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घन वाद्य यंत्र परिभाषा और प्रकार (Ghan Vadya Yantra in Hindi)

ऐसे वाद्य यंत्र जिन पर चोट या आघात कर के स्वर और ध्वनि उत्पन्न की जाती है, घन वाद्य कहलाते हैं। इन वाद्य यंत्रों को बनाने में धातु का विशेष प्रयोग होता है।

घन वाद्य यंत्र क्या होते है? (What is Ghan Vadya Yantra in Hindi) :

ऐसे वाद्य यंत्र जिनका ढांचा सख्त होता है यानी जो आसानी से मूड नहीं सकते जैसे लोहा, पीतल, तांबा, कांसा, चांदी आदि। ऐसे कठोर वाद्य यंत्रों से आवाज निकालने के लिए इनको खुरचा जाता है, आघात किया जाता है या खड़काया जाता है। ऐसे वाद्य यंत्रों की बनावट में एक या एक से ज्यादा कठोर चीजों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे लोहा और लकड़ी (करताल)। ऐसे वाद्य यंत्र कोई सूर पैदा नहीं करते लेकिन इन्हें संगीत बनाते समय राग उत्पन्न करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है जैसे करताल, मंजीरा, घंटी, घुंघरू, लेझिम, काठी और जलतरंग आदि।

मंजीरा घन वाद्य यंत्र (Majira Ghan Vadya Yantra in Hindi) :

पीतल और कांसे को मिलाकर एक मिश्रित धातु बनाई जाती है जिसे गोल आकार देकर मंजीरा बनाई जाती है। मंजीरा हमेशा जोड़े में बजाया जाता है। कामड़ प्रजाति की महिलाएं तेरहताली नृत्य करते समय मंजीरा इस्तेमाल करती हैं। भक्ति कीर्तन करते वक्त और भजन गाते वक्त ढोलक के साथ संगत देने के लिए इसका इस्तेमाल बहुत प्रचलित है।

ये भी पढ़े –

  • वाद्य यंत्र के नाम, प्रकार और परिभाषा
  • तत् वाद्य यंत्र की परिभाषा और प्रकार

करताल घन वाद्य यंत्र (Kartal Ghan Vadya Yantra in Hindi) :

इसे लकड़ी से बनाया जाता है। इस वाद्य यंत्र का मुख्य हिस्सा लकड़ी के दो चौकोर टुकड़ों को काटकर बनाया जाता है और उनके बीच में खाली जगह छोड़ दी जाती है। इस खाली जगह में पीतल की बहुत पतली पतली और छोटी गोल आकर की पत्तियां लकड़ी के बीच फँसा दी जातीं हैं। जब लकड़ी के टुकड़े आपस में टकराते हैं तो इससे पैदा होने वाली आवाज बहुत मधुर होती है। करताल को हाथों और उंगलियों के बीच में फंसा कर ब॥में इस्तेमाल किया जाता है। मंजिरे और इकतारे से साथ इसका सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होता है। पाली और बाड़मेर ज़िलों में गैर नृत्य करते समय भी इसका प्रयोग किया जाता है।

चिमटा घन वाद्य यंत्र (Chimta Ghan Vadya Yantra in Hindi) :

इस वाद्य यंत्र को बनाने के लिए लोहे की दो पतली पतली समान आकार की पत्तियों को मिलाकर इनके बीच में लोहे की छोटी-छोटी पतली गोल पत्तियां लगा दी जाती हैं। इसे बजाने के लिए इसको एक हाथ से पकड़ कर दूसरे हाथ की उंगलियों से आघात किया जाता है। भजन संध्या के समय में चिमटा बहुतायत में यूज़ होता है।

झाँझ घन वाद्य यंत्र (Jhanjh Ghan Vadya Yantra in Hindi) :

यह दिखने में मंजीरे से बड़ा होता है। शेखावाटी इलाके में कच्छी घोड़ी नृत्य करते समय झाँझ का इस्तेमाल ताशा के साथ भी किया जाता है।

