शनिदेव के जन्म की कथा – हमारे हिन्दू धर्म के ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को सबसे भयानक ग्रह के रूप में माना जाता है। लेकिन फिर भी एक तरह से शनि ग्रह, शनि देव का ही प्रतिनिधत्व करता है। पुराणों और वेदो में शनि देव को न्याय के देवता के रूप में माना जाता है। शनि देव, यम के भाई हैं। कुछ पुराणों की कहानियो के अनुसार शनि देव को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, क्योंकि पुराणों और वेदो में शनि देव को अच्छे कर्मों और बुरे कर्मों का हिसाब रखने वाला बताया जाता है।
हम आज आपको शनिदेव के जन्म की कथा बताने वाले हैं। शनि देव की जन्म की कथा ही ज़्यादा रोचक और दिलचस्प है। आपको पढ़ने में बहुत आनंद आएगा तो हमारी इस पोस्ट को अंत तक जरूर पड़े।
शनिदेव के जन्म की कथा (Story of Birth of Shani Dev in Hindi) :
पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य देव का विवाह राजा दक्ष की पुत्री संध्या के साथ हुआ था। भगवान सूर्य देव और राजा दक्ष की पुत्री संध्या के तीन पुत्र हुए थे। इन पुत्रो के नाम क्रमश : मनु, यमराज, और यमुना थे। एक बार किसी कारणवश सूर्य देवता का तप बहुत बढ़ने लगा और इससे सूर्य देवता की पत्नी संध्या अपने पति देव के प्रचंड़ तेज और तप को सहन कर पाने असमर्थ थी, तो अपने पति सूर्य देवता के तप को काम करने और अपनी इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए संध्या ने निश्चय किया की।
उन्हें खुद कठोर तप करके अपने तेज को और ज़्यादा बढ़ाने की ज़रूरत है और साथ ही अपनी तपस्या के बल से वो सूर्य देव के तप को कम करने में भी सक्षम हो पाएंगी।
तो इसलिए संध्या ने सूर्य देव के तप को कम करने के लिए जंगल में जाकर कठोर तपस्या करना शुरू कर दिया और कुछ ही वर्षों के कठोर तपस्या के बाद अपनी तपस्या के बल से सन्ध्या ने अपने जैसी ही दिखाई देनी वाली एक छाया को उत्पन्न किया और संध्या ने उस छाया का नाम सुवर्णा रखा।
इसके बाद संध्या ने उस अपने जैसी दिखने वाली छाया जिसका नाम उन्होंने सुवर्णा रखा था, उसको अपने तीनों बच्चो की ज़िम्मेदारी सौंप दी। और फिर बाद में संध्या ने एक और कठोर तपस्या करने के लिए जंगल में चले जाने का निर्णय लिया। थोड़े समय के बाद सूर्य देव को अपनी पत्नी संध्या की याद आने लगी तो सूर्य देवता अपनी पत्नी से मिलने उसी जंगल में चले गए, जहाँ सूर्य देवता अपनी पत्नी के साथ तपस्या कर रहे थे। और उन दोनों के मिलन से दोनों को दो सन्तान और हुई। उन्होंने अपने पहले पुत्र का नाम शनि रखा और अपनी दूसरी पुत्री का नाम भद्रा रखा।
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इस कारण से मिला था शनिदेव को नौ ग्रहों के स्वामी का वरदान :
एक और पौराणिक कथा के अनुसार जब देवता की पत्नी संध्या जंगल में कठोर तपस्या कर रही थी। तब सूर्य देवता अपनी पत्नी से मिलने के लिए जंगल में जा पहुंचे और उन दोनों के मिलन से उनको एक पुत्र शनि देव और एक पुत्री भद्रा हुई। लेकिन उस मिलन के बाद काफी वर्षो तक सूर्य देवता अपनी पत्नी संध्या से मिलने नहीं पहुँचे और इसी बीच उनके दोनों बच्चे बड़े हो गए।
फिर एक दिन सूर्य देवता अपनी पत्नी से मिलने पहुंचे तो उन्होंने वहां शनि देव को देखा। लेकिन सूर्य देवता के तीव्र तेज के कारण शनि देव अपनी आँखे बंद कर दी। जब सूर्य देवता ने शनि देव को देखा तो सूर्य देव को लगा की ये बालक तो बहुत ही ज्यादा काला है।
सूर्य देव ने शनि देव को देखकर अपने मन ही मन सोचा कि इतना काला दिखने वाला बालक तो मेरा पुत्र नहीं हो सकता है। अपनी इसी शंका को दूर करने के लिए उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा कि ये काला दिखने वाला बालक कौन है?
अपने माता – पिता की ये बात सुनकर शनिदेव को बहुत गुस्सा आया और शनिदेव ने मन ही मन अपने पिता से नफरत करने लगे क्युकी शनिदेव को सूर्य से पिता के रूप कभी भी स्नेह नहीं मिल था।
अपने पिता की बात पर गुस्सा होकर शनिदेव ने भगवान शिव की कठोर तपस्या शुरू कर दी। काफी वर्षो की कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव शनि देव की तपस्या से प्रसन्न हुए। भगवान शिव ने शनि देव को वरदान मांगने के लिए कहा, तब शनिदेव ने भगवन से वरदान माँगा कि मेरे पिता सूर्य देव ने मेरी माता श्री का घनघोर अपमान किया है। मेरी माता श्री को प्रताड़ित किया है।
मेरी माता संध्या मेरे पिता सूर्य देव की इस निर्मम व्यवहार से बहुत दुखी है। इसलिए आप मुझे वरदान दीजिये कि आप मुझे मेरे पिता सूर्य देव से ज्यादा और अधिक पूज्य होने का वरदान दे।
भगवान शिव ने शनि देव को वरदान दिया कि आज से पृथ्वी पर नौ ग्रहो में सबसे ज्यादा आपको पूजा होगी। आपको न्याय का देवता माना जाएगा।
उसी दिन के बाद शनि देव को नौ ग्रहो में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।