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तराइन का प्रथम युद्ध (Tarain Ka Pratham Yuddha in Hindi)

Tarain Ka Pratham Yuddha – चौहान वंश के अंतिम प्रतापी शासक पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1166 ई. (जेष्ठ वि.सं. 1223) में अजमेर के चौहान शासक सोमेश्वर की रानी कर्पूरीदेवी (दिल्ली के शासक अनंगपाल तोमर की पुत्री) की कोख से अन्हिलपाटन (गुजरात) में हुआ। पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर चौहान का असमय देहावसान हो गया। इस करना से मात्र 11 वर्ष की अल्पायु में पृथ्वीराज चौहान को अजमेर की गद्दी पर बैठना पड़ा।

उस समय कदम्बदास (जिसे कैमास या कैम्बवास कहते है) अजमेर राज्य का सुयोग्य प्रधानमंत्री था जो की बहुत समझदार था। पृथ्वीराज चौहान जब अजमेरी राज्य की गद्दी पर बैठा तब अजमेर राज्य की सीमाएँ उत्तर में थानेश्वर से दक्षिण में जहाजपुर (आज के मेवाड़) तक फैली हुई थी।

उत्तरी सीमा पर कनौज राज्य और दक्षिणी सीमा पर गुजरात राज्य अजमेर राज्य के समीपस्थ शत्रु थे। उत्तर-पश्चिमी सीमा पर मुस्लिम शासको की आक्रामकारी गतिविधियाँ बढ़ती जा रही थी। ऐसे कठिन समय में पृथ्वीराज चौहान की माता कर्पूरीदेवी और अजमेर राज्य के प्रधानमंत्री कदंबदास ने बड़ी कुशलता एवं कूटनीति से अजमेर राज्य का शासन कार्य संभाला। उन्होंने भुवन्नमल को अपना सेनाध्यक्ष बनाया जो की बहुत ही अनुभवी और युद्धकला में निपुण था ।

परन्तु बहुत कम समय में ही और बहुत ही काम उम्र में पृथ्वीराज चौहान तृतीय नेअपनी योग्यता एवं वीरता से 1178 ई. में ही समस्त शासन प्रबन्ध अपने हाथ में ले लिया। पृथ्वीराज ने प्रतापसिंह जैसे विश्वस्त अधिकारी को अपने मंत्री मंडल में नियुक्त कीया। उसके बाद उसने अपने चारों ओर के शत्रुओं का एक-एक कर शनै-शनै खात्मा किया एवं पृथ्वीराज चौहान ने दलपुंगल यानि विश्व विजेता की उपाधि धारण की। इन्ही शत्रुओ में एक मुहम्मद गौरी भी था जिसके साथ Tarain Ka Pratham Yuddha हुआ।

पृथ्वीराज एवं मुहम्मद गौरी

पृथ्वीराज चौहान के शासन काल के समय उत्तर पश्चिम में गौर क्षेत्र पर गयासुद्दीन गौरी का शासन था। गयासुद्दीन गौरी ने 1173 ई. में अपने छोटे भाई मुहम्मद गौरी को गजनी का सूबेदार बनाया था। मुहम्मद गौरी ने भाटी शासकों पर आक्रमण करके उन्हें युद्ध में हराकर उच तथा कर्मेथियनों को हराकर 1175 ई. में मुल्तान पर विजय प्राप्त की। 1178 ई. में मुहम्मद गौरी ने गुजरात पर हमला किया।

लेकिन वहाँ के चालुक्य शासक भीमदेव से परास्त हो गया । इसके बाद गौरी ने सिंध एवं पेशावर पर आक्रमण करके उसे अपने अधीन किये तथा 1181 ई. में सियालकोट का किला बनवाया। 1186 ई. में, मुहम्मद गोरी ने लाहौर के शासक खुसरशाह मलिक को युद्ध में हराया और पंजाब प्रांत पर भी अधिकार कर लिया।

मुहम्मद गौरी के पंजाब प्रान्त पर अधिकार के बाद उसकी राज्य विस्तार की इच्छा और ज्यादा प्रबल होने लगी। इस कारण से उसने कई बार अजमेर राज्य पर आक्रमण किया। उस समय दिल्ली एवं अजमेर पर पृथ्वीराज चौहान तृतीय का शासन था।मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच कई छोटे -छोटे युद्ध हुए। पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवी चन्द बरदाई ने पृथ्वीराज रासौ में उसकी ऐसी 21 लड़ाइयों का उल्लेख किया है।

