भारतीय इतिहास में Bhartiya Chitrakala के उत्कृष्ट नमूने हमें देखने को मिलते है ‘कामसूत्र’ ग्रन्थ के रचयिता वात्स्यायन ने चित्रकला को 64 कलाओं में चौथा स्थान दिया था। Bhartiya Chitrakala की सबसे बेजोड़ चित्रकारी अजन्ता की गुफाओं में देखने को मिलती है अजन्ता की गुफाओं की गई चित्रकारी को बनाने में कई शताब्दियों का समय लगा था।
इतिहासकारो का मानना है कि अजन्ता की गुफाओं की सबसे प्राचीन भारतीय चित्रकारी प्रथम शताब्दी ई.पू. की हो सकती है। अजन्ता की गुफाओ में जो चित्रकारी की गई है उन चित्रों की विषय वस्तु भगवान बुद्ध के विभिन्न जन्मों की कथाओं अर्थात् जातक को बनाया गया है।
छठी शताब्दी की शुरुवात में चालुक्यों शासको द्वारा बादामी नामक जगह में, सातवीं शताब्दी के अंत में पल्लव वंश के शासको द्वारा पनमलै में, नवीं शताब्दी के मध्य में पाण्ड्य शासक द्वारा सित्तनवासल नमक जगह में, 12वीं शताब्दी में चोल शासको द्वारा तंजौर जो की अभी तमिलनाड़ू में है तथा 16वीं शताब्दी की शुरुवात में विजयनगर साम्राज्य के शासकों द्वारा लेपाक्षी (जो की आँध्र प्रदेश में है) में भित्ति चित्रकारी के उत्कृष्ट नमूने तैयार करवाए गए थे ।
भारतीय चित्रकला के प्रमुख उदाहरण (Major Examples of Bhartiya Chitrakala in Hindi) :
अजन्ता की गुफाएँ (Ajanta Caves in Hindi) :
अजन्ता की गुफाएँ महाराष्ट्र राज्य में औरंगाबाद से 106 किलोमीटर की दूरी पर उपस्थित है। 1843 ई. में अंग्रेज इतिहासकार जेम्स फर्ग्युसन के लेखों से संसार को अजन्ता की गुफाओ की जानकारी मिली। 1840 ई. में मद्रास सेना के एक सिपाही ने अजन्ता की गुफाओ खोज की थी। इतिहासकार ऐसा मानते है कि अजन्ता की गुफाओ के चित्रों का सृजन 200 ई. शुरुवात से लेकर 7वीं शताब्दी तक शुंग वंश, कुषाण वंश, गुप्त वंश आदि शासकों के काल में हुआ। यहाँ कुल 29 गुफाएँ हैं, जिनमें 4 चैत्य और 25 विहार गुफाएँ हैं।
ऊपर से पू. कीचे की ओर काटकर इन गुफाओं बनाया गया है। गुफाओं के बाहर की साइड में अलंकृत और खूबसूरत बरामदे हैं। गुफा संख्या 1, 2, 9, 10, 16 और 17 में गुफाओं की दीवारों पर हम आज भी कलात्मक अंकन देख सकते हैं। अजन्ता की गुफाएँ Bhartiya Chitrakala के प्रमुख उदाहरणों में से एक है।
सर्वाधिक प्राचीन गुफाएँ 9 और 10 हैं। गुफा संख्या 1, 7वीं शताब्दी की है, जबकि गुफा संख्या और 17 गुप्तकालीन हैं। अजन्ता के चित्रों का मुख्य विषय बौद्ध धर्म से सम्बन्धित है। जिसमे गौतम बुद्ध के उपदेशो की झलक हमें देखने को मिलती है।
गुफा के कुछ चित्रों में गेरूआ, हरा, रामरज, काजल, नीला और चूने रंग का प्रयोग विशेष रूप से हुआ है। चित्रों में पशु-पक्षियों के साथ पुष्प, नाग, गरुड़, यक्ष, बैल आदि के भी सुन्दर चित्र बनाए गए हैं। गुफाओं की दीवारों तथा छतों पर भगवान बुद्ध के जन्म से सम्बन्धित कथाओं को चित्रित किया गया है।
एलोरा की गुफाएँ (Ellora Caves in Hindi) :
महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले में एलोरा की गुफाएँ शिल्पकला, स्थापत्य कला व Bhartiya Chitrakala का अनुपम समन्वय प्रस्तुत करती हैं। एलोरा की गुफाएँ पहले इन गुफाओं की संख्या 43 थी, परन्तु 1990 में 28 नई गुफाओं का पता चलने के बाद अब एलोरा की कुल गुफाओं की संख्या 71 हो गई है। यहाँ मूर्ति शिल्प और भित्ति चित्रकला दोनों ही उत्कृष्ट है। कैलाशनाथ शिव का मन्दिर अत्यन्त दर्शनीय है। यहाँ मन्दिरों में जो भित्तिचित्र बने हैं उनमें कैलाशनाथ, लंकेश्वर, इन्द्रसभा और गणेश आदि के चित्र अत्यन्त मनोहर एवं आकर्षक हैं।
