बीकानेर का किला जूनागढ़ के नाम से भी जाना जाता है। यह धान्वन श्रेणी का दुर्ग है। राजस्थान के किले यहां के अमर बलिदानी शूरवीरों के पराक्रम के साक्षी हैं। राजस्थान के किले भव्य ही नहीं स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण भी हैं। इसी कड़ी में आज हम इस पोस्ट में बीकानेर का किला जिसे जुनागढ़ के नाम से भी जाना जाता है, के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
बीकानेर का किला (Bikaner Forts in Hindi) :
ऐसे दुर्ग या किले जिन्हें विशाल रेगिस्तान में मिट्टी के धोरों के बीच रेत के बड़े-बड़े टीलों पर बनाया गया हो, जिसके चारों तरफ दूर दूर तक किसी भी तरह का कोई पेड़ या पानी का स्रोत ना हो, और किले के अंदर पानी की कमी को दूर करने के लिए जल स्रोत जैसे तालाब या कुएं बनवाए गए हो, ऐसे दुर्ग धान्वन दुर्ग कहलाते हैं।
बीकानेर दुर्ग का इतिहास (Bikaner Forts History in Hindi) :
बीकानेर के राजाओं ने मुग़ल बादशाह अकबर की अधीनता पहले ही स्वीकार कर रखी थी इसलिए बीकानेर का दुर्ग किसी बड़े आक्रमण का साक्षी कभी नहीं बना। बीकानेर के किले पर जितने भी आक्रमण हुए वह जोधपुर और नागौर के राठौड़ों के द्वारा ही किए गए थे। जोधपुर के शासक राव मालदेव ने पन्द्रह सौ इकतालीस ईसवी में बीकानेर के पुराने दुर्ग बिका की टेकरी पर आक्रमण करके यहां अपना अधिकार कर लिया था और इस युद्ध में बीकानेर के शासक राव जैतसी राठौड़ को वीरगति प्राप्त हुई थी।
यह किला लाल पत्थरों का इस्तेमाल कर के बनाया गया है। इस भव्य किले का निर्माण बीकानेर के वीर प्रतापी शासक रायसिंह ने करवाया था। इस किले का निर्माण बीकानेर के एक पुराने गढ़ के स्थान पर पर ही बनवाया था जहां पर पहले ‘बिका की टेकरी’ नाम का गढ़ था जिसे बीकानेर के यशस्वी संस्थापक राव बिका जी ने 1488 में बनवाया था।
किले की सूरज पोल पर मिली एक प्रशस्त्ति के अनुसार महाराज रायसिंह ने नए दुर्ग की नींव पुराने गढ़ के स्थान पर ही भरी थी इसलिए बीकानेर का नया किला जूनागढ़ कहलायेगा। दयालदास री ख्यात के अनुसार नए दुर्ग की नींव पुराने किले की जगह पर ही भरी गई थी इसलिए इसका नाम जूनागढ़ पड़ा।
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बीकानेर दुर्ग का स्थापत्य (Architecture of Bikaner Forts In Hindi) :
जूनागढ़ दुर्ग का आकार चतुष्कोणीय है। किले के मुख्य प्रवेश द्वार को कर्ण पोल कहा जाता है। इसके बाद दूसरा दरवाज़ा सूरजपोल है। सूरज पोल के दोनों तरफ चित्तौड़ के साके में वीरगति पाने वाले जयमल मेड़तिया उसके बहनोई रावत पत्ता सिसोदिया की विशाल हाथियों पर सवार दो मूर्तियां बनवाई गई हैं।
जूनागढ़ के महलों की बनावट परंपरागत राजपूत शैली पर ही आधारित है जबकि इनकी सजावट और अलंकरण पर मुगल शैली का प्रभाव दिखाई देता है। किले की स्थापत्य शैली को हम दो भागों में बांट सकते हैं। महाराज सुरसिंह के द्वारा बनवाए गए हिस्सों पर अकबर कालीन मुगल स्थापत्य कला और महाराज अनूपसिंह के समय बनाए गए भवन शाहजहां की स्थापत्य शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं। बीकानेर के राजाओं का राजतिलक अनूपमहल में किया जाता था। अनुपमहल की दीवारों और छत पर सोने की पच्चीकारी का सुंदर कार्य देखने वालों को स्तब्ध कर देता है। जूनागढ़ किले में रखा ‘हिंडोला’ कला का एक अप्रतिम नमूना है।
बीकानेर दुर्ग की प्रमुख विशेषताएँ (Features of Bikaner Forts in Hindi) :
जूनागढ़ की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यहां दुर्लभ और प्राचीन देवताओं की प्रतिमाएं, अस्त्र शस्त्र, प्राचीन वस्तुएं, कई प्रकार के प्राचीन बर्तन, फारसी और संस्कृत में हाथ से लिखे गए ग्रंथों का बहुत बड़ा संग्रहालय है जिसे अनूप संग्रहालय कहा जाता है।
