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तराइन का द्वितीय युद्ध (Second Battle of Tarain in Hindi)

तराइन का द्वितीय युद्ध | तराइन के प्रथम युद्ध में जीत के बाद पृथ्वीराज चौहान निश्चित होकर अपनी विलासिता के जीवन में व्यस्त हो गया जबकि दूसरी तरह मुहम्मद गौरी ने पूरे मनोयोग से विशाल सेना पुनः एकत्रित की एवं पुरे एक साल युद्ध की तैयारियों में व्यस्त रहा। दो समसामयिक मुस्लिम लेखक यूफी एवं हसन निजामी ने अपनी पुस्तक में लिखा था कि तराइन के प्रथम युद्ध की हार के बाद मुहम्मद गौरी कभी चैन से सो नहीं पाया। वो रात दिन रात अपनी हार का बदला लेने के बारे में ही सोचता रहता था।

तराइन का द्वितीय युद्ध (Second Battle of Tarain in Hindi) :

तराइन के प्रथम युद्ध के एक साल बाद ही 1192 ई. में. ही मुहम्मद गौरी अपनी विशाल सेना के साथ पृथ्वीराज से अपनी हार का बदला लेने हेतु तराइन के मैदान में आ धमका। उधर पृथ्वीराज अपनी विलासिता के जीवन में ही इतना व्यस्त था कि उसने अपने राज्य प्रशासन कार्यो में भी भाग लेना भी छोड़ दिया था ना ही वो दरबार में जाता था। फिर अचानक से एक दिन पृथ्वीराज को अपने गुप्तचरो से ये खबर मिली कि मुहम्मद गौरी अपने विशाल सेना के साथ दिल्ली पर हमला करने के लिए आ रहा है तब पृथ्वीराज चौहान भी अपनी आधी अधूरी सेना सहित युद्ध मैदान की ओर बढ़ा गया।

उसके साथ उसके बहनोई मेवाड़ शासक के महाराणा समरसिंह और दिल्ली के गवर्नर गोविन्द राज भी थे। मुहम्मद गोरी ने अपने दूत को पृथ्वीराज के पास एक सन्धि प्रस्ताव के साथ भेजा और उसकी अधीनता स्वीकार करने को कहा, इसका उल्लेख समसामयिक मुस्लिम लेखक हसन निजामी द्वारा अपनी पुस्तक में किया गया है। पृथ्वीराज ने प्रत्युत्तर में गौरी को चुपचाप वापस गजनी लौट जाने को बोला अन्यथा युद्ध के मैदान में आकर युद्ध करने के लिए कहा। गौरी ये युद्ध साम, दाम, दंड, भेद कुछ भी करके जीतना चाहता था इसलिए उस ने फिर से छल का सहारा लिया।

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पृथ्वीराज को भुलावे में रखने हेतु दुबारा एक दूत भेजा। उस दूत ने पृथ्वीराज से कहा की मुहम्मद गौरी ने अपना एक दूत अपने भाई गौर के शासक शाहबुद्दीन के पास भेजा है। अगर उसका भाई उसको अनुमति देता है तो वो आपसे संधि कर लेगा और बिना युद्ध किये ही वापस अपने स्वदेश गजनी लौट जाएगा।

इतिहासकार मानते है कि पृथ्वीराज संभवत: गौरी की बातो पर विश्वास कर दिया और आधी अधूरी तैयारी से सेना लेकर तराइन के मैदान में पहुँच गया जब वो अपनी आधी अधूरी सेना लेकर तराइन के मैदान में पहुँचा तो उसकी सेना और उसको को देखकर नहीं लगता था की वो युद्ध करने आए है। तथा तराइन के मैदान में जाने के बाद भी संधिवार्ता के भ्रम में पृथ्वीराज के सैनिक रातभर आमोद-प्रमोद करने में और मदिरापान करने में व्यस्त रहे।

