Rani Ratnavati – राजस्थान की अलवर जिले में अरावली की वादियों के बीच बना यह किला भानगढ़ के किले के नाम से जाना जाता है इस किले को आमेर के कछवाहा शासक भगवान सिंह ने अपने छोटे बेटे के लिए 1573 ईस्वी में बनवाया था। मुग़ल शासक अकबर की सेना के सेनापति मानसिंह के भाई माधो सिंह के मरने के बाद उनके बेटे छत्र सिंह ने यहां अपना शासन किया। छत्र सिंह के बाद उनके बेटे राजा अजब सिंह ने अजबगढ़ का किला बनवाया था।
महाराजा माधव सिंह के समय भानगढ़ में लगभग 10,000 के करीब जनसंख्या निवास करती थी भानगढ़ का किला तीन तरफ से अरावली की पहाड़ियों से घिरा है यहां की हरियाली और सुंदरता देखते ही बनती है भानगढ़ का किला हवेलियों और महलों के पत्थरों पर की गई नक्काशी के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है राजा माधव सिंह ने इस किले में दो मंदिर भी बनवाए थे जिसमें एक हनुमान जी का है और दूसरा भगवान शिव का है।
इस किले को दुश्मन सेना के आक्रमणों से बचाने के लिए तीन मजबूत सुरक्षा प्राचीरो से लैस किया गया था इस जिले में आने के लिए पांच प्रवेश द्वार भी बनाए गए हैं। इस किले को बताने के लिए जिन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था वह इतने मजबूत है कि आज भी भानगढ़ का किला देखने के लिए जितने भी लोग आते हैं इसे देखकर एक बात तो समझ जाते हैं कि जितनी शानदार इसकी हवेलियां दिखती है उतना ही भयानक इसका अतीत रहा है भानगढ़ किले के विराने पन के पीछे बहुत ही प्रचलित कहानी है।
रानी रत्नावती की कहानी (Rani Ratnavati Story in Hindi) :
इस कहानी के अनुसार रानी रत्नावती जो कि महाराज छात्र सिंह की बेटी थी वो की बहुत ही खूबसूरत थी और रानी रत्नावती के खूबसूरती के चर्चे बहुत जल्दी ही पूरे भारत में फैल गए। जगह-जगह से लोग इनकी खूबसूरती देखने के लिए आते थे। रानी रत्नावती के लिए भारत के लगभग सभी बड़े राजघरानों से विवाह प्रस्ताव आ चुके थे।
रानी रत्नावती की उम्र उस समय 18 वर्ष की थी जब वो एक दिन कुछ चित्र खरीदने के लिए अपनी दासी और सहेलियों के साथ भानगढ़ का बाजार देखनेनिकली। जब वो बाज़ार घूम रहे थे तब उनकी नज़र एक इत्र की दुकान पर पड़ी। उन्हें एक इत्र की बोतल बहुत पसंद आई जो देखने में बहुत अच्छी दिख रही थी, उन्होंने इत्र की शीशी को छुआ ही था, तभी वहां एक साधु जिसका नाम सिंधिया था थोड़ी दूरी पर रानी रत्नावती की सारी गतिविधियों को बड़े गौर से देख रहा था व राजकुमारी पर पूर्ण तरीके से मोहित हो चुका था।
लेकिन उस साधु को इस बात का भी ध्यान था कि उसका Rani Ratnavati के साथ उसका कोई भविष्य नहीं है सिंधिया काले जादू में बहुत निपुण था और भानगढ़ के आसपास के इलाकों में ही रहता था वह हर संभव रानी रत्नावती को पाने की कोशिश करता था ऐसा कहा जाता है कि सिंधिया राजकुमारी को पाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा था और उसकी तरफ आकर्षित होने लगा था उसे लगने लगा था कि वह Rani Ratnavati से प्रेम करने लगा है इसलिए उसने राजकुमारी पर नजर रखना शुरू कर दिया था एक दिन वह बाजार से देखा कि रानी रत्नावती अपने साथियों के साथ बाजार घूमने आए हैं।
