक राजा हुआ था जो भगवान विष्णु के परम भक्त थे। उनकी भगवान विष्णु को अपने आखों से देखने की बड़ी प्रबल इच्छा थी जिसके लिए राजा मनु ने हजारों सालो तक भगवान विष्णु की घोर तपस्या की। तपस्या के दौरान एक वक्त पर उन्होंने खाना पीना सब छोड़ दिया था। और उसी समय सतयुग खत्म होने की कगार पर था और जैसा की हमने आपको ऊपर बताया था की हर युग के अंत भगवान ब्रह्मा सो जाते है तो उसी समय एक भयानक बाढ़ धरती पर जीवों का नाश कर एक नए युग में प्रवेश करने वाली थी।
भगवान ब्रह्मा भी सृजन करके थक गए थे तो वो सोना चाहते थे। जब ब्रह्मा जी सो रहे थे तब एक एक असुर जिसका नाम हयग्रीव था वो ब्रह्मा जी की नाक से प्रकट हुआ और उसने देखा की ब्रह्मा जी सो रहे है और ये वेदों का ध्यान लेने का सही समय है। असुर हयग्रीव ने अपना ध्यान केंद्रित करते हुए वेदों का सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया और ये सोचकर समुद्र की गहराइयों में छुप गया की कोई भी उसे वहां पर खोज नहीं पाएगा।
जब भगवान विष्णु को इस बात का पता चला तो वो बहुत चिंतित हो गए और वेदों को असुरों ने चुरा लिया और क्या होगा अगर वेद अगले युग में नहीं जा पाएंगे? और रक्षक होने के नाते वेदों का ज्ञान अगले युग में पहुँचाना भगवान विष्णु का दायित्व था। भगवान विष्णु ने विचार करते हुए राजा मनु को तपस्या में लीन देखा। भगवान विष्णु ने एहसास किया की एक ये व्यक्ति ही वेदों को बचा सकता है।
जब अगली सुबह राजा मनु प्रार्थना शुरू करने के लिए नदी के तट पर गए और उन्होंने जल को अपने दोनों हाथो में लिया और भगवान विष्णु की प्रार्थना करते हुए जल को भगवान विष्णु को समर्प्रित कर दिया। जैसे ही वो अपनी अंजुली का पानी नदी को चढ़ाने वाले थे
वैसे ही उनके अपने हाथों की अंजुली के पानी से आवाज आई “हे महान राजा” मुझे पुनः नदी में प्रवाहित मत करो अन्यथा मुझे नदी के बड़े जीव खा जाएँगे। राजा मनु अपने हाथों को देखने लग गए तो उन्होंने अपने हाथों में एक मछली को देखा ।और वह मछली राजा मनु की तरफ देखकर प्रार्थना करने लगी।
मुझे पुनः पानी में प्रवाहित मत करो। इस पानी के अंदर बहुत बड़ी बड़ी मछलिया है जो मुझे निगल जाएंगी। तो राजा मनु ने दयाभाव से उस मछली की और देखा और एक राजा होने के नाते उसके पास आने वाले हर जीव की रक्षा करना एक राजा का धर्म होता है। राजा मनु उस मछली की बात से सहमत हो गए और मछली को अपने कमंडल के अंदर डाल दिया, और अपनी तपस्या ख़त्म की।
रात्रि विश्राम के लिए घर जाते समय राजा मनु ने उस मछली को अपने कमंडल के अंदर ही रखा ताकि वो मछली उसमें सुरक्षित रहे। अगली सुबह जब राजा मनु जागे तब उन्हें बहुत तेज आवाज आई की मेरी मदद करो, आपके इस कमंडल के अंदर मेरा दम घुट रहा है। तो राजा मनु ने उस मछली को अपने तालाब के अंदर डाल दिया और जब शाम को राजा मनु वापस आये तो फिर से उस मछली की आवाज आई की मेरे लिए ये पानी कम पड़ रहा है मेरी मदद करो।
राजा मनु को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था की एक मछली एक दिन के अंदर इतनी तेज़ गति से कैसे बढ़ सकती है? हालांकि अभी ये प्रश्न पूछने का उचित समय नहीं है राजा मनु ने सोचा, राजा मनु जल्दी से उस मछली को नदी के अंदर लेकर गए और जैसे ही राजा मनु ने उस मछली को नदी के अंदर डाला तो फिर से मछली ने वही राग अलापा की मेरे लिए ये नदी भी बहुत छोटी पड़ रही है
तो राजा मनु ने उस मछली को समुद्र के अंदर छोड़ दिया और थोड़ी ही देर में उस मछली का आकर इतना बड़ा हो गया की उस मछली ने अपने आकर से उस पुरे समुद्र को ढक दिया था।
जब राजा मनु उस मछली को देख रहे थे तब उनके सामने एक प्रकाश आया तो राजा मनु उस मछली की तरफ झुकते हुए बोले की “आप नारायण हो मेरे भगवान”
तो भगवान विष्णु ने हँसते हुए राजा मनु से कहा कि “तुम मुझे एक बार देखना चाहते थे और लो मै तुमसे मिलने आ गया।”
और आगे भगवान विष्णु बोले की मनु, ये युग सात दिनों के बाद समाप्त होने वाला है और एक भीषण बाढ़ आएगी और इस संसार के सारे जीव नष्ट हो जाएंगे, मै चाहता हूँ की तुम एक बहुत विशाल नाव बनाओ जिसमे संसार के सारे जीवो के अवशेष हो, और अपने परिवार और सप्त ऋषि को उस नौका में अपने साथ चले जाओ। मनु ने भगवान विष्णु की आज्ञा मानकर सर हिलाया।
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फिर वो मछली समुद्र की दूसरी तरफ चली गई। मछली ने अपना आधा काम समाप्त कर दिया था और फिर मछली समुद्र की गहराइयों में चली गई। जहाँ उस मछली ने देखा की वहां असुर हयग्रीव वेदों की रक्षा कर रह था और इस विशाल मछली को देखकर वो डर गया।
वो कुछ सोच पता उससे पहले ही उस मछली ने उस असुर पर हमला कर दिया और एक ही प्रहार में उस असुर की मौत हो गई और फिर मछली ने उस असुर हयग्रीव से वेद वापस ले लिए और ब्रह्माजी के पास गई और जो की अभी सो रहे थे उस मछली ने वेदो को ब्रह्माजी के पास रखा और वापस समुद्र में आ गयी।
और तब राजा मनु ने अपना कार्य पूरा कर दिया था उसने धरती के सारे जीवो को अपनी नौका पर चढ़ा दिया था और अचनाक वहाँ पर मूसलाधार बारिश आई और थोड़ी देर में वहां बढ़ जैसे हालत हो गए। और नौका डगमगाने लगी और कई बार तो ऐसा हुआ की वो नौका उलटने वाली थी लेकिन भगवान विष्णु ने सबको बचा लिया और भगवान विष्णु ने सबको बचाते हुए नए युग का प्रारम्भ किया।
तो आज हमने आपको मत्स्य अवतार की कहानी के बारे में बताया, हम उम्मीद करते है आपको भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कहानी की कहानी अच्छी लगी होगी भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कहानी जैसी और पौराणिक कथाएँ पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट पे विजिट करते रहिये।