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राजस्थान के लोक नृत्य (Rajasthan Lok Nritya in Hindi)

राजस्थान के लोक नृत्य – आम लोगों द्वारा उल्लास, आनंद और उमंग से भरकर अपनी खुशी जाहिर करने के लिए सामूहिक रूप से किया जाने वाला नृत्य ही लोक नृत्य कहलाता है। लोक नृत्य हमारे जीवन के अभिन्न अंग होते हैं। ऐसे नृत्यों को लोक नृत्य इसलिए कहते हैं क्योंकि यह आम लोगों से जुड़े हुए हैं, सरल हैं और जनजीवन की हंसी खुशी और आनंद विलास को ज़ाहिर करते हैं। इन लोकनृत्यों में हमारे जीवन की परंपरा, हमारे संस्कार और लोगों का आध्यात्मिक विश्वास जुड़ा हुआ होता है। राजस्थान के लोक नृत्य में सरल, आडंबर हीन, नियमों, उपनियमों के जाल से बंधे हुए नहीं होते हैं इसलिए अपनी सहज सुंदरता की वजह से ये ज़्यादा प्रभावशाली होते हैं।

राजस्थान भारत का क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा राज्य है इसलिए यही वजह है कि भारत के बाकी राज्यों की अपेक्षा राजस्थान में सबसे ज्यादा लोक नृत्य देखने को मिलते हैं। यहां कई नृत्य शैलियां देखने को मिलती हैं। राजस्थान के लोक नृत्य कलात्मक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माने जाते हैं। राजस्थान में लोक नृत्य की अपनी अलग परंपराएं हैं और धारणाएं हैं और उनके अलग-अलग रूप यहां देखने को मिलते हैं। तो आज हम इस पोस्ट में राजस्थान के लोक नृत्य के बारे में बहुत विस्तार से जानने वाले हैं। हमें आशा है कि राजस्थान के लोक नृत्य यह पोस्ट आपको बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक लगेगी।

राजस्थान के लोक नृत्य चार प्रकार के होते हैं (Type of Rajasthan Lok Nritya in Hindi) :

  • जातीय लोक नृत्य
  • क्षेत्रीय लोक नृत्य
  • व्यवसायिक लोक नृत्य
  • सामाजिक और धार्मिक लोक नृत्य।

इस पोस्ट में हम राजस्थान के लोक नृत्य के बारे में बात करने वाले हैं।

घूमर लोक नृत्य (Ghumar Lok Nritya in Hindi) :

राजस्थान की बात हो, राजस्थान के लोक नृत्य की बात हो और घूमर का नाम सबसे पहले ना आए यह हो ही नहीं सकता। घूमर को लोक नृत्यों का सिरमौर कहें तो कोई दो राय नहीं होगी। यह राजस्थान की महिलाओं के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय नृत्य है। यह रजवाड़ी परंपरा से ओतप्रोत है। घूमर शास्त्रीय राग पर आधारित नृत्य है जिसमें गीत लय, ताल और धुन की दृष्टि से मधुर जीवंत और सशक्त है। घूमर में महिलाएं एक गोल घेरे में अपनी धुरी पर गोल घूमते हुए धीरे-धीरे चक्कर काटती हैं।

घूमर गणगौर और नवरात्रि पर्व पर किया जाता है। घूमर की खास बात यह है कि इसमें हाव-भाव का प्रदर्शन चेहरे से ना कर के सिर्फ हाथों की हाल-चाल से दिखाया जाता है। इसमें औरतें राजपूती पोशाक पहनकर नृत्य करती हैं। घूमर नृत्य के समय सबसे ज़्यादा गाया बजाने वाला गीत “म्हारी घूमर छे नखराली” जालंधर सारंग पर आधारित है। घूमर नृत्य में राजपूती राजघराने की नज़ाकत और नफ़ासत साफ देखी जा सकती है।

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जालौर का ढोल लोक नृत्य (Jalor ka Dhol Lok Nritya in Hindi) :