Rani Ratnavati जैसे ही दुकानदार की तरफ मुड़ी तभी सिंधिया ने Rani Ratnavati की इत्र की बोतल पर काला जादू कर दिया, वो जादू Rani Ratnavati के वशीकरण के लिए था और वो जादू ऐसा था कि जो उस इत्र को लगाएगा वह तांत्रिक के प्रेम में सम्मोहित होकर तांत्रिक की तरफ खिंचा चला जाएगा, और वो तांत्रिक के प्यार में पूरी तरह से पागल हो जाएगा।
Rani Ratnavati ने वो इत्र की शीशी उस दुकानदार से खरीब ली लेकिन जब वो बाजार में और सामान लेने के लिए घूम रही थी तब उनके हाथ से वो इत्र की बोतल रास्ते में बड़े पत्थर पर गिरकर टूट गई। अब वह पत्थर तांत्रिक के प्यार में सम्मोहित होकर तांत्रिक की और जाने लगे।
तांत्रिक जब अपने कुटिया में बैठा था तभी उसे किसी के आने की आवाज आई, तांत्रिक को लगा की Rani Ratnavati उसके प्यार में सम्मोहित होकर आई होगी। उसने अपने कुटिया के दरवाजे की तरफ बिना देखे ही अपनी छाती पर बैठने को बोला दिया और वो बड़ा पत्थर जो तांत्रिक के प्यार में पूरी तरीके से सम्मोहित था सीधा ही तांत्रिक की छाती पर जाकर बैठ गया और उस तांत्रिक को कुचल दिया, लेकिन मरने से पहले उसने भानगढ़ की बर्बादी का श्राप दे दिया और ऐसा माना जाता है कि कुछ वक्त के बाद एक युद्ध हुआ जिसमें भानगढ़ का राज्य पूरी तरीके से बर्बाद हो गया और बहुत सारे लोग मारे गए।
Rani Ratnavati भी उस तांत्रिक के श्राप से बच नहीं पाई और Rani Ratnavati की भी मौत हो गई। एक किले में इतने बड़े कत्लेआम के बाद मौत की चीखें गूंज गई। आज भी उस किले के अंदर उन चीखो की आवाज सुनाई देती है।
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भानगढ़ किले की कहानी (Bhangarh Kile ki Kahani in Hindi) :
भानगढ़ के किले में एक साधु रहते थे और भानगढ़ के दुर्ग के निर्माण के समय उन्होंने चेतावनी दी थी कि महल की ऊंचाई थोड़ी कम रखी जाए ताकि महल के परछाई उनके कुटिया तक ना पहुंचे लेकिन जो भानगढ़ का किला बना रहा था उसने साधु की बात पर ध्यान नहीं दिया और अपनी मर्जी से महल को बनाया। उस महल की परछाई साधु की कुटिया तक पहुंचने लगी साधु ने गुस्से में श्राप दे दिया कि भानगढ़ का किला और भानगढ़ राज्य पूरी तरीक से तबाह हो जाए।
भानगढ़ किले का रहस्य (Mystery of Bhangarh Fort in Hindi) :
भानगढ़ किले को लेकर एक और कहानी है 1781 में शताब्दी में भानगढ़ से भयंकर अकाल पड़ा था। इसके कारण वहां पे पानी की कमी हो रही थी 1782 में यहां एक और भयंकर अकाल पड़ा इस अकाल ने यहां की बहुत सारी आबादी को खत्म कर दिया। बांगड़ पूरी तरह उजड़ गया फिलहाल भानगढ़ के किले की देखरेख भारत सरकार के द्वारा की जाती है और उसके लिए भानगढ़ किले के आसपास भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की टीम हमेशा रहती हैं सरकार ने वहां पे एक बोर्ड पे चेतावनी दे रखी है कि सूर्यास्त के बाद भानगढ़ किले में ना रुके।
सूर्यास्त के बाद जो भी भानगढ़ किले अंदर जाता है वह कभी लौट कर वापस नहीं आता है। वहाँ पर कई बार लोगों को प्रेत आत्मा ने परेशान किया है और कुछ लोगों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ा है। एक बार भारतीय सरकार ने और अर्ध सैनिक बलों की टुकड़ी को मां तैनात किया था ताकि भानगढ़ के किले की सच्चाई से रूबरू हुआ जाए लेकिन वह भी असफल रहे।
तो ये थी Rani Ratnavati और भानगढ़ किले की कहानी।
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