Essay on Subhash Chandra Bose – हमारे देश भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद कराने में वैसे तो लाखों लोगों ने अपना योगदान दिया है लेकिन उन लाखों लोगों को, उनके विचारों को, उनकी भावनाओं को एक सही दिशा देने का काम किया है हमारे क्रांतिकारी नेताओं ने। इन्होंने ना सिर्फ भारत के लोगों को अंग्रेज़ो के खिलाफ आवाज उठाने में एकजुट किया बल्कि उन में देशभक्ति की भावना जगाने का काम भी किया।
ऐसे ही अनेकों नेताओं में से एक थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस। मेधावी, कर्मठ और लगन शील नेताजी का जीवन निश्चित ही दूसरों को प्रेरणा देने वाला है। आज की पोस्ट में हम आपके लिए नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध लेकर प्रस्तुत हुए हैं। अगर आप भी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध लिखना चाहते हैं तो हमारी इस पोस्ट को अंत तक अवश्य पढ़ें।
Essay on Subhash Chandra Bose | सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध
भारत की आजादी का संघर्ष कुछ सौ लोगों के नहीं बल्कि लाखों लोगों के बलिदान की देन है। हम वर्तमान भारतवासी उन बलिदानों को लगभग भूलते जा रहे हैं। हमें यह याद रखने की ज़रूरत है कि हम जिस खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं वह हवा भी किसी ज़माने में अंग्रेज़ों की हुआ करती थी। हमने हमारी पोस्ट में कई बार यह बात दोहराई है कि हमारे देश की आज़ादी का संघर्ष अपने आप में अनूठा है और यह इस वजह से है की इस महासंघर्ष में अपना योगदान देने वाले हर क्रांतिकारी का जीवन किसी आदर्श से कम नहीं है और इसी की एक कड़ी है नेताजी सुभाष चंद्र बोस।
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ओड़िशा के एक धनवान कायस्थ बैरिस्टर जानकीनाथ बॉस और प्रभावती देवी के घर सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 197 को हुआ था। जानकीनाथ बोस कटक के एक बहुत ही मशहूर वकील थे। कटक की एक प्रोटेस्टेंट स्कूल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने रेवेनशॉ कॉलेजिएट नाम की स्कूल में दाखिला लिया। 15 साल का होते होते सुभाष चंद्र बोस ने स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखी गई समस्त पुस्तकों का गहन अध्ययन कर लिया था।
सुभाष चंद्र बोस हमेशा से ही सेना में जाना चाहते थे लेकिन आंखों की रोशनी कमज़ोर होने की वजह से उन्हें अपने सपने को कभी भी पूरा करने का मौका नहीं मिला। लेकिन सुभाष के पिता चाहते थे कि वे आईसीएस की परीक्षा पास करें। इसके लिए सुभाष चंद्र बोस ने इंग्लैंड जाकर आईसीएस की परीक्षा देना तय किया। 1920 की आई सी एस परीक्षा की वरीयता सूची में सुभाष चंद्र बोस ने चौथा स्थान हासिल किया था।
लेकिन जल्दी सुभाष चंद्र बोस को ऐसा लगने लगा कि आई सी एस बनने के बाद तो वे और अधिक अंग्रेजों की गुलामी में आ गए हैं। इसलिए उन्होंने अपना पद छोड़ने के लिए अंग्रेज़ सरकार को त्याग पत्र दे दिया जिसमें उनकी मां प्रभावती देवी ने उन्हें पूरा समर्थन दिया।
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आईसीएस से त्यागपत्र देने के बाद सुभाष चंद्र बोस सबसे पहले मुंबई में महात्मा गांधी से जाकर मिले जहां गांधी जी ने उन्हें चितरंजन दास के साथ मिलकर कोलकाता में रहने वाले कांग्रेस के एक नेता दास बापू के साथ रहकर काम करने का आदेश दिया। उसके बाद गांधी जी के द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में सुभाष चंद्र बोस ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया जिसके बाद दास बाबू को कोलकाता का मेयर चुना गया।
सुभाष चंद्र बोस को एक बहुत बड़ा पद मिला जिसकी वजह से उन्होंने कोलकाता में नगरपालिका के काम करने का तरीका पूरी तरीके से बदल दिया। उनका इस दौरान सबसे उल्लेखनीय काम था सभी रास्तों और गलियों के अंग्रेज़ी नाम हटाकर भारतीय नाम रखना। उन्होंने कोलकाता में साइमन कमीशन का विरोध का नेतृत्व किया और मोतीलाल नेहरू की संविधान कमेटी के सदस्य भी बने।
सुभाष चंद्र बोस के गांधी जी के साथ कई मतभेद हुए जिसकी वजह से उन्हें 1 साल के अंदर ही कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। जेल में रहते हुए सुभाष गंभीर रूप से बीमार हो गए। अंग्रेज़ सरकार को यह डर सताने लगा कि कहीं सुभाष चंद्र बोस जैसे बड़ा नेता जेल में ही ना मर जाए। इसलिए उन्हें भारत की बजाए यूरोप जाकर इलाज करवाने की सलाह दी जिसको बाद में सुभाष चंद्र बोस ने मान लिया।
ऑस्ट्रिया में अपने इलाज के दौरान इटली के नेता मुसोलिनी से भी मिले और उनसे काफी प्रभावित हुए। सुभाष चंद्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक की भी स्थापना की और जापान की मदद से आज़ाद हिंद फौज की स्थापना उनका सबसे अविस्मरणीय योगदान है। दिल्ली चलो का नारा भी उन्हीं का था। इसके अलावा तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा का नारा भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ही दिया था।
द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद अगस्त 1945 में जब वे एक विमान से भारत आ रहे थे तब सब लोगों के पास यह खबर पहुंची कि विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है जिसके बाद नेताजी की खबर किसी को नहीं मिली। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु आज तक एक रहस्य बनी हुई है। कई लोगों ने दावा किया है कि उन्होंने नेताजी को कई जगहों पर देखा है लेकिन यह दावा सिद्ध कर पाने में वे सब असफल हुए हैं।
उपसंहार – Essay on Subhash Chandra Bose | सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत की आजादी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा किया गया योगदान अतुलनीय है। ना सिर्फ भारत में बल्कि भारत के बाहर रहते हुए भी उन्होंने अपने देश की आज़ादी को हमेशा अपना सर्वोच्च लक्ष्य बनाए रखा और यही वजह है कि संपूर्ण भारत में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम बड़े ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। उनके द्वारा किए गए कार्य हमेशा अविस्मरणीय रहेंगे और उनके जीवन से प्रेरणा लेकर भारत के युवा भी अपने जीवन को उनकी तरह सफल बनाने का प्रयास करते रहेंगे।