सुबह के समय में जब चौहान सेना शौचालय और नहाने में व्यस्त थी तभी अचानक से गौरी की सेना चौहान सेना पर आक्रमण कर दिया। चौहान सेना को बिलकुल सम्भलने का समय नहीं मिला। इससे पूरी सेना में भगदड़ मच गई। इस प्रकार दोनों सेनाओं के बीच तराइन का द्वितीय युद्ध हुआ, तराइन का द्वितीय युद्ध गौरी बड़ी आसानी से जीत गया। साम-दाम-दण्ड-भेद की नीति से मुहम्मद गौरी की विजय हुई। एक तरह से कहा जाए तो ये एक छल से जीता हुआ युद्ध था इसके बाद गौरी का अजमेर एवं दिल्ली पर अधिकार हो गया।

तराइन का द्वितीय युद्ध के बाद गौरी ने अजमेर का शासन पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्द राज को दे दिया। परन्तु कुछ समय बाद ही पृथ्वीराज के भाई हरिराज ने पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्द राज से छीनकर अजमेर पर अपना अधिकार कर लिया।

इसके बाद मुहम्मद गौरी ने भारत में जितने भी प्रदेश पर विजय प्राप्त की थी उन सब का प्रशासन अपने दास सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को संभला दिया एवं स्वयं वापस गजनी लौट गया। कुतुबुद्दीन ऐबक गुलाम वंश का संस्थापक और दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था विग्रहराज चतुर्थ ने अजमेर में एक संस्कृत पाठशाला का निर्माण करवाया था कुतुबुद्दीन ऐबक ने उस पाठशाला को तोड़ दिया और वहाँ ढाई दिन के झोपड़ा नामक मस्जिद का निर्माण करवाया।

पृथ्वीराज का अंत कैसे हुआ? (How did Prithviraj end in Hindi?) :

तराइन के द्वितीय युद्ध में हार के बाद पृथ्वीराज चौहान का अंत या कहे की उनकी मृत्यु की किस प्रकार हुआ इसके संबंध में समकालीन अलग-अलग लेखक अलग-अलग बात बताते हैं, प्रमुख लेखकों के मत निम्नलिखित हैं-

  1. चन्दबरदाई जो की पृथ्वीराज चौहान का दरबारी कवि था उसने पृथ्वीराज रासौ नामक कृत लिखी। जिसमे पृथ्वीराज चौहान के शासन काल के बारे में महवत्पूर्ण जानकारी प्राप्त होती है उस में चंदबरदाई ने लिखा है पृथ्वीराज चौहान को सिरसा (जो की अभी हरियाणा में ) के पास सरस्वती नामक स्थान पर बंदी बनाकर रखा गया और मुहम्मद गौरी द्वारा उसे अंधा कर दिया गया। तथापि वहाँ चन्दबरदाई ने एक की कविता पृथ्वीराज चौहान को सुनाई उसके आधार पर शब्द भेदी बाण से पृथ्वीराज ने मुहम्मद गौरी को मार दिया एवं इसके बाद सार्व पृथ्वीराज व चन्दबरदाई का कटार से दोनों का आत्महत्या कर लेने का उल्लेख हमें पृथ्वीराज रासो में पढ़ने को मिलता है।
  2. हम्मीर महाकाव्य में भी मुहम्मद गौरी द्वारा पृथ्वीराज चौहान को कैद कर जेल में ही मरवा देने का उल्लेख किया गया है।
  3. विरुद्ध विधिविध्वंस में पृथ्वीराज का तराइन का द्वितीय युद्ध में बहादुरी से लड़ते हुए शहीद होना लिखा है।
  4. दो समसामयिक मुस्लिम लेखक यूफी एवं हसन निजामी ने अपनी पुस्तको में लिखा है कि सुल्तान ने पृथ्वीराज को तराइन का द्वितीय युद्ध में कैद कर लिया एवं फिर उसे अजमेर ले जाया गया। उसे वापस अजमेर के सिहांसन पर बैठा दिया। हसन निजामी ने आगे लिखा है कि पृथ्वीराज (जो इस्लाम का शत्रु था) ने सुल्तान के खिलाफ वादाखिलाफी की और उनके विरुद्ध युद्ध करने की योजना बनाई। इससे सुल्तान मुहम्मद गौरी ने क्रोधित होकर उसकी हत्या कर दी गई।