जालौर के भीनमाल के सांचलिया संप्रदाय के लोग इसे विवाह के अवसर पर करते हैं। यह नृत्य मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा किया जाता है। इसमें बहुत ही कलात्मक और चमत्कारिक रूप से ढोल बजाकर और तलवार मुंह में रखकर नृत्य की कलाएं दिखाई जाती हैं। इस नृत्य को प्रकाश में लाने का पूरा श्रेय राजस्थान के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री जय नारायण व्यास को जाता है। जालौर के ढोल नृत्य को राजस्थान के लोक नृत्य का पेशेवर नृत्य भी कहा जाता है।

तेरहताली लोक नृत्य (Terahtali Lok Nritya in Hindi) :

राजस्थान की कामड़ जाति की महिलाओं और पुरुषों द्वारा किया जाने वाला यह नृत्य बाबा रामदेव की आराधना में पोकरण, डीडवाना, पाली और उदयपुर में खास तौर पर किया जाता है। राजस्थान के लोक नृत्य में तेरह मंजीरों के जोड़ों की सहायता से तेरह अलग अलग तरह की भाव भंगिमाओं के साथ नृत्य किया जाता है।

राजस्थान के लोक नृत्य में कामड़ जाति की महिलाएं नौ मंजीरों को दाएं पांव पर, दो हाथों की कोहनी के ऊपर और एक एक मंजीरा दोनों हाथों में लेकर ताल और लय के साथ सिर पर कांसे की थाली में चरखी, लोटा और जलता हुआ दीपक रख कर, मुंह में नंगी तलवार लेकर, बैठे बैठे मंजिरों को आपस में टकरा कर यह अद्भुत नृत्य पेश करतीं हैं। पुरुष इनके पीछे बैठकर ढोलक और तंबूरा बजाकर गायकी करते हैं। इस नृत्य शैली में शारीरिक कौशल बहुत ज्यादा प्रदर्शित किया जाता है। इसमें जीवन के अलग-अलग पहलुओं को तेरह ताल में मंजीरे बजाकर अभिव्यक्त किया जाता है।

कालबेलिया लोक नृत्य (Kablbeliya Lok Nritya in Hindi) :

घूमर की तरह ही राजस्थान का एक और सबसे प्रसिद्ध नृत्य कालबेलिया नृत्य कहा जाता है। यह जाति राजस्थान के पाली, जोधपुर, भरतपुर, सिरोही, कोटा, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, अजमेर, उदयपुर, बांसवाड़ा ज़िलों में पाई जाती है। कालबेलिया जाति अपने जीवन में नृत्य और संगीत के विशिष्ट स्थान के लिए जानी जाती है। तीज त्योहारों, होली, दीपावली पर इस जाति के लोग बड़े आनंद के साथ नृत्य करते दिखाई देते हैं।

कालबेलिया जाति का पारंपरिक वाद्य यंत्र डफ और बीन माने जाते हैं। बीन के स्वर और डफ की लय पर कालबेलिया महिलाएं गीत गाते हुए नृत्य करती हैं। कालबेलिया महिलाओं के शरीर का लचीलापन देखते ही बनता है। इस नृत्य के दौरान कालबेलिया महिलाएं मुंह से नोट उठाने, आंखों की पुतलियों से अंगूठी उठाने जैसे हैरतंगेज कारनामे दिखाती हैं।

चकरी लोक नृत्य (Chkari Lok Nritya in Hindi) :

मंजीरा, नगाड़े, ढप, ढोलक की लय पर कंजर जाति की बालाओं के द्वारा तेज रफ्तार से किया जाने वाला नृत्य चकरी नृत्य कहलाता है। इसमें तेज रफ्तार से घूमते हुए गोल घेरे में नृत्य करती हैं इसलिए इसे चक्रिय या चक्राकार नृत्य भी कहा जाता है।

घुड़ला लोक नृत्य (Ghudla Lok Nritya in Hindi) :

महिलाओं और बालिकाओं द्वारा किया जाने वाला यह नृत्य चैत्र कृष्ण अष्टमी को खास तौर पर किया जाता है। इस दिन सिर पर कई छेद वाले मटके में जलता दीपक रखकर “घुड़ला गीत” गाते हुए नृत्य करते हुए गांव में घूमती हैं।

धाकड़ लोक नृत्य (Dhakad Lok Nritya in Hindi) :

