राणा कुम्भा की मृत्यु कैसे हुई| आज हम आपके लिए फिर एक बार राजस्थान के एक और वीर राणा कुम्भा की अमर कहानी लेकर आए हैं। आज हम पढ़ेंगे एक ऐसे प्रसिद्ध योद्धा की कहानी जो अपने जीवन मे किसी भी युद्ध में कभी नहीं हारने के लिए विश्वप्रसिद्ध है। फिर इस महान राजा राणा कुम्भा की मृत्यु कैसे हुई?
उस वीर योद्धा ने वो कर दिया जो न तो उनके दुश्मन ही कर पाए, ना कोई और। लेकिन कैसे उसके अपने ही खून ने कर दिया उसका निर्मम अंत कर लिया खुद को इतिहास में हमेशा के लिए पितृहन्ता के नाम से बदनाम कर लिया। तो आइए पढ़ते है… राणा कुम्भा की मृत्यु कैसे हुई?
आज हम आपको फिर एक बार मेवाड़ लेकर चलते हैं।
राणा कुम्भा की मृत्यु कैसे हुई? (How did Rana Kumbha die in Hindi?)
राणा कुम्भा की मृत्यु कैसे हुई? एकलिंग महादेव, राजस्थान में स्थित मेवाड़ राजघराने के कुलदेवता थे। यहां चौहान (सिसोदिया) वंश के वीरों का शासन था। हम तब की बात कर रहे हैं जब मेवाड़ पर महाराणा मोकलसिंह के बेटे महाराणा कुम्भकर्ण जिनको हम इतिहास में महाराणा कुम्भा के नाम से बेहतर जानते हैं, का शासन था। उन्होंने मेवाड़ पर 1433 से लेकर 1468 तक शासन किया। वे और उनके वंश के बाकी सभी महाराणा भी एकलिंग महादेव के परम् भक्त हुए हैं।
महाराणा कुम्भा का नियम था की वे हर दिन सुबह-सुबह सबसे पहले अपने कुलदेवता के मंदिर जाकर उनकी पूजा किया करते थे। तो अपने नियमानुसार, हर दिन की तरह उस दिन भी राणा कुम्भा सुबह-सुबह अपने कुल देवता के मंदिर में पूजा करने गये लेकिन उन्हें कहाँ पता था की ये पूजा उनकी ज़िंदगी की आखिरी पूजा होने वाली है।
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उनका बड़ा बेटा ऊदय सिंह अपने कुलदेवता के मंदिर में शिवलिंग के पीछे तलवार लेकर अपने पिता की सारी गतिविधियों को बड़े गौर से देख रहा था।
जैसे ही राणा कुम्भा शिवलिंग के सामने नतमस्तक हुए उदय सिंह ने अपनी तलवार से उनका सिर धड़ से अलग कर दिया..
आखिर क्यों??
क्या वजह रही होगी जिसकी वजह से ऊदय सिंह ने अपने ही पिता को ऐसी मौत देकर इतिहास में खुद को हमेशा हमेशा के लिए बदनाम कर दिया?
आइये जानते है..
नागौर जैसे कई बड़े युद्ध अपने नाम करने और मेवाड़ को एक दो नहीं बल्कि पूरे बत्तीस किलों से सुरक्षित करके दिखाने वाले वे राजस्थान के ऐसे शासक बन चुके थे, जिनको हराने की साज़िश रचने वाला भी पहले सौ बार सोचता था। उनको हराने की रणनीति बनाने की तो बात तक सोचना कठिन था।
वीरता उन्हें विरासत में मिली थी। मेवाड़ की गद्दी पर आसीन होते ही सबसे पहले उन्होंने आबू को अपने कब्ज़े में किया। इसके बाद फिर मालवा में महमूद खिलजी जैसे ताकतवर सुल्तान को हराने के बाद इस जीत को यादगार बनाने के लिए उन्होंने चित्तौड़ में विश्वप्रसिद्ध कीर्तिस्तंभ बनवाया जो आज पर्यटकों के आकर्षण का एक प्रमुख केंद्र बना हुआ है।
उनके दुश्मनों ने उन्हें कई बार हराने की कोशिश की लेकिन कोई भी अपनी इस चाल में कामयाब नहीं हो पाया।
इस प्रकार राणा कुम्भा की कीर्ति उनकी वीरता और उनके बेमिसाल शिल्प कौशल के ज्ञान की वजह से चारों ओर फैल गई और ये बात भी उनके दुश्मनों के बीच बहुत स्पष्ट हो गई कि जब तक महाराणा कुम्भा ज़िंदा है, तक तक मेवाड़ पर कोई दूसरा व्यक्ति कब्ज़ा नहीं कर सकता और ना उनके खिलाफ कोई षड्यंत्र रचने की बात ही सोच सकता है।
यह बात शायद कुम्भा के बड़े बेटे ऊदय सिंह को इतनी हज़म नही हुई और उसे अपना पिता अपना दुश्मन दिखने लगा।
महाराणा कुम्भा का बड़ा बेटा राजकुमार उदय सिंह कुछ ज़्यादा ही महत्वाकांक्षी और स्वभाव से निर्दयी था। वह मेवाड़ का सम्राट बनना चाहता था, जो कि कुंभा के जीवित रहते हुए तो बिल्कुल भी मुमकिन नहीं था। उसे यह बात बहुत अच्छे से पता था कि जब तक राणा जिंदा हैं, वह कभी राजा नहीं बन सकता।
और कुंभा को मारने की साज़िश रचना भी शेर के मुँह में हाथ डालने जैसा था।
वह इस काम के लिए किसी पर भी भरोसा नहीं कर सकता था। सारी बातें सोच कर उसने खुद ही अपने पिता की मौत का षड्यंत्र रचा।
अब बस उसे एक खास मौके का इंतज़ार था। मंदिर में पूजा का वक़्त ही ऐसा समय होता था, जब उसके पिता के पास उनकी तलवार नहीं होती थी!
इस बात का फायदा उठा कर उसने अपने पिता की हत्या का जाल बिछा दिया और कुल देवता के मंदिर जैसी पवित्र जगह को भी उसने रक्तरंजित कर दिया।
इस तरह उसने अपने महान पिता को मौत के घाट उतार दिया।
महाराणा कुम्भा की हत्या के बाद वो सत्ता हासिल करने में कामयाब तो हो गया लेकिन वो मेवाड़ की उम्मीदों को पूरा नही कर पाया और यही वजह थी कि पांच सालों के अंदर ही उसने मेवाड़ के कई बड़े इलाको को अपने हाथ से गवां दिया।
उदय सिंह की मौत को लेकर भी इतिहासकारों में एकमत नहीं है।
मेवाड़ पुराख्यानों और ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक ये मालवा का सुल्तान घियाध शाह था जीसने उदय सिंह को उसके मकसद में मदद करने का वादा किया था और बदले में उदयसिंह ने उसकी बेटी से विवाह करना स्वीकार किया था।
यह संधि कर के उदयसिंह मालवा से मेवाड़ लौट ही रहा था तभी बिजली की चपेट में आने से उसकी मौत हो गयी।
शायद इसीलिए ही लोग कहते हैं कि अपने कर्मों की सज़ा इंसान को इसी जन्म में भुगतनी पड़ती है।
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मिलते हैं अगली कहानी के साथ, तब तक के लिए…
धन्यवाद