ये भी पढ़े –

  • खानवा के युद्ध की कहानी
  • आंग्ल-मुगल युद्ध

जिसमे Tarain Ka Pratham Yuddha का जिक्र भी मिलता है। हम्मीर महाकाव्य में पृथ्वीराज के साथ हुई ऐसी सात लड़ाइयों का उल्लेख देखने को मिलता इसमें भी Tarain Ka Pratham Yuddha का उल्लेख मिलता है। इन दोनों ग्रंथों (पृथ्वीराज रासौ और हम्मीर महाकाव्य) में इन सभी युद्धों में पृथ्वीराज चौहान की विजय होना बताया गया है। ‘पृथ्वीराज प्रबंध’ 8 बार इन दोनों के मध्य युद्ध का उल्लेख करता है जबकि ‘प्रबंध कोष’ में पृथ्वीराज द्वारा मुहम्मद गोरी को 20 बार कैद करने का उल्लेख है।

इसी प्रकार सुर्जन चरित में 21 बार तथा प्रबन्ध चिंतामणि में 23 बार पृथ्वीराज द्वारा गौरी को हराने का वर्णन मिलता है, लेकिन ये सभी युद्ध सीमा पर छिटपुट युद्ध थे। इसके बाद मुहम्मद गौरी एवं पृथ्वीराज चौहान के बीच दो बड़े पैमाने पर के निर्णायक युद्ध हुए जो इतिहास में तराइन के प्रथम युद्ध(Tarain Ka Pratham Yuddha) के नाम से प्रसिद्ध हैं।

तराइन का प्रथम युद्ध (Tarain Ka Pratham Yuddha in Hindi) :

Tarain Ka Pratham Yuddha 1191 ईस्वी में पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौर के बीच हुआ था। इतिहासकार मानते है कि तराइन का प्रथम युद्ध (Tarain Ka Pratham Yuddha) शुरुवात 1290 ईस्वी में हुई थी जब पृथ्वी राज चौहान अपने राज्य की सीमाओं को पंजाब तक फैलाना चाहता था लेकिन पंजाब प्रान्त पर गौर वंश के शासक मुहम्मद गौरी का शासन था, पृथ्वीराज चौहान को अच्छे से पता था मोहम्मद गोरी से लड़े बिना पंजाब में चौहान साम्राज्य की स्थापना करना असंभव है। जब पृथ्वीराज चौहान अपनी सेना लेकर पंजाब की ओर कूच किया। इसके जवाब में गौरी ने हाँसी और सरस्वती किलो पर हमला कर उनको अपने कब्जे में ले लिया।

इन दुर्गो को जीतने के बाद गौरी ने 1290-91 ईस्वी में काजी जियासुद्दीन के नेतृत्व अपनी सेना सरहिंद की सुरक्षा के लिए खड़ी कर दी।

पृथ्वीराज अपने क्षेत्र से आक्रांताओं को भगाने हेतु सरहिंद पर आक्रमण करने हेतु बढ़ा।अपने विजित क्षेत्र हाँसी और सरस्वती किलो को बचाने के लिए, मुहम्मद गोरी एक विशाल सेना के साथ करनाल और थानेश्वर के बीच तराइन (तरावाड़ी) के मैदान में एक विशाल फौज के साथ आ गया।

पृथ्वीराज भी अपनी सेना सहित तराइन के मैदान में वहाँ पहुँचा। मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान की सेनाओं के मध्य 1191 ई. में तराइन का प्रथम युद्ध (Tarain Ka Pratham Yuddha) हुआ जिसमें गोविन्दराज जो कि दिल्ली का गवर्नर था उस ने अपने युद्ध कौशल से Tarain Ka Pratham Yuddha में मुहम्मद गौरी को घायल कर दिया। घायल गौरी Tarain Ka Pratham Yuddha भूमि से बाहर निकल गया, जब गौरी की सेना अपने सेनापति गौरी को मैदान छोड़कर भागते हुए देखा तो वो भी Tarain Ka Pratham Yuddha का मैदान छोड़कर भाग गई।

Tarain Ka Pratham Yuddha में गौरी के गजनी भाग जाने के पृथ्वीराज चौहान ने ने तबरहिंद (सरहिंद) पर आक्रमण करके उसे अपने अधिकार में लिया और काजी जियाउद्दीन को कैद कर लिया। पृथ्वीराज चौहान ने Tarain Ka Pratham Yuddha में भागती हुई मुस्लिम सेना का पीछा न कर मुहम्मद गौरी और उसकी सेना को जाने दिया। पृथ्वीराज ने ऐसा करके एक बड़ी गलती की, जिसकी कीमत उन्हें अगले साल तराइन के दूसरे युद्ध में चुकानी पड़ी।

इतिहासकार डॉ. दशरथ शर्मा ने इसे पृथ्वीराज का शैथिल्य कहा है। पृथ्वीराज द्वारा हुई थकी व पस्त मुस्लिम सेना का पीछा न कर उसे सुरक्षित जाने देना उसकी एक बहुत ही भारी भूल थी जो भारतीय इतिहास का सबसे कलंकित पृष्ठ है। अगर पृथ्वीराज चौहान अपने शत्रु मुहम्मद गौरी का पीछा करके नष्ट कर देता तो आज भारत का इतिहास कुछ और ही होता।

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