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सुषिर वाद्य यंत्र की परिभाषा और प्रकार (Sushir Vadya Yantra in Hindi)

संगीत को साधना कहा जाता है। संगीत हर उम्र के लोगों को पसंद आता है। संगीत को उनके बजाए जाने वाले वाद्य यंत्रों के आधार पर चार भागों में बांटा जाता है। इन्हें तत् वाद्य यन्त्र, सुषिर वाद्य यंत्र, अनवद्ध वाद्य यंत्र और घन वाद्य यंत्र कहा जाता है।
आज की पोस्ट में हम सुषिर वाद्य यंत्रों के बारे में पूरी जानकारी हासिल करेंगे। इसके साथ ही हम सुषिर वाद्य यंत्र क्या होते हैं, कौन कौन से वाद्य यंत्र सुषिर वाद्य यंत्र कहलाते हैं, के बारे में भी जानेंगे।

सुषिर वाद्य यंत्र क्या होते हैं? (What is Sushir Vadya Yantra in Hindi) :

ऐसे वाद्य यंत्र जिन्हें नाक से सांस लेकर और फूंक मार कर बजाया जाता हो, सुषिर वाद्य यंत्र कहलाते हैं। ऐसे वाद्य यंत्र मुख्य रूप से एक नली के आकार के होते हैं। ये वाद्य यंत्र ज़्यादातर अंदर से खोखले होते हैं।

बाँसुरी सुषिर वाद्य यंत्र (Bansuri Sushir Vadya Yantra in Hindi) :

इसे बांस की लकड़ी या धातु से बनाया जाता है। यह एक नली के आकर की होती है जिसे अंदर से खोखला रखा जाता है। इस खाली नली में स्वर पैदा करने के लिए छेद बनाए जाते हैं जो निकलने वाले स्वरों की शुद्धता को बनाए रखने के लिए एक खास दूरी पर बनाए जाते हैं

अलगोजा सुषिर वाद्य यंत्र (Algoja Sushir Vadya Yantra in Hindi) :

यह वाद्य यंत्र खुशी अभिव्यक्त करने के लिए मुंह से सीटी बजाने की कला का विकसित रूप है। यह नाक से सांस लेकर बजाया जाता है। राजस्थान के मीणा आदिवासियों और ग्रामीण इलाकों में इसका बहुत प्रचलन है। अलगोजे बजाने वाला दो अलगोजे अपने मुंह में रखकर उन्हें एक साथ बजाता है। अलगोजे की बांसुरीओं में चार छेद होते हैं। राजस्थान के अलवर, बूंदी, कोटा और अजमेर क्षेत्र के गुर्जर, धाकड़ और मेव जाति के लोग इसे बजाते हैं।

ये भी पढ़े –

  • वाद्य यंत्र के नाम, प्रकार और परिभाषा
  • तत् वाद्य यंत्र की परिभाषा और प्रकार

शहनाई सुषिर वाद्य यंत्र (Shehnai Sushir Vadya Yantra in Hindi) :

शहनाई सुषिर वाद्य यंत्रों में सर्वश्रेष्ठ वाद्य है। शहनाई मंगल कार्यों के समय बजाने वाले बजाए जाने वाला वाद्य यंत्र है और यह बहुत ही सुरीला होता है। शहनाई को सागवान या शीशम की लकड़ी से बनाया जाता है। यह दिखने में चिलम के जैसी दिखती है। शहनाई में स्वर पैदा करने के लिए आठ छेद किए जाते हैं। इससे निकले हुए सूर बहुत ही मधुर और साफ यानी तीक्ष्ण होती है।

शहनाई को भारत में खासतौर पर विवाह उत्सवों के दौरान बजाया जाता है। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान भारत के सबसे प्रमुख शहनाई वादक रहे हैं। शहनाई को सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है। शहनाई के ऊपरी हिस्से पर ताड़ के पत्ते से बनी हुई तूती लगाई जाती है और धुन निकालने के लिए इसे फूंक के द्वारा बजाया जाता है।

मशक सुषिर वाद्य यंत्र (Mashak Sushir Vadya Yantra in Hindi) :

इसे चमड़े से बनाया जाता है। मशक की आवाज पुंगी की तरह ही सुनाई देती है। इसमें एक तरफ मुंह से हवा भरी जाती है और दूसरी तरफ दो नलियां होती हैं जिन से हवा बाहर निकलती है और इसी वजह से इसमें से स्वर और ध्वनियों उत्पन्न होती हैं। राजस्थान के सवाई माधोपुर और और अलवर इलाकों में यह खासतौर से प्रचलित है। इसे मुंह और नाक की सहायता से बजाया जाता है।

पुंगी सुषिर वाद्य यंत्र (Pungi Sushir Vadya Yantra in Hindi) :

पुंगी को बीन भी कहा जाता है। पुंगी छोटी लौकी के तुंबे से बनाई जाती है। इसके निचले हिस्से में छेद करने के बाद दो नलियाँ लगाई जाती हैं जिनसे होकर स्वर और ध्वनियां सुनाई देते हैं। यह भी नाक से सांस लेकर बजाए जाने वाले वाद्य यंत्रों में से एक है। इस वाद्य यंत्र को राजस्थान में कालबेलिया जाति के लोग विशेष तौर पर बजाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि बीन में सांपों को वश में करने की और उन्हें मोहित करने की अद्भुत शक्ति होती है। कालबेलिया जाति के स्त्रियों के नृत्य में संगत देने के लिए भी बीन बजाई जाती है।

