राजस्थान का इतिहास गौरवशाली बनाया यहां के वीरों के अद्भुत पराक्रम और शौर्य ने, इनकी मातृभूमि की रक्षा करने की प्रतिज्ञा ने और इनके स्वाभिमान ने। ये वीर ना सिर्फ रणभूमि में बल्कि स्थापत्य कला के प्रदर्शन में भी अपना परचम लहराते दिखते हैं और यही वजह है कि राजस्थान के लगभग हर ज़िले में हमें कोई ना कोई किला या महल मिल ही जाता है। ऐसा ही एक किला है जोधपुर का मेहरानगढ़ का किला। इस पोस्ट में हम मेहरानगढ़ के बारे में जानकारी हासिल करेंगे।
जोधपुर का किला (Jodhpur Fort History in Hindi) :
जोधपुर का किला पंचेटिया पर्वत जिसे चिड़ियाटूंक पहाड़ी कहा जाता है, पर बना हुआ है। जोधपुर का किला गिरी दुर्गों की श्रेणी में आता है। ऐसे दुर्गों को गिरी दुर्ग कहा जाता है जिन्हें किसी पहाड़ की चोटी को समतल करके बनाए गए हों और जहां पानी की उचित व्यवस्था की गई हो। मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव जोधपुर शहर के संस्थापक राव जोधा ने बारह मई चौदह सौ उनसाठ ईस्वी (विक्रम संवत 1515 ज्येष्ठ माह की शुक्ला एकादशी) को रखी थी।
राव जोधा ने मेहरानगढ़ दुर्ग के चारों तरफ जोधपुर शहर बसा कर इसे अपनी राजधानी बनाया था। इससे पहले मारवाड़ की राजधानी मंडोर हुआ करती थी। मोर के आकार का होने की वजह से इस किले को मयूरध्वज गढ़, मोरध्वज गढ़ और गढ़ चिंतामणि भी कहा जाता है।
मेहरानगढ़ दुर्ग का इतिहास (History of Mehrangarh Fort in Hindi) :
राव जोधा के बाद जोधपुर का किला पर उनके पुत्र राव बिका जिन्होंने बीकानेर शहर बसाया था, ने अपने पिता की मृत्यु के बाद राव सूजा के शासनकाल के दौरान आक्रमण किया था लेकिन राजमाता जसमादे ने दोनों भाइयों राव बिका और राव सूजा के बीच में समझौता करवा कर युद्ध की संभावनाओं को टाल दिया था। मेहरानगढ़ के दुर्ग के साथ वीर शिरोमणि दुर्गादास, कीरतसिंह सोढा और दो अतुल्य और वीर क्षत्रिय योद्धा भिंवा और धन्ना की स्वामी भक्ति, बलिदान, पराक्रम और त्याग की कहानियां जुड़ी हुई हैं।
प्रसिद्ध विदेशी लेखक लॉर्ड क्रिप्पलिंग ने इस दुर्ग को परियों और देवताओं के द्वारा बनाया गया है ऐसी संज्ञा दी है। राव मालदेव के शासनकाल के दौरान दिल्ली के अफगान बादशाह शेरशाह सूरी ने गिरी सुमेल के युद्ध में मालदेव को हराकर जोधपुर का किला पर अपना अधिकार कर लिया था। लेकिन कुछ समय बाद ही शेरशाह की मौत के बाद मालदेव ने जोधपुर का किला फिर से अपने अधिकार में ले लिया था। राव मालदेव के बेटे राव चंद्रसेन के समय सम्राट अकबर ने हसन कुली खान के नेतृत्व में सेना भेजकर जोधपुर का किला अपने अधिकार में कर लिया था।
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चंद्रसेन के भाई मोटा राजा राव उदयसिंह ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली और जोधपुर का किला अकबर ने उन्हें सौंप दिया था। जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु हो जाने के बाद मुगल सम्राट औरंगज़ेब ने जोधपुर को मुगल खालसा घोषित कर दिया था लेकिन कुछ ही दिनों में जसवंत सिंह की रानी ने कुंवर अजीत सिंह को जन्म दिया और स्वामी भक्त वीर शिरोमणि दुर्गादास के नेतृत्व में राठौड़ों ने कड़ी टक्कर और अथक प्रयासों के बाद जोधपुर का शासन कुंवर अजीत सिंह को दे दिया।
मेहरानगढ़ दुर्ग का स्थापत्य (Architecture of Mehrangarh Fort in Hindi) :
जोधपुर का किला का स्थापत्य बहुत ही अनूठा है। दुर्ग के अंदर महलों को लाल पत्थर से बनाया हुआ है। मेहरानगढ़ दुर्ग में जालियों और झरोखों को बहुत ही सुंदर नक्काशी से सजाया गया है। मेहरानगढ़ दुर्ग का स्थापत्य राजपूत स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। महाराजा सूरजसिंह के द्वारा बनवाए गए मोती महल की छत और दीवारों पर सोने की पॉलिश का महीन काम महाराजा तख्त सिंह ने करवाया। इस मोती महल को इसके भव्य भित्ति चित्रों के लिए जाना जाता है।
