Magadh Samrajya की स्थापना हर्यक वंश के महान राजा बिम्बिसार ने की थी इतिहासकर इन्ही ही Magadh Samrajya स्थापना का श्रेय देते है। Magadh Samrajya का इतिहास का काफी लम्बा है तो आज हम आपको Magadh Samrajya पर राज करने वाले हर वंश के बारे में बतांएगे।
हर्यक वंश का इतिहास (History of Haryanka Vansh in Hindi) :
- बिम्बिसार (542-498 ई. पू) हर्यक वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था। इनकी राजधानी गिरिव्रज (राजगह) थी।
- बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु (493-460 ई. पू.) ने अपने पिता बिम्बिसार की हत्या कर Magadh Samrajya का सिंहासन प्राप्त किया था।
- अजातशत्रु बौद्ध धर्म का अनुयायी था एवं उसके शासनकाल में राजधानी राजगृह में प्रथम बौद्ध महासभा हुई।
- अजातशत्रु ने लिच्छवि गणराज्य को युद्ध में पराजित करके लिच्छवि गणराज्य की राजधानी वैशाली नगर को Magadh Samrajya में मिला लिया था ।
- अजातशत्रु की हत्या उदायिन ने की थी अजातशत्रु की हत्या के बाद उदायिन Magadh Samrajya का सिंहासन प्राप्त किया था।
- पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) की स्थापना का श्रेय उदायिन को जाता है। उदायिन ने पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया।
शिशुनाग वंश का इतिहास (History of Shishunaga Vansh in Hindi) :
- हर्यक वंश के अन्तिम शासक नागदासक था जिसकी हत्या कर उदायिन के सेनापति शिशुनाग ने 412 ई.पू में Magadh Samrajya के सिंहासन पर अधिकार करके शिशुनाग वंश की स्थापना की। उसने अवन्ति वत्स तथा कौसल महाजनपदो को मगध मे लिया।
- शिशुनाग वंश के शासन काल में Magadh Samrajya की राजधानी पाटलिपुत्र को बदल दिया गया और Magadh Samrajya की राजधानी वैशाली नगर को बनाया गया ।
- हर्यक वंश के शासक महाराजा कालाशोक के शासन में दूसरी बौद्ध महासभा का आयोजन Magadh Samrajya की राजधानी वैशाली में हुआ।
नन्द वंश का इतिहास (History of Nanda Vansh in Hindi) :
- शिशुनाग वंश के अन्तिम शासक नंदिवर्धन की हत्या कर महापद्मनन्द ने नन्द वंश की नींव रखी। महापद्मनन्द नंदिवर्धन सेनापति था बौद्ध ग्रन्थ में नंदिवर्धन को महाबोधिवंश में उसे उग्रसेन नाम से सम्भोधित किया गया है।
- नन्द वंश के शाशक महापद्यनन्द ने उड़ीसा में कलिंग को जीता तथा वहाँ बहुत सारी नहरों का निर्माण कराया। जिसका उल्लेख बौद्ध ग्रंथो में मिलता है।
- नन्द वंश का अन्तिम शासक धनानन्द था। धनानन्द बहुत ही क्रूर राजा था जो जनता पर बहुत हु ज्यादा अत्याचार करता था नन्द वंश का अन्तिम शासक धनानन्द ने चाणक्य को अपनी सभा में अपमानित किया गया था। तथा इसी के शासन काल में सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया था ।
सिकन्दर का आक्रमण
- सिकन्दर मकदूनिया का शासक था। उसने भारत पर 326 ई. पू. में आक्रमण किया। बहुत काम लोग जानते है कि सिकन्दर अरस्तु का शिष्य था।
- पंजाब के राजा पोरस ने सिकन्दर के साथ झेलम नदी के किनारे ‘हाइडेस्पीज का युद्ध’ (वितस्ता या झेलम का युद्ध) लड़ा, पंजाब के राजा पोरस बहुत ही बहादुरी से युद्ध लड़ा, परन्तु हार गया।
- व्यास नदी के किनारे पहुँचकर सिकन्दर के सिपाहियों ने आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया क्युकी सिकंदर की सेना युद्ध लड़ते लड़ते बहुत ही ज्यादा थक गई थी इसलिए उसे वापस लौटना पड़ा।
