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लोदी वंश का इतिहास (Lodi Vansh in Hindi)

Lodi Vansh मूल रूप से अफगानिस्तान के कबीली लोग थे जो अपनी आजीविका चलाने के लिए कृषि और पशुपालन करते थे और कभी कभी पडोसी कबीलो पर हमला करके धन और पशु चुरा लिया करते थे।

कुछ इतिहासकारो का मानना है कि इन कबीली लोगो के लड़ने की प्रवृति से इल्बारी शासक बहुत प्रभावित हुई और इन कबीली लोगो को अपनी सेना में भर्ती करना शुरू कर दिया। तुगलक वंश के मुहम्मद बिन तुगलक ने एक अफगानी सैनिक जिसका नाम “मालिक वीर” था उसकी काबिलियत से प्रभावीत होकर उसे बिहार प्रान्त का सूबेदार बना दिया। धीरे धीरे अफगानो ने बहुत सारे प्रांतो पर कर लिया।

सैयद वंश के आखिरी शासक अलाउद्दीन आलम शाह ने अपने मर्जी से दिल्ली सल्तनत की बागडौर बहलोल लोदी को सौप दी थी। अलाउद्दीन आलम शाह अपनी मृत्यु तक दिल्ली में रहा। Lodi Vansh पहला अफगान वंश था जिसने दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। Lodi Vansh ने 1451 से लेकर 1526 ईस्वी तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया।

Lodi Vansh मध्यकालीन भारत का एक मुस्लिम राजवंश था जिसकी स्थापना बहलोल लोदी ने 1451 ईस्वी में की थी

बहलोल लोदी (Bahlol Lodi in Hindi) :

बहलोल लोदी का जन्म 1401 ईस्वी में अफगानिस्तान में हुआ था। इसके बचपन का नाम आलम खान लोदी था। बहलोल लोदी अपनी युवा अवस्था में घोड़ो का बहुत बड़ा व्यापारी बन गया। सैय्यद वंश के सुल्तान मोहम्मद शाह को बहलोल लोदी का एक घोडा बहुत पसंद आया सुल्तान ने बहलोल लोदी को इनाम स्वरूप सरहिंद का गवर्नर बना दिया। सैय्यद वंश के सुल्तान मोहम्मद शाह ने जब मालवा पर आक्रमण किया तब सुल्तान ने बहलोल लोदी से सैन्य मदद मांगी, तब बिना किसी हिचखिचाहत के 25000 घुड़सवार के साथ सुल्तान की फौज में शामिल हो गया। उसने अपनी चतुराई और काबिलियत के दम पर अकेले ही मालवा की सेना को हरा दिया।

उसकी काबिलियत से प्रस्सन होकर सुल्तान ने उसे पंजाब की सूबेदारी दे दी। बहलोल लोदी यही नहीं रुका उसके बाद उसने दिल्ली सल्तन पर कब्ज़ा करने के लिए तीन बार आक्रमण किया और तीनो बार वो सफलता प्राप्त नहीं कर सका। अंत में सैय्यद वंश के सुल्तान आलम शाह ने 1450 में अपनी मर्जी से दिल्ली सल्तनत की गद्दी बहलोल लोदी को दे दी और इस बहलोल लोदी दिल्ली का सुल्तान बन गया।

बहलोल लोदी ने सुल्तान बनने के बाद एक सिक्का जारी किया था जो मुगल शासक अकबर के काल तक प्रचलन में रहा।

बहलोल लोदी खुद अपने सरदारों का बहुत सम्मान करता था जब उसके सरदार खड़े रहते थे तब वो सुल्तान होकर भी खड़ा रहता था। वो अपने सरदारों को “मसनद-ए – अली” कहकर सम्भोधित करता था बहलोल लोदी की मृत्यु 1489 में हुई।

ये भी पढ़े –

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सिकन्दर लोदी (Sikandar Lodi in Hindi) :

सिकंदर लोदी का जन्म 17 जुलाई 1458 को दिल्ली सल्तनत में हुआ था ये अपने पिता की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत और Lodi Vansh का सुल्तान बना था। इतिहास सिकंदर लोदी को Lodi Vansh का सर्वश्रेठ शासक मानते है। उसके शासन के दौरान अमीर सरदार बहुत ताकतवर हो गए थे खुद को Lodi Vansh सुल्तान के बराबर समझने लगे थे सिकंदर लोदी ने उन अफगानो सरदारों को दबाने की कोशिश की। ताकि वो अफगान सरदार सुल्तान का सम्मान कर सके। उसने हर जागीरदार को लेखा – जोखा रखने का फरमान सुनाया जो जागीरदार भ्रष्टाचार करते पकड़ा जाता उसके खिलाफ कठोर कार्यवाही की जाती।