उक्त सभी समकालीन लेखकों के मतों के आधार पर सामान्य तौर इतिहासकार पर यहअनुमान लगाते है कि तराइन के द्वितीय युद्ध में बुरी तरह से पराजित होने के बाद शायद पृथ्वीराज को बंदी बनाकर वापस अजमेर लाया गया हो और वहाँ पर मुहम्मद गौरी की अधीनता में अजमेर और दिल्ली पर शासन करने को कहा गया हो, लेकिन ये पृथ्वीराज चौहान के लिए ये शर्त उनके सम्मान और निष्ठा के अनुकूल नहीं थी इसलिए पृथ्वीराज ने गौरी के विरुद्ध कोई षड्यंत्र रचने की कोशिश को हो या गौरी को मारने की कोशिश की जिसका पता गौरी को लग गया इसलिए उसने क्रोधित होकर उसकी हत्या कर दी गई हो।

इस मत के समर्थन में कुछ इतिहासकार वो सिक्के प्रस्तुत करते है जिसमे तराइन का द्वितीय युद्ध के बाद पृथ्वीराज और मुहम्मद गौरी के जारी सिक्कों पर एक और पृथ्वीराज का तथा दूसरी ओर मुहम्मद गौरी के नाम की मुहर लगी हुई थी और ये भी हो सकता है कि पृथ्वीराज को मारने के बाद मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज के पुत्र गोविंदराज को अपने अधीन अजमेर और दिल्ली का शासन सौपा हो।

तराइन का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी परिवर्तनकारी घटना साबित हुआ। इससे भारत में स्थायी रूप से मुस्लिम साम्राज्य का प्रारंभ हुआ। मुहम्मद गौरी ने तराइन का द्वितीय युद्ध जीतने के बाद कुछ ही समय में गौरी ने कन्नौज, गुजरात, बिहार आदि क्षेत्रों पर आक्रमण करके अपने साम्राज्य में मिला दिया।

तराइन के प्रथम युद्ध और Second Battle of Tarain in Hindi जानकारी का विस्तृत विवरण पृथ्वीराज के दरबारी कवि चन्द्र बरदाई के ‘पृथ्वीराज रासो’, हसन निजामी के ‘ताजुल मासिर’ एवं सिराज के तबकात-ए-नासिरी में मिलता है।

पृथ्वीराज चौहान की पराजय के कारण :

तराइन का द्वितीय युद्ध (Second Battle of Tarain in Hindi) में पृथ्वीराज की हार का सबसे प्रमुख कारण गौरी की सुव्यवस्थित व कुशल युद्ध नीति थी उसने युद्ध जीतने के छल कपट का सहारा लिया, गौरी ने साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाई। इसके अलावा दूसरा सबसे प्रमुख कारण पृथ्वीराज का अपने चारों ओर के राजाओं को अपना शत्रु बना लिया उसने कन्नौज के शासक जयचंद की पुत्री का अपहरण कर लिया इससे जयचंद पृथ्वीराज चौहान का शत्रु बन गया उसने तराइन का द्वितीय युद्ध(Second Battle of Tarain in Hindi) में गौरी दिया,

कुछ इतिहासकार मानते है कि पृथ्वीराज चौहान में में दूरदर्शिता का अभाव था तराइन के प्रथम युद्ध में गौरी को हराने सम्पूर्ण नाश कर देना चाहिए था लेकिन पृथ्वीराज ने उसे जिन्दा छोड़ दिया जो की उसकी सबसे बड़ी भूल थी। इसके आलावा जयचंद की पुत्री साथ विवाह करने के बाद वो आमोद-प्रमोद और विलासिता में व्यस्त रहा उसने युद्ध की कोई तैयारी नहीं। ऐसे बहुत सारे अन्य कारण थे जिससे पृथ्वी राज की तराइन का द्वितीय युद्ध (Second Battle of Tarain in Hindi )में हार हुई।

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