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संकटा माता की कथा | Sankata Mata Ki Kahani

Posted on April 29, 2022

संकटा माता की कथा कहने और संकटा माता का व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। जो लोग संकटा माता की कथा सुनते और पढ़ते है, उनके घरो में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती है। इसलिए संकटा माता की कथा को पूरा पढ़े, संकटा माता आपकी सारी मनोकामनाएँ पूरी करेगी।

संकटा माता की कथा | Sankata Mata Ki Kahani

एक बार की बात है एक राज्य में एक राजा रहते थे। राजा बड़े ही प्रजा प्रेमी और सबका भला चाहने वाले थे। उनके राज्य में उनके परिवार को और प्रजा को किसी भी तरह की कोई कमी नहीं थी। सब लोग बहुत खुशहाल और सुख शांति से रहते थे। लेकिन राजा को हमेशा एक चिंता सताती रहती थी, क्योंकि उस राजा और रानी की कोई संतान नहीं थी।

एक दिन राजा सुबह सवेरे सैर पर निकले, तब एक औरत अपने घर के बाहर झाड़ू लगा रही थी। राजा को देखकर वो बोली कि हे भगवान आज सुबह सवेरे कैसे वंशहीन आदमी का चेहरा देख लिया। आज का दिन तो बहुत खराब जाएगा। राजा ने यह बात सुनी अनसुनी करके अपने महल में वापस आ गए।

राजा पूरे दिन इसी घटना को याद कर करके दुखी और परेशान हो गए। रात के भोजन के समय जब उनकी रानी ने उनकी चिंता का कारण पूछा तो उन्होंने कुछ नहीं कह कर बात को टाल दी। लेकिन जब रानी के बहुत बार पूछने पर कि राजा जी आपको क्या चिंता सता रही है? आपको किस बात की परेशानी है? तो राजा ने अपनी रानी को सुबह वाला घटनाक्रम बता दिया।

राजा की बात सुनकर रानी को भी दुख हुआ कि वह अपनी प्रजा की देखभाल करने में कोई कमी नहीं रखता है, लेकिन फिर भी उनको संतान ना होने की वजह से लोग उनका चेहरा देखना अशुभ मानते हैं। राजा की परेशानी की वजह से रानी भी चिंता में आ गई और यही बात रानी की एक विश्वसनीय राशि ने पूछ ली, रानी साहिबा आपकी चिंता का कारण क्या है? वह क्या चीज है जो आपको परेशान कर रही है?

रानी ने उसे टालना चाहा, लेकिन दासी की बहुत आग्रह करने पर रानी ने अपनी सेविका को राजा के साथ सुबह जो हुआ वह सब जस का तस सुना दिया। इस पर रानी की सेविका ने उन्हें विश्वास दिलाया कि आप मेरी बात मानों और जैसा मैं कहती हूं बिल्कुल वैसा ही करते रहिए तो इस पर रानी ने अपनी दासी की बात मान ली।

रानी की दासी ने अगले दिन पूरे राज्य में मुनादी फिरवादी की रानी गर्भवती हो गई है, इस पर राजा ने बहुत खुश हो कर ढेर सारे उपहार दिए और जब राजा रानी से मिलने गए तो दास जी ने उन्हें रोकते हुए कहा कि आप जब तक रानी के बालक नहीं होता, तब तक तब उनके कक्ष में प्रवेश नहीं कर सकेंगे।

राजा के बहुत मनाने पर भी दासी नहीं मानी और राजू को वहां से रवाना कर दिया। रानी बैठे-बैठे परेशान हो रही थी कि अपनी दासी के कहने पर रानी नै राजा से ही नहीं, बल्कि पूरी राज्य की प्रजा से झूठ बोला था कि वह गर्भवती है। धीरे धीरे करते करते 9 महीने पूरे हो गए और अब रानी को दिन-रात चिंता सताने लगी। रानि बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गई थी क्योंकि उसे पता था कि राजा कभी भी आकर उनसे पूछ सकते हैं कि बताओ हमारा बालक कहां है?

