मेरा प्रिय वैज्ञानिक पर निबंध – भारत देश को सदियों से वैज्ञानिकों का देश कहा गया है प्राचीन समय में हमारे ऋषि-मुनियों के वैज्ञानिक और खगोलीय ज्ञान की वजह से भारत ने ऐसी उपलब्धियों को हासिल किया जिन्हें दूसरे देशों को हासिल करने में कई 100 साल लग गए कुछ खोजें ऐसी भी है जिन्हें भारत के प्राचीन वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों ने खोजा लेकिन उनका श्रेय आज दुनिया में दूसरे देश लेकर बैठे हैं।
इसलिए हमें चाहिए कि हम हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों के ज्ञान को समझे और उन पर गर्व करें। इसीलिये आज हम आपके लिये मेरा प्रिय वैज्ञानिक विषय पर निबन्ध लेकर आये हैं।
मेरा प्रिय वैज्ञानिक आर्यभट्ट (Mera Priya Vaighyanik Aryabhatta in Hindi) :
भारत के सबसे महान वैज्ञानिक आर्यभट्ट के बारे में कौन नहीं जानता। आर्यभट्ट गुप्तकालीन वैज्ञानिक और खगोलशास्त्री होने के साथ-साथ एक महान गणितज्ञ भी थे। इन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक आर्यभटिया और आर्यभट्ट सिद्धांत की रचना भी की थी इनका जन्म 473 ईस्वी में दक्षिण भारत के कुसुमपुर हुआ था। आर्यभट्ट ब्राह्मण जाति की ब्रह्मभट्ट नमक शाखा में पैदा हुए थे।
इतिहासकारों का ऐसा मानना है कि आर्यभट्ट ने कुल 3 ग्रंथों की रचना की थी जिसमें से वर्तमान में केवल एक ग्रंथ आर्यभट्ट सिद्धांत के कुछ अवशेष ही उपलब्ध है। इतने महान वैज्ञानिक के महत्वपूर्ण और आधारभूत ग्रंथ कैसे विलुप्त हो गए इस बात पर इतिहासकारों में मतैक्य नहीं है आर्यभट्ट को सूर्य सिद्धांत का अनुयाई माना जाता है।
इन्होंने गणित और खगोल विज्ञान में कई बड़े और महान सूत्र दिए जिनमें गणित के वर्तमान में प्रचलित कई सारे सिद्धांतों जैसे अनमोल के वर्गमूल ज्यामिति अंकगणित बीजगणित समानांतर श्रेणी और कई तरह के समीकरणों का उल्लेख लोगों के रूप में किया गया है। आर्यभट्ट ने अपने ग्रंथों में पुरुषोत्तम मास सत्ता के रूप में 7 दिनों की गणना ग्रहों की गति उनकी परिक्रमा और परिभ्रमण भूमध्य रेखा पृथ्वी का आकार रात और दिन के समय की गणना और कालचक्र आदि शामिल है।
आर्यभट्ट का इस विश्व को सबसे बड़ा जो योगदान है वह यह है कि आर्यभट्ट ने पाई के मान का पश्चिम के कई बड़े और धुरंधर गणितज्ञों से भी ज्यादा सटीक ठोस और सही मान निकाला यह आर्यभट्ट ही थे जिन्होंने विश्व में सबसे पहले यह बताया कि पृथ्वी अपनी ही दूरी पर गोल चक्कर लगाती है। इसके अलावा उन्होंने त्रिभुज का क्षेत्रफल ज्ञात करने का सूत्र और वृत्त की परिधि ज्ञात करने का सूत्र भी बताया आर्यभट्ट की विश्व को सबसे बड़ी देन शून्य की खोज है इस प्रकार आर्यभट्ट मेरे प्रिय वैज्ञानिक है।
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मेरा प्रिय वैज्ञानिक सीवी रमन (Mera Priya Vaighyanik C. V. Raman in Hindi) :
मेरे प्रिय वैज्ञानिक का नाम चंद्रशेखर वेंकट रमन है। जिन्हें सीवी रमन के नाम से भी जाना जाता है। चंद्रशेखर वेंकटरमन का जन्म 7 नवंबर 1888 को ब्रिटिश भारत के मद्रास प्रेसिडेंसी के तिरुचिरापल्ली में एक तमिल परिवार में हुआ था। सी वी रमन को भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के साथ-साथ लेनिन शांति पुरस्कार और भारत रत्न जैसे पुरस्कार भी मिल चुके हैं इन्हें अपने रमन प्रभाव के लिए भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला था।
इन्होंने अपनी पढ़ाई मद्रास विश्वविद्यालय से की थी साल 1996 सी वी रमन ने प्रकाश के विवर्तन पर अपना पहला शोध पत्र छापा था सी वी रमन ने बेंगलुरु में भारतीय विज्ञान अकादमी की स्थापना की सी वी रमन भारतीय विज्ञान संस्थान के पहले निदेशक भी थे।
इन्होंने अपने रमन प्रभाव की शुरुआत 28 फरवरी 1928 में की थी इस वजह से 28 फरवरी को भारत सरकार के द्वारा पूरे देश में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है। सी वी रमन को अपने रमन प्रभाव के लिए भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न 1958 में प्रदान किया गया था।
मेरा प्रिय वैज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम (Mera Priya Vaighyanik Abdul Kalam in Hindi) :
मेरे प्रिय वैज्ञानिक का नाम डॉक्टर अब्दुल पाकिर जैनुलआब्दीन जिन्हें एपीजे अब्दुल कलाम के नाम से भी जाना जाता है। मेरा प्रिय वैज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम भारत के 11 राष्ट्रपति भी चुने गए थे। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम मिसाइल मैन ऑफ इंडिया यानी भारत के मिसाइल मैन के नाम से भी विश्व भर में प्रसिद्ध है।
