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Gupt Samrajya का इतिहास (Gupt Kal History in Hindi)

Gupt Samrajya का उदय तीसरी शताब्दी के अन्त में प्रयाग के निकट कौशाम्बी नामक जगह पर हुआ था। Gupt Vansh की स्थापना श्री गुप्त ने तीसरी शताब्दी के शुरुवात में की थी।

चन्द्रगुप्त प्रथम का इतिहास (Chandragupta I History in Hindi) :

  • गुप्त काल के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त प्रथम ही Gupt Vansh का प्रथम स्वतन्त्र शासक था, चन्द्रगुप्त प्रथम ने ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण की थी।
  • Gupt Vansh के प्रथम शासक श्री गुप्त थे, चन्द्रगुप्त प्रथम Gupt Vansh के द्वितीय शासक घटोत्कच का पुत्र था। चन्द्रगुप्त प्रथम का शासन काल (319-324 ई.) के बीच का था, चन्द्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवि महाजनपद की राजकुमारी ‘कुमार देवी’ के साथ विवाह किया था। कुमार देवी से विवाह करने के बाद चन्द्रगुप्त प्रथम को उपहार स्वरूप वैशाली नगर का राज्य प्राप्त हुआ था।
  • चन्द्रगुप्त प्रथम ने ‘गुप्त सम्वत्’ की शुरूआत 319-20 ई. में की थी।
  • Gupt Vansh में सबसे पहले चन्द्रगुप्त प्रथम ने चाँदी के सिक्के चलवाये थे।

समुद्रगुप्त का इतिहास (History of Samudragupta in Hindi) :

  • चन्द्रगुप्त प्रथम की मृत्यु पश्चात् उसका पुत्र समुद्रगुप्त Gupt Samrajya का शासक बना, समुद्रगुप्त लिच्छवि राजकुमारी ‘कुमार देवी’ से उत्पन्न हुआ था।
  • Gupt Vansh में समुद्रगुप्त का शासन काल राजनैतिक एवं सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से Gupt Kal के उत्कर्ष का काल माना जाता है। समुद्रगुप्त के विषय से जुड़े हुए अनेक शिलालेखों, स्तम्भलेखों, मुद्राओं व बौद्ध और जैन ग्रन्थों से समुद्रगुप्त के शासनकाल के बारे में अच्छी जानकारी प्राप्त होती है, और ये एक सौभाग्य की बात है कि समुद्रगुप्त के शासनकाल से जुड़े हुए साहित्यिक ग्रन्थ अभी भी प्रयाग प्रशस्ति के रूप में अभी भी सुरक्षित है।
  • राजसिंहासन पर आसीन होने के पश्चात् समुद्रगुप्त ने अपने पिता चन्दगुप्त प्रथम की तरह दिग्विजय की योजना बनाई। प्रयाग-प्रशस्ति शिलालेख के अनुसार इस योजना का ध्येय ‘धरणि बन्ध’ (भूमण्डल को बाँधना) था। हरिषेण, समुद्रगुप्त का दरबारी कवि था, हरिषेण ने गुप्त शासक समुद्रगुप्त के आदेश पर ‘प्रयाग प्रशस्ति’ नामक प्रसिद्ध लेख की रचना की थी ।
  • समुद्रगुप्त Gupt Vansh का एक महान् योद्धा तथा कुशल सेनापति था, समुद्रगुप्त ने Gupt Samrajya की सीमाओं को दूर दूर तक फैलाया था। इसी कारण कुछ इतिहासकार समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन भी कहते है।
  • समुद्रगुप्त विष्णु भगवान का कटटर उपासक था। समुद्रगुप्त संगीत प्रेमी भी था प्रयाग प्रशस्ति में रखे हुई Gupt Kal के सिक्कों पर समुद्रगुप्त को वीणा बजाते हुए दिखाया गया है।

ये भी पढ़े –

  • मगध साम्राज्य का इतिहास
  • कुम्भलगढ़ किले का इतिहास

चन्द्रगुप्त द्वितीय का इतिहास (History of Chandragupta II in Hindi) :