तब रानी राजा को क्या जवाब देगी? रानी ने अपने यह दुविधा अपनी दासी से कहीं, लेकिन दासी ने उन्हें कहा कि आप निश्चित होकर मेरा विश्वास करें। तब दासी ने पूरे राज्य में यह मुनादी फिरवादी की रानी ने एक बहुत ही सुंदर पुत्र रत्न को जन्म दिया है। यह सुनकर राज्य में सभी लोग बहुत प्रसन्न हुए, जब राजा अपने पुत्र को देखने के लिए रानी के कमरे में गए तब दासी ने उन्हें दरवाजे पर ही रोक लिया और कहा कि हे महाराज जब आपने इतनी प्रतीक्षा की है तो थोड़ी प्रतीक्षा और कर लीजिए।

अब आप अपने पुत्र का मुंह कुछ समय बाद ही देखना। दास ने फिर नगर में मुनादी फिरवाड़ी की राजकुमार का नामकरण संस्कार हो गया है फिर कुछ और समय बीतने के बाद उसने यह मुनादी करवाई कि राजकुमार का मुंडन संस्कार भी हो गया है। राजा से अब नहीं रहा गया।

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राजा रानी के कक्ष में रानी से मिलने गए, दासी ने उन्हें दरवाजे पर रोककर बोला कि हे महाराज अभी अपने पुत्र का मुंह देखना आपके लिए शुभ संकेत नहीं है इसलिए आप अपने पुत्र को सिर्फ तभी देख पाएंगे जब वह 12 वर्ष का हो जाएगा। जब उसकी उम्र 12 वर्ष हो जाएगी तब हम उसका विवाह करवाएंगे। अब तो आप अपने पुत्र का मुंह उसके विवाह मंडप में भी नहीं देख सकेंगे।

यह कहकर दासी रानी का कमरा अंदर से बंद कर दिया। धीरे-धीरे समय बीता और 12 वर्ष पूरे हो गए। 12 वर्ष पूरे होने पर दासी ने अपने राजा से कहा कि है महाराज अब आपका पुत्र 12 वर्ष का हो गया है। आप उसके लिए वधु ढूंढना शुरू कर दीजिए और शादी की तैयारियां करवाना भी शुरू कर दीजिए। राजा ने अपने पुत्र के लिए दूर देश के एक बहुत ही सुंदर राजकुमारी से अपने पुत्र का विवाह तय कर दिया।

राज्य में राजकुमार की शादी की तैयारियां बहुत धूमधाम से चलने लगी। दूसरी तरफ दासी ने सवा मन चावल का आटा मंगवाया, इस आटे से उसने एक बहुत ही सुंदर और आकर्षक 12 वर्ष के बालक जितना पुतला बनवाया। इस पुतले पर दासी नेगी और मेवों से बहुत ही सुंदर सजावट की। इसके बाद दासी ने उस पुतले को बिल्कुल एक दूल्हे की तरह सजाया और एक पालकी मंगवाई दासी ने उस चावल के पुतले को बहुत ही सुगंधित कर दिया और उस पालकी में बिठा दिया।

दासी ने राजा से विशेष प्रार्थना कि हमेशा मेरे ही साथ रहे हैं इसलिए आज उनकी बारात के शुद्ध हिंदी में ही उनके साथ पालकी में बैठूंगी। दासी की यह प्रार्थना राजा ने स्वीकार कर ली और बारात चलने लगी। चलते-चलते बारात एक घने जंगल से गुजरी और रास्ते में जब संकटा माता का मंदिर आया तो वहां पर दासी ने विश्राम लेने के लिए कहा।

इसके बाद दासी उस चावल के पुतले को पालकी में ही रख कर कुएं से पानी पीने के लिए गए। तभी उन्हें एक बहुत अच्छी खुशबू आई और उन्होंने देखा कि यह खुशबू एक पालकी से आ रही है। संकटा माता और उनकी सहेलियों ने पालकी में झांक कर देखा तो उन्हें पता चला कि पालकी में एक बहुत ही विशाल मानव रूपी मिठाई रखी हुई है सब ने मिलकर उस मिठाई को पूरा खा लिया। मिठाई खाकर संकटा माता और उनकी सहेलियां वापस मंदिर में चले गए।

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जगदा से पानी पीकर वापस आए तो देखा कि पालकी में तो कोई नहीं है यह देखकर दासी बहुत घबरा गई। वह संकटा माता के मंदिर में जाकर जोर-जोर से विलाप करने लगी कि माता लेटा दो या बेटा दो लेटा दो या बेटा दो। दासी का विलाप सुनकर संकटा माता प्रकट हुई और दासी ने माता से कहा कि हे माता लेटा दो या बेटा दो, लेटा दो, लेटा दो या बेटा दो।

तो माता ने कहा कि अब मैं तुम्हें बेटा कहां से दूं और मिठाई बहुत सुगंधित थी तो मैं तो अब उसे खा गयी, लेकिन दासी ने विलाप करना नहीं छोड़ा तो संकटा माता ने उसकी बात मानते हुए कहा कि ठीक है मैं तुम्हें एक बेटा देती हूं लेकिन मेरी एक शर्त है दासी ने बोला कि माता बताओ आपकी क्या शर्त है? तो संकटा माता ने कहा कि मैं तुम्हें एक बेटा जरूर दूंगी।