- सिकन्दर के आक्रमण के परिणामस्वरूप ही भारत और यूनान में प्रत्यक्ष रूप से सम्पर्क बने और चार भिन्न-भिन्न मार्गों और जलभागों के रास्ते खुले। जिससे व्यापर करने में आसानी होने लगी।
- सिकन्दर का सेनापति का नाम सेल्यूकस निकेटर था। सेल्यूकस ने बाद में भारत पे हमला भी किया था। इसे चन्द्रगुप्त मौर्य ने हरा दिया था।
- सिकन्दर की मृत्यु 323 ई. पू. में हुई थी जब सिकंदर की आयु महज 33 वर्ष ही थी ।
शुंग वंश का इतिहास (History of Shunga Vansh in Hindi) :
- अन्तिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ था जो की बहुत आलसी किस्म का आदमी था दिनभर मदिरापान करता था इसकी इस लत का फायदा उठाकर उसके सेनापति पुष्यमित्र ने उसकी हत्या करके Magadh Samrajya के सिहांसन पर बैठा। पुष्यमित्र शुंग ने 184 ई. पू. में शुंग वंश की स्थापना की।
- शुंग शासकों ने विदिशा में अपनी राजधानी स्थापित की।
- पुष्यमित्र शुंग ने अपने पुरोहित पंतजलि की सहायता से दो बार अश्वमेध यज्ञ किया।
- पुष्यमित्र शुंग ने भरहूत स्तूप का निर्माण करवाया।
- पुष्यमित्र की मृत्यु घोड़े से गिर जाने की वजह से हुई थी पुष्यमित्र की मृत्यु के बाद Magadh Samrajya का उत्तरधिकारी अग्निमित्र बना । कालिदास की रचना वाल्मीकि मित्रम् शुंग वंश अग्निमित्र के जीवन पर आधारित नाट्य रचना है।
- शुंग काल में ही भागवत धर्म का उदय एवं विकास हुआ तथा वासुदेव विष्णु की उपासना हुई। शुंग वंश के अन्तिम शासक देवभूति की हत्या करके, उसके सचिव वासुदेव ने 75 ई. पू. में कण्व राजवंश की नींव डाल दी।
कण्व वंश का इतिहास (History of Kanva Vansh in Hindi) :
वासुदेव कण्व वंश का संस्थापक था। इस वंश के चार शासक वसुदेव, भुमिमित्र, नारायण तथा सुशर्मण हुए। जिन्होंने Magadh Samrajya पर राज किया।
भारत में यवन राज्य (Yavana State in India in Hindi)
उत्तर-पश्चिम से पश्चिमी विदेशियों के बहुत सारे आक्रमण मौर्योत्तर काल में हुए, विदेशी आक्रमण मौर्योत्तर काल की एक आम घटना की तरह थे इन आक्रमणकार्यो में सबसे पहले आक्रमणकारी बैक्ट्रिया के प्रीक (यूनानी) थे, जिन्हें हम ‘यवन’ के नाम से जाना जाता है। मौर्योत्तर काल में भारतीय सीमा में सर्वप्रथम प्रवेश करने का श्रेय डेमेट्रियस प्रथम को है, उसने 183 ई. पू. में पंजाब के कुछ क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की और साकल नामक जगह को अपनी राजधानी बनाया था।
डेमेट्रियस प्रथम के उपरान्त यूक्रेटाइड्स ने भारत के कुछ क्षेत्रों को जीता और तक्षशिला को अपने राज्य की राजधानी बनाया था। मिनाण्डर सर्वाधिक प्रसिद्ध यवन शासक था, जिसका कार्यकाल 160 ई. पू.-120 ई. पू. था जिसने भारत में यूनानी सत्ता को स्थायित्व प्रदान किया था। जिसका उल्लेख जैन और बौद्ध ग्रंथो में देखने को मिलता है।
शक वंश का इतिहास (History of Shaka Vansh in Hindi) :
- भारतीय स्रोत जिनमे बौद्ध और जैन ग्रन्थ शामिल है इन ग्रंथो में शंक वंश को ‘सीथियन’ नाम दिया गया हैं, यवन शासकों के पश्चात् शक वंश के शासको ने भारत में आक्रमण करना शुरू कर दिया, शक वंश के शाशको ने भारत में यवन शासकों से भी अधिक भू-भाग पर अधिकार किया था।
- इतिहासकारो के मुताबिक शक पाँच शाखाओं में विभाजित थे- प्रथम शाखा काबुल में, द्वितीय शाखा तक्षशिला में, तृतीय शाखा मथुरा में, चतुर्थ शाखा उज्जयिनी में तथा पंचम शाखा नासिक में अपना प्रभुत्व स्थापित हासिल किए हुए थी।
