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राणा सांगा के जीवन की पूरी जानकारी (Rana Sanga History in Hindi)

Posted on January 22, 2022

राणा सांगा (Rana Sanga) एक बार फिर हम आपके सामने हाजिर हैं लेकर राजस्थान के वीर अमर पुत्रों की कथा लेकर आज इस पोस्ट में हम जिस महान राजा और वीर योद्धा की बात करेंगे वह महाराणा कुंभा की तरह ही मेवाड़ के सिसोदिया या गोहिल राजवंश से संबंधित है आज हम इस पोस्ट में महाराणा सांगा के बारे में उनके जीवन और उनकी अपनी उपलब्धियों के बारे में चर्चा करेंगे।

राणा सांगा जीवन परिचय (Rana Sanga Biography in Hindi) :

महाराणा कुंभा के पड़पोते Rana Sanga उनके जीतने ही शूरवीर पराक्रमी और महान शासक थे। महाराणा कुंभा के शासन के बाद उनके बेटे उदय सिंह प्रथम ने मेवाड़ की गद्दी संभाली थी। महाराणा उदय सिंह प्रथम के बाद उनके पुत्र महाराणा रायमल ने मेवाड़ का शासन अपने हाथ में लिया और महाराणा रायमल के पुत्र Rana Sanga के समय मेवाड़ अपनी उन्नति और विकास के चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया था। महाराणा रायमल और महारानी रतन कंवर के पुत्र संग्राम सिंह के शासनकाल को मेवाड़ के इतिहास का स्वर्णिम समय कहा जाता है।

महाराणा सांगा का इतिहास (Rana Sanga History in Hindi) :

मेवाड़ के सिसोदिया गोयल राजवंश के सभी राजा महान पराक्रमी और बलिदानी रहे हैं महाराणा रायमल और महारानी रतन कंवर के तीन पुत्रों में से सबसे छोटे थे महाराणा सांगा जिनका असली नाम महाराणा संग्राम सिंह है।

बचपन से ही महाराणा रायमल के तीनों पुत्रों पृथ्वीराज जयमल और संग्राम सिंह के बीच में हमेशा इस बात पर झगड़ा होते रहे कि अपने पिता महाराणा रायमल के बाद मेवाड़ का अगला शासक कौन बनेगा महाराणा रायमल को अपना बहनोई सूरजमल कुछ खास पसंद नहीं आता था कि महाराणा रायमल को यह लगता था कि उनकी तीनों पुत्रों को एक दूसरे के खिलाफ भड़काने का काम उनके बहनोई सूरजमल ही करते हैं।

तीनों भाइयों ने अपने बीच का झगड़ा मिटाने के लिए चंडी देवी माता के मंदिर में जाने और वहां के पुजारी से इसका फैसला करने के लिए कहा तो पुजारी ने कहा कि इस लायक है।

इसका फैसला तो देवी स्वयं देंगी संयोगवश देवी के परिचारक ने राणा संग्राम सिंह की तरफ इशारा किया और वही मंदिर में तीनों भाइयों के बीच में फिर से झगड़ा शुरू हो गया पृथ्वीराज ने गुस्से से तलवार निकाली और उसे राणा सांगा की तरह स्थान दिया राणा सांगा पर होने वाले हमले को रोकने के लिए सूरजमल बीच में आ गए और इस तरह से उन्होंने खुद को घायल करते हुए सांगा की जान बचा ली

लेकिन फिर पृथ्वीराज ने वहां से अपने घोड़े पर बैठकर लौटते हुए संग्राम सिंह पर अपने धनुष से एक तीर छोड़कर उनकी आंख को घायल कर दिया संग्राम सिंह ने अपनी एक आंख माता के मंदिर में हमेशा के लिए खो दी

