हाड़ी रानी (Hadi Rani) का इतिहास – राजस्थान के इतिहास को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं हैं। यहां का इतिहास सबसे अनूठा और सबसे गौरवशाली है यहां एक नहीं हजारों राजपूतों ने अपनी तलवार की ताकत से अपने दुश्मनों को हराकर अपनी मातृभूमि को विदेशी गुलामी से बचाया है। ऐसी सरज़मीन पर कुछ ऐसी क्षत्राणीयाँ भी हुई है जिनके बलिदान के किस्से इतिहास में अमर हो गए।
आइए सुनते हैं ऐसी ही एक राष्ट्रभक्त वीरांगना Hadi Rani ki Kahani.…
Hadi Rani ki Kahani (Hadi Rani Story in Hindi) :
उस महान वीरांगना का नाम है सलेह कंवर। सलेह कंवर बूंदी के शासक संग्राम सिंह हाड़ा की बेटी थी। इसलिए इनको Hadi Rani के नाम से भी जाना जाता है। यह कहानी 16वीं शताब्दी की है जब मेवाड़ पर महाराणा राज सिंह का शासन था।
ऐसा माना जाता है कि Hadi Rani के विवाह को सिर्फ सात दिन ही हुए थे। एक दिन अचानक महाराणा राज सिंह ने उनके पति रावत रतन सिंह चुंडावत को युद्ध पर जाने का फरमान भिजवाया जिसमें लिखा था कि दिल्ली से औरंगजेब की मदद के लिए आ रही उसकी अतिरिक्त फौज को रोकने के लिए उन्हें तत्काल सेना सहित निकलने का आदेश दिया गया था।
यह फरमान सुन कर नवविवाहित रतन सिंह का मन व्यथित हो गया। वह यह सोच सोच कर परेशान हो रहे थे कि अभी उनकी शादी को सिर्फ सात दिन ही तो हुए हैं और इतनी जल्दी महाराणा ने उनको अपने राजकर्तव्य का निर्वहन करने के लिए बुलावा भेज दिया। और कौन जानता था युद्ध जैसी विकट परिस्थिति में क्या होगा!
पत्नी से बिछड़ने की घड़ी आ गई थी क्योंकि औरंगजेब की सेना तेजी से आगे बढ़ रही थी इसलिए उनको अपनी सेना को युद्ध की तैयारी करने के लिए जल्द से जल्द रवाना करना था। भारी मन से यह संदेश लेकर वह अपनी पत्नी के पास पहुंचे और उन्हें सारी कहानी सुनाई। रानी भी यह खबर सुनकर ज़रा दुखी हुई लेकिन उन्होंने जल्दी ही खुद को संभाल लिया और अपने पति को युद्ध में जाने के लिए मना लिया और उन्हें विदा होने के लिए तैयार किया ।
केसरिया बाना पहन कर खड़े अपने पति की आरती उतारकर उनके लिए विजय की कामना करके उन्हें युद्ध के लिए रवाना कर दिया।
रतन सिंह अपनी सेना लेकर चले तो गए लेकिन मन ही मन उन्हें यह परेशानी भी सता रही थी कि क्या होगा अगर मेरी पत्नी मुझे भूल जाए क्योंकि मैंने तो उन्हें कुछ सुख नहीं दिया। इतने से वक़्त में उन्हें छोड़कर युद्ध के लिए चला आया।
रह रह कर उनका ध्यान अपनी रानी पर चला जाता। उनके लिए आने वाली विपत्ति और आने वाली कठिन परिस्थितियों पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो गया। वह जितना अपने मन को समझाते उतना ही उनका मन विचलित हो रहा था।
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और अंत में जब उनसे नहीं रहा गया तो उन्होंने आधे रास्ते से ही अपनी प्रिय पत्नी के लिए एक संदेश अपने सन्देशवाहक के साथ भिजवाया। पत्र में लिखा था – मेरी प्रिये, तुम मुझे भूल मत जाना। मेरा इंतजार करना। मैं तुम्हारे पास ज़रूर लौट कर आऊंगा। मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही है और अगर संभव हो तो अपनी कोई निशानी मेरे सेवक के साथ भेज देना। उसे देख-देख कर मैं अपना मन हल्का कर लिया करूंगा और तुम्हारी याद भी मुझे इतनी नहीं सताएगी।