- 58 ई. पू. में उज्जैन के एक स्थानीय राजा ने शकों को युद्ध में हरा दिया था इसके बाद उज्जैन के राजा ने खुद को “विक्रमादित्य” की उपाधि धारण की। इस उपलक्ष्य में 57 ई. पू. में एक नए हिन्दू सम्वत् यानी ‘विक्रम सम्वत्’ की शुरूआत हुई।
- शक वंश का सबसे प्रतापी शासक रुद्रदामन प्रथम को माना जाता है, शक वंश के शासक रुद्रदामन प्रथम ने सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार करवाया जिसे मौर्य शासको ने बनाया था।। रुद्रदामन का ‘गिरनार अभिलेख’ संस्कृत भाषा में लिखा हुआ है।
- शक वंश का अन्तिम शासक रुद्रसिंह तृतीय था, इसे गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय ने युद्ध में हराकर पश्चिमी क्षत्रपों के राज्यों को अपने गुप्त साम्राज्य में विलीन कर लिया था, रुद्रसिंह तृतीय युद्ध में लड़ते हुए मारा गया और इस प्रकार शकों की सत्ता का अन्त हो गया।
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पहल्व वंश का इतिहास (History of Pahlva Vansh in Hindi) :
- जब शक वंश का अन्तिम शासक रुद्रसिंह तृतीय की युद्ध में मृत्यु हो गई तब पश्चिमोत्तर भारत में पथियाई लोगों का आधिपत्य स्थापित हुआ। इतिहासकार पर्थियाई लोगों का मूल निवास स्थान ईरान को मानते है, भारतीय साहित्य में इन्हें ‘पहल्व’ कहा गया है। पहल्व वंश के शासको ने Magadh Samrajya पर कब्ज़ा नहीं किया था इनका शासन भारत के पश्चिम तक ही सिमित था।
- पहल्व वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक गोन्दोफर्निस था, जिसकी राजधानी तक्षशिला थी। गोन्दोफर्निस के शासन काल में सेण्ट टॉमस ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए भारत आया था।
कुषाण वंश का इतिहास (History of Kushan Vansh in Hindi) :
- जैसे जैसे पहल्वों का शासन कमजोर हुआ वैसे वैसे कुषाणों ने भारत में आक्रमण करना शुरू कर दिया और Magadh Samrajya पर अधिकार जमा लिया। अधिकांश आधुनिक इतिहासकार “विद्वान कुषाणों” का सम्बन्ध पश्चिमी चीन के गोबी प्रदेश में रहने वाले यू-ची जाति से मानते हैं।
- 78 ई. में कनिष्क कुषाण साम्राज्य का शासक बना। कनिष्क कुषाण वंश का सबसे प्रतापी शासक था। कनिष्क ने अपने शासन के दौरान गन्धार, कश्मीर, सिन्ध एवं पंजाब पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था। कनिष्क ने अपने Magadh Samrajya की प्रथम राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) को तथा अपने Magadh Samrajya की द्वितीय राजधानी मथुरा को बनाया था।
- कनिष्क ने बौद्ध धर्म को संरक्षण प्रदान किया था, कुषाण वंश के प्रसिद्ध राजा कनिष्क के शासन के दौरान कश्मीर के गुण कुण्डल वन में वसुमित्र की अध्यक्षता में चतुर्थ बौद्ध संगीति आयोजित की गई थी।
- अश्वघोष, कनिष्क का राजकवि था; अश्वघोष ने कनिष्क के आदेश पर बुद्धचरित की रचना की जिसे “बौद्धों का रामायण” भी कहा जाता है।
- कनिष्क के कुल का अन्तिम महान् शासक वासुदेव था। जो Magadh Samrajya की गद्दी पर बैठा था।
Magadh Samrajya ka Antim Shasak kaun tha?
Magadh Samrajya ka Antim Shasak कुषाण वंश का शासक वासुदेव था। कनिष्क की मृत्यु के बाद Magadh Samrajya की गद्दी पर उसका पुत्र हुविष्क बैठा। हुविष्क का कार्यकाल 106 ई. 138 ई. था हुविष्क के समय में कुषाण सत्ता का प्रमुख केन्द्र पेशावर से हटकर मथुरा पहुँच गया था। हुविष्क के मृत्यु के पश्चात् मगध की गद्दी पर वासुदेव बैठा था वो Magadh Samrajya ka Antim Shasak था।
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