थाली घन वाद्य यंत्र (Thali Ghan Vadya Yantra in Hindi) :

थाली कांसे या पीतल की बनी होती है। इसे रेगिस्तानी,HH कालबेलिया और बाहेती जाति के लोग बजाते हैं। चरी नृत्य करते समय भी थाली का इस्तेमाल किया जाता है।

झालर घन वाद्य यंत्र (Jhalar Ghan Vadya Yantra in Hindi) :

तांबे या कांसे की मोटी गोल प्लेट पर लकड़ी के डंडे से आघात कर के बजाया जाता है। यह राजस्थान में मंदिरों में सुबह शाम की आरती के समय नगाड़ों के साथ बजाई जाती है।

घड़ा घन वाद्य यंत्र (Ghada Ghan Vadya Yantra in Hindi) :

एक ऐसा मिट्टी का घड़ा जिसका मुंह छोटा होता है। वादक उसे अपने दोनों हाथों में उठा कर मुंह से उसके अंदर फूंक मारकर ध्वनियाँ पैदा करते हैं। जब इसमें फूंक मारी जाती है तो इससे एक विशिष्ट लय में हिलाया और घुमाया जाता है जिससे मधुर संगीत बनता है। जैसलमेर, बाड़मेर के भक्ति संगीत और कीर्तनों के दौरान घड़े का इस्तेमाल प्रमुख रूप से किया जाता है।

गरासियों की लेझिम घन वाद्य यंत्र (Garasiyon ki Lejhim Ghan Vadya Yantra in Hindi) :

इस वाद्य यंत्र में बांस का बना हुआ एक धनुष आकार का टुकड़ा होता है जिसमें एक साँकल की मदद से पीतल की छोटी-छोटी पतली गोलाकार पत्तियों को फँसाया जाता है। इससे ध्वनि उत्पन्न करने के लिए इसे एक हाथ से पकड़ कर दूसरे हाथ से झटका जाता है।
ऐसे जमें एक या एक से ज्यादा कठोर चीजों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे लोहा और लकड़ी (करताल)। ऐसे वाद्य यंत्र कोई सूर पैदा नहीं करते लेकिन इन्हें संगीत बनाते समय राग उत्पन्न करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है जैसे करताल, मंजीरा, घंटी, घुंघरू, लेझिम, काठी और जलतरंग आदि।

घुँघरू घन वाद्य यंत्र (Ghunghuru Ghan Vadya Yantra in Hindi) :

घुँघरू भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में प्रमुख रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले वाद्य यंत्रों में से एक हैं। घुँघरू इतने ज़्यादा इस्तेमाल होते हैं कि लोगों को मालूम ही नहीं होता कि यह एक तरह का वाद्य यंत्र है। घुँघरूओं को बनाने के लिए मलमल करने के लिए मोटे कपड़े पर कांसे या पीतल की छोटी छोटी गोल घंटियां लगाई जाती है जिसके ऊपरी सिरे पर थोड़ी सी खुली जगह काट कर छोड़ दी जाती है।

इनके अंदर से ध्वनियाँ निकालने के लिए इनके अंदर छोटे-छोटे कंकड़ या लोहे की गोलीयाँ भर दी जाती हैं। भारत के लगभग सभी शास्त्रीय नृत्य करते समय इन्हें महिलाएं और पुरुष दोनों ही समान रूप से अपने पैरों में बांधते हैं। घुँघरू की आवाज सुनने वालों को बहुत ही मधुर लगती है।

रमझोल घन वाद्य यंत्र (Ramjhol Ghan Vadya Yantra in Hindi) :

यह वाद्य यंत्र दिखने में बिल्कुल घुँघरू की तरह ही होता है। घुँघरू और रमझोल में सबसे बड़ा अंतर यह है कि घुंगरू की लंबाई में सिर्फ चार या छह कतारें होती हैं लेकिन रमझोल में यह दस से बारह तक होती है।

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