जोधपुर से मुगल शासन के खत्म होने के मौके पर महाराजा अजीतसिंह ने इसमें फतेह महल बनवाया था। इसके अलावा यहां पर चौखेलाव महल, बिचला महल, तखत विलास, सिलह खाना, दौलत खाना, मान विलास और ख्वाबगाह का महल आदि प्रमुख महल हैं। जोधपुर किले में किलकिला, शंभू बाण, गजनी खान जैसी कई उत्कृष्ट तोपें रखी हुई हैं जबकि नागपाली, नुसरत गजक और गुब्बारा यहां की प्रसिद्ध तोपें हैं।
मेहरानगढ़ दुर्ग की विशेषता (Features of Mehrangarh Fort in Hindi) :
जोधपुर दुर्ग के दो बाहरी प्रवेश द्वार हैं। उत्तर – पूर्व में जय पोल और दक्षिण – पश्चिम में शहर के अंदर की तरफ फतेह पोल है। जय पोल को महाराजा मानसिंह ने बनवाया था। किले का एक अन्य मुख्य प्रवेश द्वार है जिसे लोहा पोल कहा जाता है। इसे राव मालदेव ने बनवाना शुरू किया था और महाराजा विजयसिंह ने इसका निर्माण कार्य पूरा करवाया था।
मेहरानगढ़ दुर्ग के अन्य दरवाजों में ध्रुव पोल, इमरत पोल, सूरज पोल, कांगरा पोल और भैरोपोल मुख्य है। लोहा पोल के पास जोधपुर के अतुल पराक्रमी वीर योद्धाओं धन्ना और भिंवा की दस खंभों वाली स्मारक छतरी है जिसे महाराजा अजीतसिंह ने बनवाया था। इसमें सोने के बारीक काम वाला मोती महल भी पर्यटकों का विशेष आकर्षण है और सुंदर भित्ति चित्रों से सजा हुआ फूल महल भी इसी दुर्ग में स्थित है। दौलत खाने में तख्तसिंहजी द्वारा बनवाई गई श्रृंगार चौकी है जहां पर महाराजाओं का राजतिलक होता था।
राव जोधा ने दुर्ग के निर्माण के समय यहां पर चामुंडा माता का मंदिर बनवाया था जो कि प्रतिहार शासकों की कुलदेवी थी। मेहरानगढ़ दुर्ग में रानीसर और पदमसर दो तालाब हैं जो पानी के मुख्य स्त्रोत हैं। रानीसर तालाब को राव जोधा की रानी जसमादे हाड़ी ने करवाया था।
मेहरानगढ़ दुर्ग तक कैसे पहुंचे? (How to reach Mehrangarh Fort in Hindi?) :
मेहरान गढ़ तक पहुँचने के लिए आप बस, ट्रैन या हवाई जहाज़ से जोधपुर आ सकते हैं। मेहरानगढ़ जोधपुर हवाई अड्डे से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जोधपुर के लिए आप दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, सूरत, उदयपुर और जयपुर से भी फ्लाइट ले सकते हैं। आपको जोधपूर के लिए हर प्रमुख शहर से ट्रेन की सुविधा मिल जाएगी। जोधपूर में चार प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं, आप कहीं से भी मेहरानगढ़ जा सकते हैं। रेलवे की तरह ही जोधपूर के लिए हर बड़े शहर से आपको बस मिल जाएगी। शहर घूमने के लिए आप रिक्शा, सिटी बस, घोड़ागाड़ी आदि ले सकते हैं।
अगर आप टाइट बजट पर हैं तो सिटी बसें आपको सबसे सस्ती पड़ेंगी। सिटी बस का न्यूनतम किराया दस रुपये है। आपको राईका बाग बस स्टैंड से पूरे शहर में कहीं भी जाने के लिए सिटी बस मिल जाएगी। रिक्शा महंगा पड़ सकता है खास कर रात को। रात के नौ बजे के बाद सिटी बसें बन्द हो जाती हैं तो आप इस बात को ध्यान में रखते हुए ही सफर करें।
जोधपुर का किला किसने बनाया?
जोधपुर का किला राव जोधा ने बनाया।
जोधपुर हवाई अड्डे का क्या नाम है?
जोधपुर हवाई अड्डे का नाम सांगानेर एयरपोर्ट है।
जोधपुर पर किसने हमला किया था?
जोधपुर पर शेरशाह सूरी और अकबर ने हमला किया था।
जोधपुर का किला कौनसी पहाड़ी पर बना हुआ है?
जोधपुर का किला चिड़ियाटूंक पहाड़ी पर बना हुआ है।
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