रतन सिंह का यह पत्र पढ़ते ही रानी सोच में पड़ गई। उन्हें चिंता सता रही थी कि अगर इसी तरह उनके पति मोह-माया से घिरे रहे तो शत्रुओं से कैसे लड़ पाएंगे और इस तरह तो उनकी जीत नामुमकिन है। और एक राजपूत हार कर वापस आए यह तो एक राजपुत कुल के लिए सबसे शर्मनाक बात है। Hadi Rani ने अपने पति के पत्र के जवाब में लिखा, मेरे प्रिय मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशानी भेज रही हूँ । मैं आपको अपने प्रेम के बंधन से मुक्त कर रही हूं। आप बेफिक्र होकर अपने कर्तव्य का पालन करना और अपनी मातृभूमि की रक्षा करना। मैं स्वर्ग में आपका इंतज़ार करूंगी ।
हाड़ी रानी का बलिदान
और अगले ही पल इस मातृभक्त वीरांगना Hadi Rani ने एक झटके से अपनी तलवार निकाली और अपना सर अपने शरीर से अलग कर दिया। यह सब देखकर उस संदेशवाहक की सांसे रुक गई और उसके आंसू निकल गए। वह अपनी रानी का कटा हुआ सिर एक सोने की थाल में सजाकर और लाल चुनरी से ढक कर अपने सरदार के पास ले गया ।
जब संदेशवाहक वह निशानी लेकर अपने सरदार के पास पहुंचा तो रतन सिंह ने पूछा, क्या तुम Hadi Rani की निशानी लाए? तो संदेशवाहक ने कांपते हाथों से और भारी मन से उस थाली को उनकी और बढ़ा दिया।
रतन सिंह की आंखें फटी की फटी रह गईं। उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि वह क्या देख रहे थे। उनके मोह ने उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज़ छीन ली थी। उन्हें जीने का कोई मकसद नजर नहीं आया। मोह के सारे बंधन जैसे एक झटके में ही टूट गए थे।
अपना यह दुख वे सह ना सके और वो अपनी दुश्मन सेना पर बिजली की तरह टूट पड़े। उनका शौर्य उस जंग में जिसने भी देखा, देखता रह गया।ऐसी बहादुरी जिसकी मिसाल मिलना बहुत कठिन है। वह अपनी अंतिम सांस तक लड़ते रहे और उनके पराक्रम से मुगल सेना मैदान छोड़कर भाग गई।
मुग़लों के खिलाफ ये जंग रतन सिंह भले ही जीत गए थे लेकिन अपने जीवन की जंग वो कब के हार चुके थे।
इसलिए इस युद्ध के समाप्त होने के बाद उन्होंने घुटने टेक कर अंतिम बार अपनी प्रिय पत्नी को याद किया और उन्होंने अपना भी सर अपनी तलवार से काट लिया क्योंकि उनकी प्रिय Hadi Rani स्वर्ग में उनका इंतज़ार कर रही थी और वह उन्हें और इंतज़ार नहीं करवाना चाहते थे।
मेवाड़ ये जंग जीत गया था। इस जीत का जितना श्रेय हम रावत रतन सिंह और उनके शौर्य को देते हैं उससे कहीं ज्यादा श्रेय Hadi Rani के इस अमूल्य और अप्रतिम बलिदान को भी जाता है। मेवाड़ की रानी Hadi Rani की यह वीर गाथा देशभक्तों के मन में बलिदान की भावना जगाने वाली और लोगों को मातृभूमि पर न्योछावर होने के लिए प्रेरणा देने वाली है।
इतिहास के पन्नों पर Hadi Rani अपनी अमिट छाप छोड़ने और अपनी मातृभूमि के लिए कुछ भी करने की प्रेरणा देने वाली अमर Hadi Rani के बलिदान की यह कहानी आपको भी प्रेरणादायक लगी हो तो इसे शेयर ज़रूर करें। ऐसी ही और कहानियों के लिए हमारी वेबसाइट को ज़रूर विज़िट करें।