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बाघ की गुफाएँ (Tiger Caves in Hindi) :
मध्य प्रदेश में धार जिले से 97 किमी दूर विन्ध्य पर्वत के दक्षिणी ढलान पर हैं, जिनमें अब केवल 5 बची हैं। इन गुफाओं की खोज 1818 ई. में की गई थी। बाघ के चित्र भाव प्रधान है। ये गुफाएँ बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय से सम्बन्धित है। रंगमहल में बनी शोकाकुल स्त्री का चित्र सर्वश्रेष्ठ है। जीवन की विभिन्न दशाओं का चित्रण बाघ की गुफाओं में मिलता है। इन गुफाओं का निर्माणकाल 8वीं शताब्दी माना जाता है। एलोरा की ये गुफाएँ बौद्ध, जैन तथा ब्राह्मण धर्म से सम्बन्धित हैं।
एलीफैण्टा
ये गुफाएँ मुम्बई बन्दरगाह से 9 किमी की दूरी पर अवस्थित हैं। इसका वास्तविक नाम धारा नगरी है। एलीफैण्टा नाम पुर्तगालियों द्वारा रखा गया, क्योंकि यहाँ एक पत्थर का हाथी बना था, जो अब प्रिन्स वेल्स म्यूजियम, मुम्बई में रखा हुआ है। ये गुफाएँ एक पहाड़ी को काटकर बनाई गई हैं।
इस गुफा मन्दिर में 9 प्रतिमाएँ हैं, जिनमें भगवान शिव के विविध रूपों को दर्शाया गया है। सर्वाधिक आकर्षक प्रतिमा त्रिमूर्ति शिव की है, जिसमें अकेले शिव के ही तीन रूप प्रस्तुत किए गए हैं। भगवान शिव की अर्द्धनारीश्वर प्रतिमा में दर्शन और Bhartiya Chitrakala का अद्भुत समन्वय विद्यमान है।
बादामी गुफा
महाराष्ट्र में बम्बई के पास बादामी नामक स्थान पर चालुक्य शैली के चार गुहा मन्दिर प्राप्त हुए हैं, जिनका निर्माण चालुक्य वंशी नरेशों द्वारा किया गया। इन चार गुफाओं में तीन ब्राह्मण धर्म व एक जैन धर्म से सम्बन्धित है। यहाँ से प्राप्त भित्तिचित्रों में भावपूर्ण शैली दृष्टिगत होती है। यहाँ से प्राप्त चित्रों में स्तम्भ का सहारा लिए आकाश की ओर निहारती विरहिणी का चित्र इन्द्र की सभा का चित्र, सिंहासनासीन राजा-रानी एवं नृत्य के दृश्य आदि उल्लेखनीय हैं। बादामी की गुफाएँ Bhartiya Chitrakala के प्रमुख उदाहरणों में से एक है।
सित्तनवासल
तमिलनाडु में तंजौर जिले के समीप स्थित सित्तनवासल, Bhartiya Chitrakala का प्रमुख केन्द्र है। यहाँ पल्लव नरेश महेन्द्रवर्मन I तथा नरसिंह वर्मन ने अनेक गुहामन्दिरों का निर्माण कराया था। गुहामन्दिरों की दीवारों पर अनेक चित्र बने हैं, जिनकी भाव भंगिमा, हस्तमुद्रा, आकृति एवं अलंकरण अत्यन्त जीवन्त शैली में बने हैं। इनमें एक छत पर बने कमलवन में मीन, मकर, कच्छप, हाथी, महिष एवं हंस को संयुक्त मुद्रा में अंकित किया गया है। जो की Bhartiya Chitrakala का अनुपम समन्वय प्रस्तुत करती हैं।
काँचीपुरम
काँचीपुरम चित्रकला का प्रसिद्ध केन्द्र काँचीपुरम था। यहाँ के बैकुण्ठ पेरुमल मन्दिर से 8वीं शताब्दी के चित्रावशेष प्राप्त हुए हैं। Bhartiya Chitrakala का उत्कृष्ट नमूना है।
तंजौर
तंजौर स्थित वृहदेश्वर मन्दिर की भित्ति पर अंकित चित्रावलियों की शैली अजन्ता से प्रभावित है।
भीमबेटका, आदमगढ़ एवं महादेव
ये तीनों स्थल Bhartiya Chitrakala की प्राचीनता के साक्षात प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। इन स्थलों में मध्य पाषाणकाल की चित्रकला के प्रमाण मिलते हैं। इन चित्रों में जंगली भैंसे, हाथी, शेर, गैण्डा, सुअर आदि जंगली जानवरों के चित्र मिलते हैं। स्त्रियों के चित्र, पक्षी भोजन की तलाश में मानव तथा शिकार के दृश्य उनमें प्रमुख हैं।