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वराह अवतार की कथा (Story of Varaha Avatar in Hindi)

आज हम भगवान विष्णु के वराह अवतार की कथा के बारे में बताएंगे।

हमने अब तक भगवान विष्णु के दशावतार में से दो राम अवतार और मत्स्य अवतार के बारे में जान लिया है। भगवान विष्णु के दशावतारों की कहानी की अगली कड़ी में आज हम भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह अवतार की कथा के बारे में विस्तार से जानेंगे। तो आइये जानते हैं भगवान विष्णु के वराह अवतार की कथा के बारे में….

वराह अवतार की कथा (Story of Varaha Avatar in Hindi) :

एक बार की बात है जब विष्णु भगवान अपने वैकुंठ लोक में अपनी शैया पर विश्राम कर रहे थे और उनके अंगरक्षक जय और विजय उनके शयन कक्ष के दरवाज़े पर पहरा दे रहे थे। तभी वहां पर ब्रह्म देव के पुत्र भगवान विष्णु से मिलने के लिए आए।

अब क्योंकि भगवान विष्णु विश्राम कर रहे थे इसलिए उनके अंगरक्षकों जय और विजय ने ब्रह्म देव की पुत्रों को भगवान विष्णु के कक्ष के बाहर प्रतीक्षा करने के लिए कहा तो इस बात पर ब्रह्म देव के पुत्र भगवान विष्णु के अंगरक्षक जय और विजय दोनों पर अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने उन दोनों को कहा कि हम भगवान विष्णु से मिलने के लिए आए हैं और आप हमें रोक नहीं सकते हैं।

लेकिन जय और विजय ने उनकी एक न सुनी और उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। इस पर ब्रह्म देव के पुत्र उन दोनों से बहुत ही क्रोधित हो गए और अपने क्रोध में आकर उन्होंने भगवान विष्णु के अंगरक्षककों जय और विजय को वहीं खड़े-खड़े श्राप दे दिया कि तुम दोनों पिक पृथ्वी लोक पर मनुष्य के रूप में जन्म लोगे और तुम दोनों अपने समय के सबसे निर्दयी व्यक्ति बनोगे। इस पर भगवान विष्णु के अंगरक्षक जय और विजय ब्रह्म देव के पुत्रों से क्षमा याचना करने लगे लेकिन अब दिया हुआ श्राप वापस नहीं लिया जा सकता था।

इतना कहकर ब्रह्म देव के पुत्र वहां से चले गए। अपने कक्ष के बाहर शोर सुनकर भगवान विष्णु उठकर बाहर आए और उन्होंने देखा कि उनके दोनों आज्ञाकारी अंगरक्षक भगवान ब्रह्म के पुत्रों से क्षमा याचना कर रहे हैं इस पर भगवान विष्णु ने पूछा कि क्या हुआ तब ब्रह्म देव के पुत्रों ने उन्हें पूरा वाकया सुनाया। इस पर भगवान विष्णु ने ब्रह्म देव के पुत्रों से कहा कि यह तो मेरे अंगरक्षक है।

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इन्होंने तो बस अपने कर्तव्यों का पालन किया है। अपने अंग रक्षकों की क्षमा याचना पर भगवान विष्णु ने उन दोनों को बताया कि तुम दोनों पृथ्वी लोक पर मनुष्य रूप में अवश्य जन्म लोगे लेकिन अगर तुम दोनों की मृत्यु मेरे हाथों से हो तो तुम दोनों का यह यह श्राप मिटाया जा सकता है। और इस तरह अगर तुम दोनों की मृत्यु मेरे हाथों से हो तो तुम दोनों को इस वजह से मुक्ति हो जाएगी।

दिए गए श्राप के अनुसार जय और विजय ने पृथ्वी लोक पर मनुष्य रूप में एक ही घर में दो भाइयों के रूप में जन्म लिया। एक का नाम रखा गया हिरण्याक्ष और दूसरे का नाम रखा गया हिरण्यकश्यप। हिरण्याक्ष बड़ा होकर भगवान ब्रह्म का पूरी तरह से भक्त बन गया। उसने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए बहुत कठोर तपस्या की और उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा उसके सामने प्रकट हुए और हिरण्याक्ष से कहा कि वत्स, मांगो तुम्हें क्या मांगना है।

इस पर हिरण्याक्षप ने भगवान ब्रह्मा से कहा कि आप मुझे अमर होने का ऐसा वरदान दीजिए जिससे मैं किसी भी अस्त्र या शस्त्र, देव या दानव, मनुष्य अथवा पशु अथवा पक्षी किसी के भी हाथों ना मारा जाऊं। मुझे अमरता का वरदान दीजिए। भगवान ब्रह्मा ने हिरण्याक्ष को तथास्तु कहा और अंतर्ध्यान हो गए। इस प्रकार हिरण्याक्ष को भगवान ब्रह्मा से अमरता का वरदान प्राप्त हो गया।

ब्रह्म देव से वरदान मिलने के बाद दोनों राक्षसों को लगा की अब तो वो अमर हो गए हैं। उन दोनों को अब कोई नहीं मार सकता है। और अपने इसी अहंकार की वजह से वो दोनों भगवान विष्णु को भी तुच्छ मानने लगे। फिर उन दोनों राक्षसों ने तीनों लोकों को जीतने का मन बना लिया। हिरण्याक्ष राक्षस ने स्वर्ग लोक को जीतने के लिए स्वर्ग लोग पर आक्रमण कर दिया।