सिकंदर लोदी ने अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाया। एक नयी गुप्तचर प्रणाली गठन भी किया।

सिकन्दर लोदी ने भूमि नयी मापन प्रणाली का गठन किया जिसे ‘गज-ए-सिकन्दरी’ नाम से जाना गया।

सिकन्दर लोदी 1504 ई. में आगरा शहर (जो अभी उत्तर प्रदेश में है) की स्थापना की और 1506ईस्वी. में की। इसे अपनी राजधानी बनाया। उसने कुतुबमीनार की मरम्मत करायी।

इब्राहिम लोदी (Ibrahim Lodi in Hindi) :

इब्राहिम लोदी अपने पिता की मृत्यु के बाद Lodi Vansh की गद्दी पर बैठा।उसके गद्दी पर बैठते ही उसको बहुत सारी समस्याओ का सामना करना पड़ा। वो अपने पिता की तरह चालक और बुद्धिमान नहीं था। उसके पिता के कार्यकाल में जो Lodi Vansh के सरदार शक्तिहीन हो गए थे।

वो इब्राहिम लोदी के सुल्तान बनते ही उसको दबाने की कोशिश करने लगे गए। इसके लिए इब्राहिम लोदी ने सेना में बदलाव करना शुरू कर दिया। उसने पुराने सभी सेनापतियों को अपनी सेना से निकाल दिया, क्युकी वो सेनापति दरबार के सरदारों के ज्यादा वफादार थे। उसने अपने वफादार लोगो को सेना में उच्च पद दिए। इस उसकी सेना कमजोर होने लगी। क्युकी नए लोगो को सेना में कैसे काम होता है उसका अनुभव नहीं था। इससे दरबार के शक्तिशाली सरदार उससे और ज्यादा नाराज रहने लगे।

राणा सांगा इब्राहिम लोदी का समकालीन था। मेवाड़ राणा सांगा के नेतृत्व में और ज्यादा शक्तिशाली बन गया था। राणा सांगा और इब्राहिम लोदी के बीच मालवा को लेकर संघर्ष चल रहा था इससे राणा सांग ने इब्राहिम लोदी को आगरा पर हमले की धमकी दी थी।

इब्राहिम लोदी के शासनकाल में लोदी और फारमूली जातियों ने इब्राहिम लोदी के खिलाफ विद्रोह कर दिया थे इन जातियों को इब्राहिम लोदी ने दबाने की कोशिश की लेकिन वो पूर्ण रूप से सफल नहीं हो सकता। इन जातियों के दमनकारी नीति के कारण Lodi Vansh के सरदार इब्राहिम लोदी को सुल्तान के पद से हटाना चाहते थे इसलिए उन्होंने बाबर को भारत पर आक्रमण करने का न्योता दिया। उन लोगो ने सोचा बाबर एक लुटेरा है जो दिल्ली को लूटकर वापस चला जाएगा।

पानीपत का प्रथम युद्ध

दिल्ली सल्तनत के सरदारों का न्यौता मिलने के बाद बाबर की सेना ने दिल्ली पर हमले के लिए कूच कर दिया। इब्राहिम लोदी की सेना ने बाबर की सेना को पानीपत के मैदान में रोक दिया। दोनों सेनाओ के बीच भीषण युद्ध 21 अप्रैल 1526 को शुरू हुआ। इब्राहिम लोदी की सेना में करीब 2 लाख सैनिक था और बाबर की सेना में 70 हजार सैनिक थे। बाबर मध्य एशिया से अपने साथ टोपे लाया था

इस हथियारो की जानकारी भारतीयों को नहीं थी उन तोपों के दम पर बाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध में बडी ही आसानी से इब्राहिम लोदी को हरा दिया। कुछ इतिहासकार इब्राहिम लोदी के हार के पीछे उसके अपने लोगो का विश्वासघात को मानते है। इब्राहिम लोदी दिल्ली सल्तनत और Lodi Vansh का एकमात्र ऐसा शासक था जिसकी मौत किसी युद्ध थी।

यह दिल्ली सल्तनत अथवा Lodi Vansh का अन्तिम शासक था।

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