संग्राम सिंह मेवाड़ छोड़ कर जा चुके थे और उन्होंने खुद को विद्रोहियों के एक दल में शामिल कर लिया वहां पर भी कई साल तक उसका हिस्सा बन कर रहे और आखिरकार जब उन्होंने उस दल के सरदार या मुखिया से अपनी असलियत जाहिर की तो उसने खुश होकर अपनी बेटी का विवाह संग्राम सिंह से कर दिया संग्राम सिंह के पास 1 दिन समाचार आया कि उनके दोनों भाइयों की मृत्यु हो चुकी है संग्राम सिंह मेवाड़ से इतने वर्षों तक सिर्फ इसलिए दूर थे।

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क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि उनके और उनके भाइयों के झगड़े को कोई शत्रु मेवाड़ की कमजोरी समझ कर उन पर आक्रमण ना कर दे लेकिन अभी झगड़े का मूल ही खत्म हो गया था तो उन्होंने वापस अपने पिता महाराणा रायमल के पास में लौटने का फैसला किया

उनके मेवाड़ लौटने पर उनके पिता बहुत प्रसन्न हुए और उनका बहुत धूमधाम से मेवाड़ में स्वागत किया गया
महाराणा रायमल की मृत्यु के बाद महाराणा संग्राम सिंह को मेवाड़ का अगला राजा घोषित किया गया और इस तरह महाराणा संग्राम सिंह अंततः मेवाड़ के शासक बन गए।

उस वक्त भारत पर इब्राहिम लोदी का शासन चल रहा था दिल्ली में इब्राहिम लोदी के शासन को कमजोर होता देखकर संग्राम सिंह ने इसे अपने लिए एक अच्छा सुअवसर समझा और उन्होंने दिल्ली पर आक्रमण करके उस पर अधिकार करने के लिए तैयारियां सैन्य तैयारियां शुरू कर दी

दूसरी तरफ मालवा के शासक महमूद खिलजी ने यह सोचकर मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए अपने सेना भेज दी कि महाराणा सांगा दिल्ली पर जाएंगे पीछे से में मेवाड़ पर आक्रमण करके इस पर उसको हत्या लूंगा

लेकिन वह अपने इस मंसूबे पर कामयाब नहीं हो पाया और संग्राम सिंह ने महमूद खिलजी के साथ एक भीषण युद्ध में उसे हरा कर वापस मालवा भेज दिया
दूसरी तरफ तब तक बाबर भारत में आ चुका था बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच में हुए एक निर्णायक युद्ध में आखिरकार इब्राहिम लोधी हार गया था और दिल्ली पर बाबर ने अधिकार कर लिया और मुगल वंश की नींव रखी।

राणा सांगा के युद्ध और उपलब्धियाँ (War and Achievements of Rana Sanga in Hindi) :

जब महाराणा सांगा मेवाड़ की राज गद्दी पर बैठे तो उन्होंने पाया कि उनका मेवाड़ चारों तरफ से शत्रुओं से घिरा हुआ है। महाराणा सांगा ने अपना पूरा शासनकाल युद्ध करने में बिता दिया। धौलपुर, खतौली, मांडू, गुजरात, मालवा इन सब से महाराणा सांगा के छोटे मोटे युद्ध होते ही रहते थे। ऐसा कहा जाता है कि महाराणा सांगा ने अपने जीवनकाल में लगभग सौ से ज़्यादा लड़ाइयां लड़ी थी

जिसमें उन्होंने अपनी एक आंख, एक हाथ और एक पैर तक गवाँ दिया था। राजस्थान का इतिहास लिखने वाले प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने महाराणा सांगा को सैनिकों का भग्नावशेष कहा है। इसका मतलब यह होता है कि एक सैनिक जिसके शरीर पर अस्सी से भी ज्यादा घाव हैं लेकिन उसकी बहादुरी में कभी भी किसी भी तरह की कोई कमी नहीं आई।

कई बार हार का सामना कर चुके इब्राहिम लोदी का अपने दिल्ली की सत्ता पर से कब्जा धीरे-धीरे ढीला पड़ रहा था। इब्राहिम लोदी के या यूं कहें दिल्ली सल्तनत के अधीन काम करने वाले बाकी सामंतों ने खुद को अपने अपने क्षेत्र का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया था। अपने सामन्तों की इस दग़ाबाज़ी से नाराज है ईब्राहिम लोदी ने इसका जिम्मेदार संग्राम सिंह को माना।