  • समुद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् Gupt Samrajya में रामगुप्त नामक एक दुर्बल शासक के अस्तित्व की जानकारी गुप्त वंशावली में मिलती है, रामगुप्त Gupt Samrajya तत्पश्चात् चन्द्रगुप्त द्वितीय का नाम है। चन्द्रगुप्त द्वितीय, रामगुप्त का अनुज था।
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में Gupt Samrajya अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त हो गया था। चन्द्रगुप्त द्वितीय ने दूसरे महाजनपदों के शासको के साथ वैवाहिक सम्बन्ध बनाकर और कुछ महाजनपदों पर विजय प्राप्त करके दोनों प्रकार से Gupt Samrajya का विस्तार किया था।
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय के बनाए हुए कई अभिलेखों और मुद्राओं से चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ के अनेक नामों व विरुदों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है, चन्द्रगुप्त द्वितीय को उनके अभिलेखों में ‘देवश्री’, ‘प्रतिरच’, “सिंहविक्रम’, ‘सिंहचन्द्र’, ‘परमभागवत’, ‘अजित विक्रम’, “विक्रमांक’, आदि नामो से सम्भोधित किया गया है। कुछ अभिलेखों में चन्द्रगुप्त को ‘विक्रमादित्य’, की उपाधि दी गई है।
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में Gupt Samrajya की प्रथम राजधानी पाटलिपुत्र और द्वितीय राजधानी उज्जयिनी थी। ये दोनों ही नगर Gupt Samrajya में शिक्षा के प्रसिद्ध केन्द्र थे।
  • इतिहासकार चन्द्रगुप्त द्वितीय का काल भारतीय साहित्य और कला का स्वर्ण युग मानते है। चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में चीनी यात्री फाह्यान (399-412 ई.) भारत यात्रा पर आया था।

कुमारगुप्त प्रथम का इतिहास (History of Kumaragupta I in Hindi) :

चन्द्रगुप्त द्वितीय के पश्चात् उसका पुत्र कुमारगुप्त प्रथम Gupt Samrajya का शासक बना। कुमारगुप्त प्रथम का शासनकाल 413 ई. से लेकर 455 ई. तक था Gupt Samrajya में सर्वाधिक अभिलेख कुमारगुप्त के ही प्राप्त हुए है। नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त प्रथम के शासन काल में की गई थी।

स्कन्दगुप्त का इतिहास (History of Skandagupta in Hindi) :

  • पुष्यमित्रों के आक्रमण के दौरान ही युद्ध में लड़ते हुए गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम को मृत्यु हो गई थी। अतः कुमारगुप्त की मृत्यु के पश्चात् उसका प्रतापी पुत्र स्कन्दगुप्त सिंहासनारूढ़ हुआ। स्कन्दगुप्त Gupt Vansh का अन्तिम प्रतापी और महान शासक था।
  • स्कन्दगुप्त के शिलालेखों से पता चलता है कि स्कंदगुप्त ने देवराज, विक्रमादित्य, क्रमादित्य आदि उपाधियों धारण की थी। स्कन्दगुप्त ने मौयों शासको द्वारा निर्मित सुदर्शन झील का जीणोद्धार करवाया था।
  • स्कन्दगुप्त के समय ही विदेशी आक्रमणकारी हुणों का आक्रमण हुआ, जिसका उसने अपने सेना कौशल से सफल प्रतिरोध किया। उसके बाद का कोई भी Gupt Vansh का शासक हूणों के आक्रमण को रोकने में सफल नहीं हो सका।
  • स्कन्दगुप्त की मृत्यु 467 ई. में हुई थी। Gupt Vansh का अन्तिम गुप्त शासक भानुगुप्त था।

गुप्तकाल में सांस्कृतिक विकास (Cultural development in the Gupt Kal in Hindi) :

गुप्त युग में विविध प्रकार की कलाओं तथा मूर्तिकला, चित्रकला, वास्तुकला, संगीत व नाट्य कला तथा मुद्रा कला के क्षेत्र में आशातीत उन्नति हुई। बहुतायत में देवताओं की मूर्तियों का निर्माण हुआ। मूर्तियों में विष्णु, शिव, पार्वती, ब्रह्मा, बुद्ध तथा जैन तीर्थंकर की मूर्तियों का निर्माण हुआ।
इतिहासकार गुप्तकाल को भारतीय युग का गोल्डन पीरियड मानते है गुप्तकाल में बौद्ध धर्म और जैन धर्म का प्रसार-प्रसार हुआ था। गुप्तकाल में विश्वविद्यालय और झीलों का निर्माण हुआ था Gupt Kaal के शासको ने सोने और चाँदी के सिक्के चलवाये थे। Gupt kal में प्रशासन, सामाजिक विकास और धर्म के विकास के बारे में विस्तार से बात करेंगे।