जब स्वर्ग लोक के देवताओं को पता चला की हिरण्याक्ष ने स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया। उसका आक्रमण इतना भीषण था कि स्वर्ग लोक के सारे देवता स्वर्ग लोक छोड़कर भाग गए। कोई भी देवता हिरण्याक्ष का सामना करने में सक्षम नहीं था। जब हिरण्याक्ष ने बिना किसी युद्ध के इंद्र लोक पर कब्जा कर दिया तो उससे रहा नहीं गया क्योंकि वो किसी से युद्ध करना चाहता था।

तो हिरण्याक्ष अपनी युद्ध की प्यास बुझाने के लिए समुद्र के किनारे खड़ा हो गया और वह वरुण देव की राजधानी जा पहुंचा और वरुण देव की राजधानी में पहुंचकर हिरण्याक्ष ने वरुण देव को युद्ध के लिए ललकारते हुए बोला कि हे वरुण देव आपने धरती के सारे राक्षसों को हराकर राजसूय यज्ञ किया था। आज मैं हिरण्याक्ष एक राक्षस आपको युद्ध के लिए ललकारता हूँ। आइए मुझसे युद्ध कीजिये और मेरी युद्ध की प्यास बुझाइये।

लेकिन वरुण देव जानते थे कि हिरण्याक्ष ने घोर तपस्या करके ब्रह्म देव को प्रस्सन्न करके उनसे कभी ना पराजित होने और अमर होने का वरदान प्राप्त किया है तो इस हिरण्याक्ष राक्षस से युद्ध करना कोई अक्लमंदी का काम नहीं है। और वरुण देव ये भी जानते थे की बिना युद्ध किये ये राक्षस जाने वाला नहीं है।

तो वरुण देव ने समझदारी से काम लेते हुए हिरण्याक्ष से कहा की मैं तो एक साधारण सा छोटा मोटा देव हूँ। और आप एक महाबली हैं। मुझे में आपका सामने करने की शक्ति नहीं है। आपसे युद्ध करने के काबिल तो सिर्फ विष्णु देव हैं। मुझे हराकर आप अपनी शक्ति और अपना बल यहां साबित नहीं कर पाएंगे अगर आपको युद्ध ही करना है तो आप विष्णु देव से युद्ध कीजिये।

हिरण्याक्ष राक्षस को लगा की वरुण देव ठीक ही कह रहे हैं। मुझे विष्णु देव से ही युद्ध करके उनको हरा देना चाहिए। तो हिरण्याक्ष राक्षस ने वरुण देव से विष्णु भगवान का पता बताने को कहा। और जब वरुण देव ने हिरण्याक्ष राक्षस को विष्णु देव का पता बता दिया तो वो विष्णु देव से युद्ध करने निकल पड़ा।

लेकिन हिरण्याक्ष राक्षस को विष्णु देव नहीं मिले। तो उसने अपने गुस्से से और अपनी ताकत के जोश में अंधे हो चुके हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र की गहराइयों में धकेल दिया और इस तरह पूरी पृथ्वी पर हाहाकार मच गया। सारी पृथ्वी को समुद्र की गहराइयों में डूबा देने से पृथ्वी पर हो रहे सारे हवन, पूजा, प्रार्थना कार्य रुक गए। इससे देवताओं की ताकत कम होने लगी।

तो सारे देवता मिल कर विष्णु भगवान के पास पहुंचे और विष्णु भगवान से निवेदन किया कि आप हिरण्याक्ष नामक राक्षस को नष्ट करने की कोई तरकीब सोचिये। तो इस पर विष्णु भगवान ने सारे देवताओं का अनुरोध स्वीकार कर लिया। और उन्होंने हिरण्याक्ष नामक राक्षस को मारने का निश्चय कर दिया।

विष्णु भगवान ने हिरण्याक्ष को मारने के लिए वराह का रूप धारण किया। अपने तीखे और लम्बे दांतो की मदद से पृथ्वी को महासागार की गहराइयों से बाहर निकाल लिया। विष्णु भगवान को वराह के रूप में देख कर उसने तुरंत विष्णु भगवान पर अपनी गदा की मदद से हमला कर दिया। इस पर विष्णु भगवान और हिरण्याक्ष के बीच में भयंकर युद्ध हुआ।

हमारे हिन्दू धर्म शास्त्रों और पुराणों के मुताबिक भगवान विष्णु और हिरण्याक्ष के बीच यह युद्ध पुरे एक हज़ार सालों तक चलता रहा। और अंत में भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र की मदद से हिरण्याक्ष का सर धड़ से अलग कर दिया। जब हिरण्याक्ष का अंत हो गया तो विष्णु भगवान ने समुद्र की गहराइयों में समा चुकी पृथ्वी को अंततः जल में से बाहर निकाला, पृथ्वी को संतुलित किया और पृथ्वी पर जीवन एक बार फिर से सामान्य हो गया।

तो ये थी वराह अवतार की कथा हमें आशा है कि आपको हमारी यह पोस्ट वराह अवतार की कथा पसन्द आयी होगी। वराह अवतार की कथा की तरह और भी ज्ञानवर्धक पोस्ट्स के लिए हमारी वेबसाइट को नियमित तौर पर विज़िट करते रहें। मिलते हैं एक और नई पोस्ट के साथ तब तक के लिए
धन्यवाद।

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