झालापाव और बीरा के बीच में हुए ऐतिहासिक युद्ध में झालापाव की जीत की खुशी में यह नृत्य किया जाता है। राजस्थान के लोक नृत्य में फरसा, डाँग, ढाल आदि लेकर कई तरह की कलाएं दिखाई जाती हैं। यह नृत्य दो दल बनाकर किया जाता है और इसमें युद्ध से जुड़ी हुई सभी कलाओं का प्रदर्शन बहुत ही सरल और आकर्षक तरीके से किया जाता है।

भवाई लोक नृत्य (Bhawai Lok Nritya in Hindi) :

उदयपुर जिले में रहने वाली भवाई जाति का यह एक प्रमुख नृत्य है। इस नृत्य की मुख्य विशेषताएं शारीरिक नृत्य की अदायगी के अद्भुत चमत्कार और कलाकारी की विविधता है। महिलाएं सिर पर सात आठ मटके रखकर नृत्य करती हैं। राजस्थान के लोक नृत्य में मटके सिर पर उठाए ही वे मुंह से रुमाल उठाना, थाली के किनारों पर नृत्य करना, तलवार की धार पर नृत्य करना, गिलासों पर चलना, धधकते अंगारों पर नृत्य करना जैसे करतब दिखातीं हैं। इस नृत्य के माध्यम से जीबन के कई सारे रंग दिखाए जाते हैं।

मारवाड़ का डांडिया लोक नृत्य (Marwad ka Dandiya Lok Nritya in Hindi) :

यह राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र का सबसे प्रमुख नृत्य है। इसमें दस पन्द्रह पुरुष अलग-अलग तरह की वेशभूषा पहनकर और स्वांग रचकर बड़े से गोल घेरे में लकड़ी की बड़ी-बड़ी छड़ीयों को आपस में टकराते हुए नृत्य करते हैं। इस घेरे के बीच में ढोल वादक, सितार वादक और गायक खड़े होते हैं।

गवरी या राई लोक नृत्य (Gavri Lok Nritya in Hindi) :

उदयपुर ज़िले के भीलों के द्वारा किया जाने वाला यह धार्मिक नृत्य भाद्रपद महीने से लेकर अश्विन शुक्ल एकादशी तक किया जाता है। इस नृत्य में एक तरह से नाटकों का मंचन किया जाता है। इस नृत्य में शिव और भस्मासुर की पौराणिक कथा का नाट्य रूपांतरण भी दिखाया जाता है।

गैर लोक नृत्य (Gair Lok Nritya in Hindi) :

फाल्गुन महीने में किया जाने वाला यह नृत्य जिसमें पुरुष नर्तक हाथ में लकड़ी की छड़ लेकर एक दूसरे की छड़ों को टकराते हुए गोल घेरे में नृत्य करते हैं। इसमें इस्तेमाल होने वाली लकड़ी की छड़ी को खांडा और नर्तक को गैरिये कहा जाता है। यह मुख्यतः होली के अवसर पर किया जाता है और यह बहुत प्रसिद्ध है। लोग बड़े चाव से दूर दूर से इस नृत्य को देखने आते हैं। घेरे के बीच में ढोल, थाली, मंडल बजाने वाले खड़े हो होते हैं। महिलाएं इस अवसर पर फाग के गीत गाती हैं।

वालर लोक नृत्य (Walar Lok Nritya in Hindi) :

इसमें महिलाएं और पुरुष एक साथ आधे गोले बनाकर बहुत ही धीमी चाल से नृत्य करते हैं। इसमें किसी भी तरह का वाद्य यंत्र इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह गरासियों का बहुत ही प्रसिद्ध नृत्य है। इस नृत्य में गाए जाने वाले गीत बहुत ही लयात्मक होते हैं। बाहर के आधे घेरे में पुरुष और अंदर के आधे घेरे में महिलाएं होती हैं। इसकी खास बात यह है कि इसमें दोनों घरों में नृत्य करने वाले वालों के पद संचालन और एकरूपता देखते ही बनती है।

नेजा लोक नृत्य (Neja Lok Nritya in Hindi) :

ईस नृत्य में एक बड़ा सा खंभा ज़मीन में गाड़ दिया जाता है और उसके सबसे ऊपरी सिरे पर नारियल बांधा जाता है। स्त्रियां अपने हाथों में छोटे छोटे कौड़े लेकर खंबे के चारों ओर घेरा बनाकर खड़ी हो जाती हैं। पुरुष थोड़ी दूरी पर खड़े रहते हैं और नारीयल लेने के लिए खंभे पर चढ़ने का प्रयास करते हैं और इसके बदले में स्त्रियां उनको छड़ीयों और कोड़ों से पीटकर भगाने की कोशिश करती हैं।