गुप्तकाल में प्रशासन (Administration during the Gupta period Gupt Kal in Hindi) :

  • राजाओं को ‘परमेश्वर’, ‘महाराजाधिराज’, ‘परमभट्टारक’ आदि नामों से पुकारा जाता था। ‘कुमारामात्य’ दरबार में सबसे प्रमुख अधिकारी होते थे और ये व्यपार समन्धित चीजों का ध्यान रखते थे । केन्द्र में मुख्य विभाग सैन्य था जो सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था। सन्धि विग्राहिक सेना का मुख्याधिकारी होता था।
  • गुप्त काल के शासको ने व्यपार के लिए सोने के सिक्के चलाए और जो सिक्के गुप्तकाल के शासको ने चलाए उन सोने के सिक्को को ‘दीनार’ के नाम से पुकारा जाता था।
  • चन्द्रगुप्त प्रथम के सिक्कों पर चन्द्रगुप्त व कुमार देवी का चित्र व नाम अंकित है।

गुप्तकाल में सामाजिक विकास (Social Development in the Gupta period Gupt Kal in Hindi) :

  • ज्यादातर जातियाँ, अपने कार्यो के हिसाब से उपजातियों में विभक्त हो गई थीं। स्त्रीयो की दशा समाज में पहले से ज्यादा निम्न हो गई थी। इसी काल से सती प्रथा की प्रथम घटना का उल्लेख भानुगुप्त के एरण अभिलेख में हमें देखने को मिलता है।
  • समाज में शूद्रों की दशा में थोड़ा सुधार जरूर हुआ था। परन्तु छुआछूत की प्रथा जो की हमें बाद के वर्षो में हमें देखने को मिलती है उसकी शुरुवात इसी काल के दौरान हुई थी।
  • फाह्यान जो की चीनी यात्री था जो Gupt Samrajya के काल में भारत आया था, उसने अपनी पुस्तक में लिखा, चाण्डाल लोगो को नीच जाती का समझा जाता था चांडाल लोगो को समाज से बहिष्कृत किया हुआ था चांडाल लोगो के घर गांव से बाहर हुआ करते थे।
  • कुमारगुप्त के शासन के दौरान नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी।

गुप्तकाल में धर्म (Religion in the Gupt Kal in Hindi) :

  • बौद्ध धर्म का जो प्रचलन मौर्य युग से शुरू हुआ था Gupt Samrajya के काल में बौद्ध धर्म का प्रचलन कम हो गया था। वर्तमान में प्रचलित हिन्दू धर्म के स्वरूप का निर्माण इसी युग में हुआ।
  • कुछ इतिहासकार ऐसा मानते है कि भगवद्गीता की रचना भी गुप्तयुग में हुई थी ।
  • विष्णु गुप्त शासको के इष्ट देवता थे।
  • गुप्तकाल के दौरान लोग मूर्ति पूजा करते थे ।

गुप्तकाल में कला (Art in the Gupt Kal in Hindi) :

  • सारनाथ की बुद्धमूर्ति, मथुरा की वर्धमान महावीर की मूर्ति, विदिशा की वराह अवतार की मूर्ति, झाँसी की शेषशायी विष्णु की मूर्ति, काशी की गोवर्द्धनघारी कृष्ण की मूर्ति आदि इस युग की मूर्तिकला के प्रमुख उदाहरण हैं।
  • बामियान जो की अभी अफगानिस्तान में है वहां कि बौद्ध मूर्तियाँ भी गुप्तकाल से सम्बन्धित थीं। अजन्ता की गुफाओं के चित्र जो महारष्ट्र में है वो भी इस युग की चित्रकला के सर्वोत्तम उदाहरण हैं।
  • वास्तुकला के अन्तर्गत इस युग में विभिन्न मन्दिर, गुफा, चैत्य, विहार, स्तूप तथा अट्टालिकाओं से युक्त वैभवशाली नगरों और किलो का निर्माण हुआ। नगरों और किलो को बनाने में पत्थरों तथा पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया।
  • झाँसी स्थित देवगढ़ का दशावतार का मन्दिर, उत्तरप्रदेश राज्य के कानपुर जिले में स्थित भीतरगाँव का मन्दिर, राजस्थान राज्य के नागौर जिले में स्थित भूमरा का शिव मन्दिर आदि इस युग की वास्तुकला के कुछ श्रेष्ठ उदाहरण हैं।

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