लेकिन 24 घंटे के अंदर मैं अपना बेटा वापस ले लूंगी। दासी ने माता की बात मान ली और संकटा माता ने अपने चमत्कार से दासी को एक बहुत ही सुंदर 12 वर्ष का बेटा दिया। इतना अप्रतिम सुंदर बालक देखकर दासी तो आश्चर्यचकित ही हो गई। बालक को पालकी में बिठाकर जब वे सब विवाह स्थल पर पहुंचे तो राजकुमार को चँवरी में बैठाया गया।

तब दासी ने राजा से कहा कि है महाराज अब आप अपने पुत्र का चेहरा देख सकते हैं। जब राजा अपने राजकुमार के पास गया तो अपने बेटे का इतना सुंदर और भव्य रूप देखकर आश्चर्यचकित रह गया। तब राजन ने कहा कि बालक की ऐसी सुंदरता की वजह से आपने मुझे इतने वर्ष तक इसके पास भी नहीं जाने दिया। लेकिन अब मैं अपने पुत्र को जी भर कर देख लूंगा।

राजकुमार का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ और सभी लोग वापस अपने राज्य आ गए। दासी ने रानी को अपने बेटे और बहू की आरती उतारने के लिए दरवाजे पर बुलाया। लेकिन रानी तो डर के मारे अपने कक्ष में कांप रही थी। रानी को यह लग रहा था कि उसके असल में तो कोई पुत्र है ही नहीं, यह बात जब राजा को पता चलेगी तो राजा उससे गुस्से में आकर भयंकर दंड देंगे।

लेकिन राशि के बार-बार बाहर बुलाने पर रानी ने जब खिड़की से बाहर देखा तो सच में ही एक राजकुमारी बहुत ही सुंदर राजकुमारी को अपने दरवाजे पर खड़ा पाया। रानी पूजा की थाली बाहर लेकर आई और अपने बेटे को घर के अंदर प्रवेश दिलाया। दासी की चिंता बढ़ गई जब उसे संकटा माता की बात याद आई।

दासी ने एक युक्ति लगाई और रानी से जाकर कहा कि कल हम बहू की मुंह दिखाई की रस्म का आयोजन करेंगे तो राज्य की सभी औरतों को निमंत्रण देना है रानी ने कहा ठीक है तो अगले दिन सुबह राज्य भर की सारी औरतें राज महल के सामने इकट्ठा होने लगी।

दासी ने बहू को खूब अच्छे से सत्संग समझाया कि तुम्हें हर स्त्री के पैर छूने हैं चाहे वह स्त्री किसी भी वर्ग की वह किसी भी जाति की हो, तुम्हें हर स्त्री के पैर छूकर जब तक भरथरी अखंड सौभाग्यवती भव पुत्रवती भव का आशीर्वाद ना दे। तब तक तुम किसी के पैर छोड़ना मत, बहू ने ऐसा ही किया मैंने सारी औरतो के पैर छुए और सब ने बहु को अखंड सौभाग्यवती भव पुत्रवती भव का आशीर्वाद दिया।

लेकिन देखा कि दूर एक पेड़ के नीचे एक बूढ़ी औरत बहुत ही मिले कपड़े पहन कर चुपचाप बैठी है उसके पास भी गई और उसके पैर छूकर आशीर्वाद लेने की कोशिश की तब उस बूढ़ी मैया ने बहू को सुखी रहने का और खुश रहने का आशीर्वाद दिया।

लेकिन बहू ने तभी बूढ़ी मैया के पैर नहीं छोड़े सबुरी मैया के मुंह से अचानक निकल गया, अखंड सौभाग्यवती भव: पुत्रवती भव: इतना कहती दासी वहां भागते भागते आई और बूढ़ी मैया से बोली – है माता हमने आप को पहचान लिया है।

अब आप अपना बेटा वापस नहीं ले सकती है क्योंकि आपने हमारी बहू को अखंड सौभाग्यवती भव और पुत्रवती भव का आशीर्वाद दिया तो अगर आप हमारा बेटा ले लेंगी तो बहू अखंड सौभाग्यवती कैसे रह पाएगी? यह सुनकर माता रानी हंसने लगी और कहने लगी कि तुम बहुत चतुर हो,

आज तुमने हमें हरा दिया इस प्रकार दासी रानी राजा और बहू सभी सुख समृद्धि से रहने लगे।
जिस प्रकार आपने रानी को पुत्र देकर उसके संकट को दूर किया। दासी की प्रार्थना सुनकर उसके संकट को पूरा किया। उसी प्रकार आप हमारे जीवन के संकट दूर करके हमारा जीवन भी सुख समृद्धि से भर दें।
|| बोलो संकटा माता की जय ||

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