चरी लोक नृत्य (Chari Lok Nritya in Hindi) :

इस नृत्य में सिर पर पीतल की बनी हुई चरी में कांकडे के बीज और तेल डालकर आग की लपटें निकालते हुए स्वच्छंद रूप से हाथ की कलाईयों को घुमाते हुए नृत्य किया जाता है। इसे गणगौर, जन्म और विवाह आदि जैसे मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। राजस्थान के लोक नृत्य में थाली, ढोल और बांकियाँ बजाया जाता है। पुरुष एक और खड़े होकर ढोल बजाते हैं। यह नृत्य लोक नृत्य से व्यवसायिक नृत्य बन चुका है।

गींदड़ लोक नृत्य (Gindad Lok Nritya in Hindi) :

इस नृत्य को शेखावटी और इसके आसपास के क्षेत्रों में किया जाता है। होली जलाने के कुछ दिन पहले एक रस्म होती है जिसे ‘डांड रोपण’ कहा जाता है। यह नृत्य सिर्फ पुरुषों द्वारा किया जाता है। इसमें एक गोल आकार का मंडप बनाया जाता है जिसके बीच में एक व्यक्ति नगाड़ा बजाता रहता है। पन्द्रह बीस पुरुष नगाड़े के चारों तरफ गोल घेरा बनाकर घूमते हुए और हाथ में लकड़ी की छड़ियाँ लेकर उन्हें अपने आगे पीछे चलने वाले पुरुषों की छड़ियों से टकराते हुए नृत्य करते हैं। ईसे रात भर किया जाता है। इस नृत्य में कुछ पुरुष स्त्रियों की वेशभूषा पहन कर आते हैं। इन्हें गणगौर कहा जाता है

चंग लोक नृत्य (Chang Lok Nritya in Hindi) :

होली के दिनों में केवल पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य शेखावाटी क्षेत्र में होता है। इसमें हर पुरुष के पास एक चंग होता है और वे चंग बजाते हुए गोल घेरे में घूमते घूमते नृत्य करते हैं।

कच्छी घोड़ी लोक नृत्य (Kachchhi Ghodi Lok Nritya in Hindi) :

राजस्थान के कई इलाकों में किया जाने वाला यह नृत्य राजस्थान के लोक नृत्य में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। इसे लोगों के मनोरंजन के लिए किया जाता है। राजस्थान के लोक नृत्य में नर्तक बांस की बनी हुई घोड़ियों को अपनी कमर पर बांधकर दूल्हे के जैसा वेशभूषा रखकर नृत्य करते हैं। अपने हाथ में तलवार लेकर घोड़े की चाल चलते हुए यह नकली लड़ाई का दृश्य प्रस्तुत करते हैं। कच्छी घोड़ी नृत्य में ढोल, बांकियाँ और थाली बजाई जाती है। यह नृत्य अपने खास तरह के पैटर्न बनाने की कला के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है।

अग्नि लोक नृत्य (Agni Lok Nritya in Hindi) :

इस नृत्य का की शुरुआत बीकानेर के कतरियासर ग्राम से हुई ऐसा माना जाता है। राजस्थान के लोक नृत्य में जसनाथी संप्रदाय के सिद्ध जलते हुए अंगारों के ढेर के चारों ओर पानी का छिड़काव कर के गीत गाते हुए नृत्य करते हैं। नित्य के दौरान वे अपने मुंह से गुरु की आज्ञा से फतेह फतेह कहते हुए नृत्य करते हैं। इसे फाल्गुन और चैत्र मास में किया जाता है।

राजस्थान के लोक नृत्य नाहर नित्य इस नृत्य की शुरूआत शाहजहां के शासनकाल से मानी जाती है इसमें पुरुष अपने पूरे शरीर पर रुई लपेटकर और नकली सिंह लगाकर शेर बनते हैं राजस्थान के लोक नृत्य में ढोल थाली का इस्तेमाल होता है और पुरुष नर्तक ढोल की थाप पर नृत्य करते हैं।

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