जूनागढ़ दुर्ग में चंद्र महल, अनूप महल, फूल महल, लाल निवास, कर्ण महल, गज मंदिर, छत्र महल, रतन निवास, गंगा निवास, मोती महल और दलेल निवास दर्शनीय प्रमुख महल हैं।
बीकानेर का किला अपने इन महलों के अलावा दूसरे भवन जैसे आतिश नाम की अश्व शाला, शूतर खाना नाम की उष्ट्र शाला और घंटाघर भी प्रसिद्ध है। इस दुर्ग में दो कुएं भी बनवाए गए थे जिनका नाम रामसर और रानीसर है। बीकानेर का किला ‘ज़मीन का ज़ेवर’ की उपमा भी हासिल किए हुए है।
मुग़ल बादशाह अकबर ने भी आगरा के किले के प्रवेश द्वार पर जयमल और पत्ता की ऐसी ही हाथी पर सवार प्रतिमाएं बनवाई थी जिसे बाद में औरंगजेब ने उन्हें वहां से हटवा दिया था। जूनागढ़ का किला हिंदू और मुस्लिम शैली के स्थापत्य का अनूठा उदाहरण दिखाई देता है।
दुर्ग की प्राचीर बहुत ही मज़बूत है जिसमें सैंतीस बुर्ज़ हैं। जूनागढ़ दुर्ग के चारों ओर बहुत ही गहरी खाई खोदी हुई है जिसे परीखा कहा जाता है। दुर्ग के अंदर वाले दरवाज़ों में दौलत पोल, फतेह पोल, रतन पोल, सूरज पोल और ध्रुव पुल मुख्य हैं। सूरजपोल को पीले पत्थरों से बनाया गया है जिसे देखकर लगता है कि यह पत्थर विशेष रूप से जैसलमेर से लाए गए थे।
बीकानेर दुर्ग कैसे पहुँचे? (How to reach Bikaner Forts in Hindi) :
बीकानेर का किला तक पहुंचने के लिए आप हवाई जहाज़, बस या ट्रेन कोई भी साधन ले सकते हैं।
बीकानेर का किला सूरसागर नामक जगह के पास है तो यहां पहुंचने के लिए आपको लोकल टैक्सी प्राइवेट बस और सरकारी बसें आराम से मिल जाएंगी।
अगर आप ट्रेन से बीकानेर का किला घूमने की सोच रहे हैं तो सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन आपको बीकानेर का रेलवे स्टेशन पड़ेगा जो जूनागढ़ दुर्ग से सिर्फ दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बीकानेर पहुंचने के लिए आपको भारत के सभी प्रमुख शहरों से आसानी से ट्रेन मिल जाएगी।
अगर आप हवाई जहाज से बीकानेर का किला घूमना चाहते हैं तो या आपके लिए थोड़ा मुश्किल हो सकता है क्योंकि बीकानेर एयरपोर्ट को 2014 में ही खोला गया था तो यहां पर आपको किसी भी प्रमुख शहर से फ्लाइट नहीं मिलेगी। हवाई जहाज़ से यहां पहुंचने के लिए आप यहां से सबसे नज़दीक जोधपुर के सांगानेर एयरपोर्ट पर उतर कर बीकानेर की फ्लाइट ले सकते हैं। जोधपुर एयरपोर्ट पहुंचने के लिए आपको भारत के सभी प्रमुख हवाई अड्डों से आसानी से फ्लाइट मिल जाएगी।
बीकानेर का किला आप सुबह दस से शाम के साढ़े चार बजे तक घूम सकते हैं।
संग्रहालय का समय सुबह नौ से लगाकर शाम के छह बजे तक का है।
बीकानेर का किला घूमने के लिए भारतीय नागरिकों के लिए चास रुपये प्रति व्यक्ति और विदेशी नागरिकों के लिए तीन सौ रुपए प्रति व्यक्ति टिकट रखा गया है।
अगर आप यहां पर वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको दोनों के लिए अलग से सौ रुपये देने पड़ेंगे।
अगर आप फूल महल और चंद्र महल भी देखना चाहते हैं तो इसके लिए भी आपको अलग से सौ रुपये का चार्ज देना पड़ेगा।
बीकानेर का किला किसने बनवाया?
बीकानेर का किला महाराजा रायसिंह ने बनवाया था।
कौन सा किला जूनागढ़ का किला कहलाता है?
बीकानेर का किला जूनागढ़ के नाम से भी जाना जाता है।
बीकानेर के किले को कौन सी उपमा दी गई है?
बीकानेर के किले को ‘ज़मीन के ज़ेवर’ की उपमा दी गई है।
बीकानेर के किले में संग्रहालय का क्या नाम है?
बीकानेर के किले के संग्रहालय का नाम अनूप संग्रहालय है।
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