मीणा जनजाति के बाद राजस्थान की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति भीलों की है। द्रविड़ भाषा के ‘बील’ शब्द से बना ये भील शब्द जिसका मतलब ‘तीर कमान’ होता है। भीलों का मुख्य अस्त्र भी तीर कमान ही है। इसीलिए तीर कमान चलाने में कुशल होने की वजह से ही इस जाति का नाम भील पड़ा। कर्नल जेम्स टॉड ने भील जनजाति के लोगों को ‘वनपुत्र’ कह कर पुकारा है।
राजस्थान में भील जनजाति (Bhil Tribe in Rajasthan in Hindi) :
भील जनजाति राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाति मानी जाती है। महाभारत के समय भील जनजाति के लोगों को निषाद पुकारा गया है। राजस्थान के लगभग हर ज़िले में भील जाति के लोग पाए जाते हैं लेकिन दक्षिणी राजस्थान जैसे डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर सिरोही और प्रतापगढ़ में इनकी जनसंख्या ज़्यादा है। बांसवाड़ा ज़िले में भीलों की आबादी सबसे ज़्यादा है। भील जनजाति के लोग प्राकृतिक रूप से छोटे कद के होते हैं। भीलों को आदिमानव समूह भी कहा जाता है।
भील जनजाति की प्रमुख विशेषताएं (Bhil Tribe Religion in Hindi) :
- इनके घरों को ‘टापरा’ या ‘कु’ कहा जाता है।
- भीलों के गांव का मुखिया पाली और सभी गांवों की पंचायतों का मुखिया गमेती कहलाता है।
- भीलों में बाल विवाह का प्रचलन नहीं है।
- भील संयुक्त परिवार प्रथा का पालन करते हैं।
- भील समाज में पिता घर का मुखिया होता है।
- भील जनजाति विधवा विवाह को समर्थन देती है।
- छोटे भाई की विधवा को बड़ा भाई अपनी पत्नी नहीं बना सकता है।
- पशुपालन, खेती और जंगलों से मिलने वाली चीजों को बेचकर पैसे कमाना इनका प्रमुख पेशा है।
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भीलों की वेशभूषा (Bhil Tribe Clothing in Hindi) :
भील स्त्रियों की वेशभूषा –
कछ्वु – स्त्रियों के द्वारा घुटनों तक पहना जाने वाला घाघरा कछ्वु कहलाता है।
सिंदूरी – स्त्रियों द्वारा पहने जाने वाली लाल रंग की साड़ी को सिंदूरी कहते हैं।
पिरिया – भील समाज में दुल्हनों के द्वारा विवाह के समय पहना जाने वाला पीले रंग का लहंगा पिरिया कहलाता है।
अंगरुठी – भील जाती की स्त्रियों के द्वारा पहनी जाने वाली चोली को अंगरुठी कहा जाता है।
ओढ़नी – भील स्त्रियों की साड़ी को ओढ़नी कहते हैं। ओढ़नी को ‘लुगड़ा’ भी कहा जाता है। ‘तारा भांत की ओढ़नी’ भील स्त्रियों की पसंदीदा ओढ़नी होती है।
भील स्त्रियों के आभूषण
भील जनजाति की स्त्रियां कान में चांदी की बालियाँ, गले में हंसली, नाक में नथ, हाथों में चांदी के छल्ले और चूड़ियां, पांव में पीतल की बनी हुई पायल और सिर में बोर या बोट पहनती हैं।
भील पुरुषों की वेशभूषा
ढेपाड़ा – पुरुषों द्वारा कमर से घुटनों तक पहने जाने वाली धोती ढेपाड़ा कहलाती है।
पोतिया – सिर पर पहने जाने वाली सफेद रंग की पगड़ी पोतिया कहलाती है।
फेंटा – लाल, पीले या केसरिया रंग के साफे को फेंटा कहा जाता है।
फालू – भील पुरुषों के द्वारा कमर में बांधा जाने वाला गमछा फालू कहलाता है।
खोयतू – भील पुरुषों की कमर पर पहनी जाने वाली घुटनों से ऊपर की लँगोटी खोयतू कहलाती है।
भीलों की सामाजिक मान्यताएँ (Bhil Tribe Culture and Festival in Hindi) :