हालांकि वह Rana Sanga से युद्ध तो नहीं कर पाया क्योंकि उसे पता था कि अगर उसने तीसरी बार संग्राम सिंह के साथ युद्ध किया और वह अगर तीसरी बार भी हार गया तो भारत में उसकी छवि हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी तो उसने अपनी हार का बदला लेने के लिए दौलत खान लोदी ने काबुल के बाबर को भारत बुलाया।

लेकिन यहां भारत आते ही बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच पानीपत की प्रथम ऐतिहासिक लड़ाई हुई जिसमें इब्राहिम लोदी हार गया और इस तरह दिल्ली पर मुगल सल्तनत की शुरुआत हो गई। लेकिन संग्राम सिंह के जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई उन्होंने बाबर के खिलाफ खानवा के युद्ध में लड़ी। अब आइए जानते हैं खानवा के युद्ध के बारे में।

खानवा का युद्ध : 1527 में लड़े गए खानवा के प्रसिद्ध युद्ध में Rana Sanga और बाबर की सेनाएं एक-दूसरे के आमने-सामने थी। बाबर ने जिस तरीके से इब्राहिम लोदी के खिलाफ अपने तोप खानों का इस्तेमाल किया था, बाबर ने ठीक वैसा ही यहां करने की भी सोची थी।

अपने तोप खानों की मदद से उसने Rana Sanga की सेना का एक बड़ा हिस्सा तबाह कर दिया था। बाबर ने Rana Sanga के एक विश्वासपात्र सेनापति को लालच देकर अपनी तरफ मिला लिया। युद्ध के दौरान Rana Sanga घायल हो गए और उन्हें युद्ध के मैदान से बाहर लाया गया।

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि Rana Sanga को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई कि उन्हें घायल अवस्था में युद्ध के मैदान से बाहर लाया गया क्योंकि वह अभी भी घायल थे इसलिए उन्हें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए कहा गया। जब वह भोजन करने के लिए बैठे तो किसी को नहीं पता था कि यह भोजन उनके जीवन का अंतिम भोजन होने वाला है। और इस तरह इस वीर ने एक छोटे से पहाड़ी गांव बांसवा में अपने जीवन की अंतिम सांसे अपनी मातृभूमि को बचाने में समर्पित कर दी।

राणा सांगा की मृत्यु (Death of Rana Sanga in Hindi) :

बाबर के साथ हुई उनकी इस ऐतिहासिक लड़ाई जिसे हम खानवा के युद्ध के नाम से जानते हैं में घायल होने के बाद जब Rana Sanga वापस कालपी लौट रहे थे तो उनके साथ कुछ सरदार और सैनिक भी थे। विश्राम के दौरान भोजन के समय किसी ने उनके खाने में जहर मिला दिया और इस तरह पैतालीस साल की कम उम्र में ही भारत के एक और वीर प्रतापी राजा की मृत्यु हो गई।

राणा सांगा और महाराणा प्रताप का रिश्ता (Rana Sanga and Maharana Pratap Relation in Hindi) :

महाराणा प्रताप, महाराणा सांगा के पुत्र उदय सिंह द्वितीय के बेटे थे। इस प्रकार महाराणा प्रताप, Rana Sanga के पोते थे जिन्होंने मेवाड़ के राजवंश का सम्मान मुगल वंश के सामने कभी झुकने नहीं दिया। महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुई विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी की लड़ाई और निर्णायक रही लेकिन महाराणा प्रताप ने अपनी मातृभूमि को विदेशी हाथों में जाने से बचा लिया।

हमें आशा है आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आई होगी ऐसे ही और ज्ञानवर्धक और रोचक कहानियों के लिए हमारी वेबसाइट को विज़िट करते रहें। मिलते हैं अगली कहानी के साथ
तब तक के लिए
धन्यवाद

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