बांकियाँ सुषिर वाद्य यंत्र (Baankiyaan Sushir Vadya Yantra in Hindi) :

इसे पीतल से बनाया जाता है और दिखने में बिगुल की तरह दिखता है। यह राजस्थान के सरगरा जाति के लोगों का खानदानी वाद्य यंत्र है। इसे ढोल और कांसे की थाली के साथ बजाया जाता है। राजस्थान में इसे खास तौर पर शादी और विवाह के कार्यों में बजाया जाता है। इसमें एक तरफ का मुंह छोटा होता है जिसे फूंक मारकर बजाया जाता है

बिगुल सुषिर वाद्य यंत्र (Bigul Sushir Vadya Yantra in Hindi) :

इसे बिगुल भी कहा जाता है। यह राजस्थान के मेवाड़ इलाके के भवाई जाति के लोगों का प्रमुख वाद्य यंत्र है। इसे गांवों में खेल शुरू करने से पहले जनता को बुलाने के लिए बजाया जाता है। इसे पीतल से बनाया जाता है जो लंबी नली की तरह दिखता है। बिगुल की तरह ही यह युद्ध क्षेत्र का वाद्य यंत्र रहा है जिसे युद्ध शुरू करने से पहले बजाया जाता था।

नागफनी सुषिर वाद्य यंत्र (Nagfani Sushir Vadya Yantra in Hindi) :

नागफनी को पीतल की धातु से बनाया जाता है जो दिखने में सांप के आकार की होती है। इसे मंदिरों और साधु सन्यासियों के द्वारा प्रमुख रूप से बजाया जाता है। इसके पिछले हिस्से में एक छेद होता है जहां से सुर और ध्वनियाँ निकलती हैं।

सतारा सुषिर वाद्य यंत्र (Satara Sushir Vadya Yantra in Hindi) :

सतारा वाद्य यंत्र शहनाई, अलगोजा और बांसुरी तीनों का मिलाजुला रूप है। राजस्थान के बाड़मेर और जैसलमेर इलाको में ईसे प्रमुख रूप से बजाया जाता है। इसे अधिकतर मेघवाल और मुस्लिम जाति के लोग बजाते हैं। इसे अकेले बजाया जाता है। राजस्थान के लंगा जाती के लोग भी सतारा बजाते हैं।

मोरचंग सुषिर वाद्य यंत्र (Morchang Sushir Vadya Yantra in Hindi) :

इसे लोहे का इस्तेमाल कर के ही बनाया जा सकता है और आकार में चिलम से भी छोटा होता है। यह राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में लंगा गायकों द्वारा सारंगी और सतारा की संगत में बजाया जाता है।

सिंगा सुषिर वाद्य यंत्र (Singa Sushir Vadya Yantra in Hindi) :

इसे ज़्यादातर साधु सन्यासी इस्तमाल करते हैं। इसे धातु और बैल के सींगों से बनाया जाता है। पीतल से भी इसे बनाया जा सकता है। इसका एक सिरा चौड़ा और दूसरा बहुत ही महीन होता है।

मुरला सुषिर वाद्य यंत्र (Murla Sushir Vadya Yantra in Hindi) :

इसे पुंगी का विकसीत रूप माना जाता है। इसमें पुंगी के विपरीत दो नलियां होती हैं जिन्हें पुंगी के तुम्बे के निचले हिस्से में फँसाया जाता है। एक नाली से आवाज़ या ध्वनि और दूसरी नली से स्वर निकलते हैं।

तुरही सुषिर वाद्य यंत्र (Turhi Sushir Vadya Yantra in Hindi) :

तुरही पीतल से बनती है। इसका इस्तेमाल मंदिरों और युद्ध क्षेत्रों में किया जाता है। यह सिंगे की तरह ही एक तरफ से चौड़ा और दूसरी तरफ से नुकीला होता है।

सिंगी सुषिर वाद्य यंत्र (Singi Sushir Vadya Yantra in Hindi) :

इसे भैंसे, बारहसिंगे या हिरन के सींगों से बनाया जाता है। राजस्थान में जोगी इसे ज़्यादा बजाते हैं। इसमें सिंगी को होठों पर रख कर गले से आवाज़ निकाल कर ध्वनि निकाली जाती है।

सुरनाई सुषिर वाद्य यंत्र (Surnai Sushir Vadya Yantra in Hindi) :

यह शहनाई की तरह होता है। इसे ढोली और लंगा जाती के लोगों द्वारा मांगलिक अवसरों पर बजाया जाता है। राजस्थान में इसके कई स्वरूप देखने को मिलते हैं। इसके मुंह पर ताड़, खजूर या कगोर के पेड़ का सरकंडा लगाया जाता है। इस वाद्य यंत्र को बजाने से पहले गिला किया जाता है।

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