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को उनके मोटिवेशनल और शिक्षा और नैतिकता से भरपूर विचारों के लिए जाना जाता है यह भारत ही नहीं विश्व में भी कई सारे बच्चों और युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ब्रिटिश इंडिया के तमिलनाडु के रामेश्वरम शहर में 15 अक्टूबर 1931 को इस दुनिया में आए थे।
यह अपने समय के भारत के सबसे प्रमुख वैज्ञानिकों में से एक थे। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की अध्यक्षता में भारत देश ने अपना पहला सफल परमाणु परीक्षण सन उन्नीस सौ 74 में और दूसरा परमाणु परीक्षण सन उन्नीस सौ 98 में राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके पोकरण में किया था। इसके बाद भारत सरकार ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति पद के प्रबल दावेदार के रूप में एक्सेप्ट किया एपीजे अब्दुल कलाम 2002 में भारत के राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए।
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मेरे प्रिय वैज्ञानिक डॉ एपीजे कलाम ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान से जुड़ने के बाद अपना पूरा ध्यान रक्षा मिसाइलों और प्रक्षेपास्त्र ओके स्वदेशी तरीके से निर्माण पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की वजह से आज भारत के पास अग्नि और पृथ्वी जैसे मिसाइलें हैं। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के जीवन पर आई एम कलाम नामक एक बॉलीवुड हिंदी फिल्म भी बन चुकी है डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने जीवन में कुल 4 किताबें लिखी हैं जिनमें से पहली है।
उनकी आत्मकथा विंग्स ऑफ फायर इंडिया 2020 मेरी यात्रा और इगनाइटेड माइंड्स। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का निधन 27 जुलाई 2015 की शाम को 82 साल की उम्र में शिलांग के भारतीय प्रबंधन संस्थान में छात्रों को संबोधित करते हुए ह्रदय का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम हमेशा भारत के मिसाइल मैन की तरह याद किए जाएंगे।
मेरा प्रिय वैज्ञानिक डॉ विक्रम साराभाई (Mera Priya Vaighyanik Dr. Vikram Sarabhai in Hindi) :
मेरे प्रिय वैज्ञानिक का नाम डॉक्टर विक्रम अंबालाल साराभाई है डॉ विक्रम साराभाई का जन्म अहमदाबाद के एक संपन्न जैन परिवार में 12 अगस्त 1919 को हुआ था। गुजरात अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद भी आगे की उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड की विश्व प्रसिद्ध कैंब्रिज विश्वविद्यालय चले गए द्वितीय विश्वयुद्ध के शुरू होने की वजह से सभी भारतीय छात्रों को अपने स्वदेश लौटना पड़ा और यहां आकर वह महान वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रमन के संपर्क में आए और उन के सानिध्य में रहकर ब्रह्मांड की जटिलताओं के ऊपर शोध करने लग गए।
मेरा प्रिय वैज्ञानिक डॉक्टर साराभाई को कैंब्रिज विश्वविद्यालय की तरफ से डॉक्टरेट की उपाधि से भी नवाजा गया था। डॉ विक्रम साराभाई को व्यक्तिगत तौर पर जाने वाले लोगों का मानना है कि उन्होंने कभी किसी को अपने से नीचा नहीं समझा वह जिस से भी बात करते थे।
उनके मन में अपनी खास जगह बना लेते थे हर कोई उनसे बिना जी जी के बात करे, बहुत ही सरल और सहज तरीके से बात करने जा सकता था डॉ विक्रम साराभाई कड़े परिश्रम में विश्वास रखते थे। और यही वजह थी कि वह एक सफल व्यापारी और वैज्ञानिक बनने के साथ-साथ महान प्रबंधक भी थे। मेरे प्रिय वैज्ञानिक डॉ विक्रम साराभाई को भारत में 20 से ज्यादा संस्थान खोलने का श्रेय दिया जाता है।
भारत के नंबर 1 प्रबंधन संस्थान माने जाने वाले ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी यानी आईआईटी अहमदाबाद की स्थापना का श्रेय भी डॉ विक्रम साराभाई को ही दिया जाता है डॉ विक्रम साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन जिसे आज मित्रों के नाम से जानते हैं के विकास का सबसे बड़ा श्रेय दिया जाता है। इनकी मृत्यु केरल के कोवलम नामक जगह पर 30 दिसंबर 1971, 56 वर्ष की छोटी सी आयु मैं हो गई डॉ विक्रम साराभाई को पद्मा भूषण पद्मा विभूषण जैसे पुरस्कारों से भी नवाजा गया।