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सावित्री बाई फुले पर निबन्ध (Essay on Savitribai Phule in Hindi)

19वीं सदी में भारत में जब अंग्रेज़ी शासन अपने चरम पर था तब भारत के लोग अंग्रेज शासन से मुक्ति पाने के प्रयत्नों में लगे हुए थे। तब कुछ क्षेत्र ऐसे भी थे जिनमें नवाचार हो रहे थे। 19वीं सदी का काल समाज सुधारकों का काल कहा जाता है। राजा राममोहन राय, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, महात्मा ज्योतिबा फुले, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, सावित्री बाई फुले ऐसे ही कुछ समाज सुधारक हैं जिनके जीवन से प्रेरित होकर कई लोग अपने लक्ष्य को हासिल करते हैं।

आज की इस पोस्ट में हम आपके लिए सावित्री बाई फुले पर एक बहुत ही सुंदर निबंध लेकर आए हैं। हमें आशा है कि यह निबंध पढ़कर आप भी सावित्री बाई फुले पर निबंध लिखना अवश्य सीख जाएंगे।

सावित्री बाई फुले पर निबन्ध (Essay on Savitribai Phule in Hindi) :

समाज सुधार कार्यों में जिन कामों पर सबसे ज्यादा ज़ोर डाला गया था वह थे – सती प्रथा पर रोक, विधवा पुनर्विवाह, कन्या भ्रूण हत्या पर रोक, महिला स्वावलंबन और बालिका शिक्षा। ब्रिटिश काल के दौरान महिलाओं को शिक्षा हासिल करने के अधिकार से वंचित रखा गया था। कुछ ऐसी महिला समाज सुधारक भी हुई हैं जिन्होंने समाज का विरोध सहने के बावजूद बालिका शिक्षा और महिला स्वावलंबन के क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान देकर लोगों की विचारधारा में परिवर्तन किया। ऐसा ही एक नाम है सावित्री बाई फुले।

सावित्री बाई फुले का बाल्यकाल

महाराष्ट्र के सतारा जिले के नाय गांव में खंडोजी नवसे और लक्ष्मी बाई के घर सावित्री बाई का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। सावित्री बाई बचपन से ही अशिक्षित थी। 1840 में ज्योति राव फूले के साथ इनका विवाह हुआ। विवाह के बाद ज्योति राव फुले ने सावित्रीबाई को घर पर ही रह कर पढ़ना लिखना सिखाया। ज्योतिराव फुले की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लिप्त होने की वजह से सावित्री बाई फुले उनसे अत्यधिक प्रभावित हुई और उन्होंने भी इस दिशा में कुछ योगदान करने की सोची।

इसके परिणाम स्वरूप उन्होंने अपने आसपास की महिलाओं को इकट्ठा करके उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की ठानी जिसके चलते उन्होंने सबसे पहले ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर 1841 में भारत का पहला बालिका विद्यालय खोला। इस विद्यालय में सावित्रीबाई अकेली एक शिक्षिका थी। बालिका विद्यालय खुलने की बात सुन कर ही समाज के लोगों ने उनका विरोध करना शुरू किया। यहां तक कि उन पर पत्थर भी फेंक कर मारे गए लेकिन सावित्री बाई का बालिका शिक्षा की तरफ प्रयास जारी रहा।

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एक शिक्षिका होने के साथ ही सावित्रीबाई एक बहुत ही प्रखर लेखिका और कवियत्री भी थी। महाराष्ट्र में सावित्रीबाई के जन्मदिवस को बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। लोगों के निरंतर विरोध के बावजूद भी सावित्री बाई फुले अपने लक्ष्य से ज़रा भी डगमगाए नहीं और यही वजह थी कि बालिका विद्यालय के बाद इन्होंने पिछड़ी जाति के गरीब, अनाथ, बेसहारा विधवा औरतों के साथ-साथ बच्चों को भी पढ़ाना शुरू किया।

णे में खुले इन दोनों विद्यालयों की बातें सुनकर समाज के लोगों ने कड़ा विरोध किया। सावित्रीबाई ने बाल विवाह और विधवाओं के साथ होने वाले अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवाज प्रखरता से उठाई। अपनी इसी महानता को बरकरार रखते हुए सावित्री बाई फुले ने एक विधवा के द्वारा जन्म दिए गए यशवंत नाम के बालक को गोद लेकर समाज में एक महान छवि बनाई।

1896 में पुणे में एक भयानक अकाल पड़ा। अनाज की कमी तो हुई ही साथ ही साथ प्लेग बीमारी ने भी लोगों को अपनी चपेट में लेना शुरू किया। एक समाजसेवी होने के नाते ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले दोनों ने दिन-रात अपने प्रयासों से मरीज़ों की सेवा की। मरीज़ों की सेवा करने की वजह से ज्योतिबा फुले प्लेग की चपेट में आ गए और उनकी मृत्यु हो गई। अपने पति की इस अकाल मृत्यु के बावजूद भी सावित्रीबाई अपने समाज सेवा के कार्य में दिन-रात जुटी रहीं और आखिरकार उन्हें भी प्लेग ने अपनी चपेट में ले लिया जिससे उनका भी असमय निधन हो गया।

सावित्री बाई के द्वारा शुरू किए गए इस नारी शिक्षा के कार्य को आगे कई समाज सुधारकों ने जारी रखा। इसके परिणाम स्वरूप सती प्रथा पर रोक तो लगी ही साथ ही साथ विधवाओं की दशा में भी सुधार होना शुरू हुआ। महिलाओं की आत्मनिर्भरता लोगों की समझ में आई और बालिका शिक्षा के महत्व को भी समाज के लोगों ने धीरे-धीरे समझना शुरू किया। सावित्री बाई फुले के द्वारा शुरू किया गया पुणे का बालिका विद्यालय समस्त भारत में बालिका शिक्षा के लिए एक प्रमुख आदर्श बन गया। इसके बाद भारत के कई बड़े दूसरे इलाकों में बालिका विद्यालय खोलने का काम बाकी समाज सुधारकों ने शुरु किया।

उपसंहार

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सावित्री बाई फुले के द्वारा शुरू किया गया नारी शिक्षा का कार्य आगे कई महिला समाजसेवियों ने भी जारी रखा जिनमें पंडिता रमाबाई का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इन महिला समाज सुधारकों के अलावा पुरुष समाज सुधारकों ने भी नारी शिक्षा, विधवा विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों को समाज से हटाने के लिए अथक प्रयास किए।

जिसका परिणाम यह निकला कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं ने भी पुरुषों की तरह ही बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, शराब की दुकानों पर धरना दिया और विदेशी सामानों की होली जलाने में अपनी प्रमुख भूमिका निभाई। कई महिला क्रांतिकारीयों को अंग्रेज़ सरकार ने जेल भी भेजा लेकिन इस वजह से उनकी देश प्रेम की भावना में कोई कमी नहीं आई।

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