- भील जनजाति के लोग साहसी, वचन के पक्के, निडर और स्वामिभक्त होते हैं।
- भील जनजाति में धार्मिक क्रियाकलाप करने वाले लोगों को भगत कहा जाता है।
- भील संयुक्त परिवार को ज़्यादा प्राथमिकता देते हैं।
- भील समाज पितृसत्तात्मक होता है।
- कई सारेनफला को मिलाकर एक पाल बनती है जिसका मुखिया पालवी कहलाता है।
- भीलों का गांव सामान्य रूप से एक ही वंश से जुड़ा हुआ होता है यानी एक गांव में पाए जाने वाले भील एक ही परिवार की कई पीढ़ियों के लोग होते हैं।
- भील जनजाति के लोग गांव के मुखिया को तदवी कहते हैं।
- भील जाती में घर जँवाई, नाता प्रथा, देवर विवाह आदि रिवाज़ आम प्रचलन में है।
- भील जाती के लोग बहिर्विवाही नहीं होते हैं और एक ही विवाह करने में विश्वास रखते हैं।
- भील जाती के वधु पक्ष के लोग विवाह से पहले वधु मुल्य तय करते हैं, जिसे वर पक्ष के लोग विवाह से पहले अदा करते हैं जिसे ये लोग ‘दापा’ कहते हैं।
भीलों की धार्मिक मान्यताएं (Bhil Tribe Religion in Hindi) :
- भील जनजाति के लोग अपने कुलदेवता को टोटम कहते हैं।
- भील ‘उन्द्रिया सम्प्रदाय’ में आस्था रखते हैं।
- भीलों की एक अनूठी विवाह परम्परा है जिसमें पीपल, बांस, साल, सागवान के पेड़ों को साक्षी मान कर दूल्हा और दुल्हन जीवन साथी बनते हैं।
- भील समुदाय अपहरण विवाह को भी मान्यता देता है जिसमें एक रस्म के तहत भावी दूल्हा और दुल्हन दो या तीन दिन के लिए अपने इलाके से चले जाते हैं। तीन दिन बाद जब वे वापस आते हैं तब उनका विवाह कर दिया जाता है।
- भील जाती के लोग हिन्दू देवी देवताओं की भी पूजा भी समान रूप से करते हैं।
- भील जनजाति के लोग ‘केसरिया नाथ जी (काला बावजी) को चढ़ाए गए केसर का पानी पीकर हर तरह का सच बोल देते हैं, यह पानी पीने के बाद इनका झूठ बोलना मना है।
भीलों के व्यवसाय और आजीविका (Bhil Tribe Occupation in Hindi) :
- भील जनजाती के लोग मुख्य रूप से खेती पर आश्रित होते हैं।
- खेती के अलावा शिकार और जंगलों से प्राप्त उत्पाद इनकी कमाई के साधन होते हैं।
- भील जनजाति स्थानन्तरित कृषि जिसे अंग्रेज़ी में ‘Slash And Burn’ कहा जाता है, करते हैं। भीलों की भाषा में स्थानांतरित कृषि को वालरा खेती कहा जाता है।
- जंगलों को काटकर साफ़ करने की प्रक्रिया को दजिया कहा जाता है।
- पहाड़ी ढलानों पर की जाने वाली खेती को चिमाता कहा जाता है।
- समतल मैदान में की जाने वाली खेती को भील समुदाय के लोग दीजिया कहते हैं।
- भील जनजाति के लोगों के खाने में मुख्य रूप से मक्की का इस्तेमाल होता है।
- भील जाति के लोग महुआ से बनी हुई शराब और ताड़ के पेड़ का रस बड़े चाव से पीते हैं।
- भील समुदाय के कुछ लोग मांसाहारी भी होते हैं।
भीलों के नृत्य (Bhil Tribe Dance in Hindi) :
भीलों के प्रमुख नृत्य हैं-
गवरी नृत्य – भील सम्प्रदाय का सबसे प्रसिद्ध नृत्य है।
गैर नृत्य – होली के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य गैर कहलाता है।
हाथी मना – पुरुषों के द्वारा विवाह के मौके पर किया जाने वाला नृत्य। इसमें घुटनों के बल बैठकर तलवार को घुमा घुमा कर करतब दिखाए जाते हैं।
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