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हनुमान जी का जन्म कैसे हुआ था? (How was Lord Hanuman born in Hindi?)

हम सब जानते हैं कि हनुमान जी प्रभु श्री राम के कितने बड़े भक्त थे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हनुमान जी का जन्म कैसे हुआ था? हनुमान जी के जन्म के पीछे की क्या कहानी थी? तो आइए जानते हैं कि ऐसा क्या हुआ था कि हनुमान जी की माता अंजना को पिछले जन्म में श्राप मिला था जिसके कारण अंजना को वानर जाति में जन्म लेना पड़ा।

हनुमान जी का जन्म कैसे हुआ था? (How was Lord Hanuman born in Hindi?)

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार इन्द्रदेव ने स्वर्ग में किसी कारणवश एक बैठक का आयोजन करवाया था। जिसमें ऋषि दुर्वासा भी भाग ले रहे थे। ऋषि दुर्वासा अपने क्रोध के लिए जाने जाते थे। उस बैठक में सम्मिलित हर कोई व्यक्ति गहन विचार विमर्श में डूबा हुआ था तभी स्वर्ग की एक अप्सरा किसी कारणवश बैठक के बीच में इधर उधर घूम रही थी तो ऋषि दुर्वासा ने उस अप्सरा को ऐसे इधर उधर घूमने के लिए मना किया, लेकिन उस अप्सरा ने ऋषि दुर्वासा की बात को अनसुना कर दिया और वहां से चली गई।

इस बात को लेकर ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो उठे की एक तुच्छ अप्सरा ने दुर्वासा जैसे महान ऋषि का अनादर कैसे कर दिया। उसके इस दुस्साहस पर ऋषि दुर्वासा ने उसे श्राप देते हुए कहा कि – यह अप्सरा एक शरारती वानर की तरह इधर उधर उछल रही है, एक बार मना करने के बावजूद यह एक निर्लज्ज बन्दर की भांति मेरी बात को अनसुना कर रही है। इसलिए बंदर की तरह कार्य करने से अच्छा है की यह खुद ही एक बन्दर बन जाए।

ऋषि दुर्वासा के श्राप को सुनकर वो अप्सरा ऋषि दुर्वासा से क्षमा मांगने लगी। उसने ऋषि दुर्वासा को समझाते हुए कहा कि वह जान बूझकर ऐसा नहीं कर रही थी। वो नहीं जानती थी उसकी इस मूर्खतापूर्ण हरकत के कारण दुर्वासा ऋषि उसे श्राप दे देंगे। उसने हाथ जोड़ कर क्षमा याचना की की आप कृपा करके मुझे क्षमा करने का प्रयत्न करें।

ऋषि दुर्वासा ने उस अप्सरा की क्षमा याचना से खुद को शांत करते हुए कहा कि कोई भी दिया हुआ श्राप वापस नहीं लिया जा सकता है लेकिन उसमें कुछ संशोधन तो ज़रूर हो सकता है। दुर्वासा ऋषि ने उसे श्राप से मुक्त होने का उपाय बताते हुए कहा कि तुम अगले जन्म में एक वानर के रूप में जन्म लोगी और तुम्हारा विवाह केसरी नामक वानर से होगा। भगवान शिव का अंश तुम्हारी कोख से जन्म लेगा जो विष्णु भगवान के अवतार प्रभु श्री राम का परम् भक्त बनेगा और सारा संसार उसे राम भक्त के रूप में ही पहचानेगा। फिर उस अप्सरा ने अपने इतने अच्छे भाग्य को स्वीकार किया और प्रसन्नचित्त होकर वहां से चली गयी।

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और सबकुछ ठीक उसी प्रकार हुआ जैसा दुर्वासा ऋषि ने भविष्यवाणी की थी। उस अप्सरा के मरने के बाद उसका जन्म वानर प्रजाति में हुआ और उस अप्सरा का नाम अंजना रखा गया। जब अंजना बड़ी होकर विवाह योग्य हो गई तो उसका विवाह वानरों के एक राजा केसरी से हुआ। विवाह के बाद उन्होंने एक सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत किया।

फिर जब अंजना और केसरी को पुत्र प्राप्ति नहीं हो रही थी तो एक वानर ऋषि ने अंजना को भगवान शिव की तपस्या करने को कहा। देवी अंजना भगवान शिव की तपस्या में इतनी लीन हो गई कि उन्होंने खाना पीना सब छोड़ दिया। देवी अंजना की तपस्या से महादेव खुश हो गए और देवी अंजना को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया और उस पुत्र के अमर होने का भी आशीर्वाद भी दिया।

उसी समय अयोध्या नगर में रघु कुल के राजा दशरथ पुत्र प्राप्ति के लिए एक धार्मिक अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। भगवान अग्नि द्वारा उन्हें मिठाई के रूप में पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया गया जिसे राजा दशरथ ने अपनी तीनों पत्नियों के बीच में बाँट दिया। तब दूसरी तरफ भगवान शिव के आदेश पर पवन देवता ने भी भगवान अग्रि से उस मिठाई को देने की प्रार्थना की।

पवन देव ने पवित्र अग्नि से वह मिठाई ली और उस मिठाई को अंजना को दे दिया। अंजना ने ससम्मान वह मिठाई प्रसाद स्वरूप खा ली। तब पवन देवता ने देवी अंजना से कहा कि वो जल्दी ही एक ऐसे महान पुत्र की माँ बनेगी जिसमें बुद्धि, साहस, जबरदस्त ताकत, शौर्य , गति और उड़ने की शक्ति होगी। और इस तरह प्रभु शिव, अग्नि देव और पवन देव की मदद से हनुमान जी का जन्म हुआ।

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