भटनेर का युद्ध – हनुमानगढ़ में घग्घर नदी के किनारे स्थित एक ऐसा किला जो पूरे हिंदुस्तान में सबसे मजबूत और सुरक्षित किलो में से एक माना जाता है। हनुमानगढ़ के इस किले का निर्माण भाटी वंश के शासक राजा भुटटी के पुत्र भूपत ने तीसरी सदी में लगभग सन 285 ईसवी के आस पास करवाया था।
यह कहा जाता है कि बीकानेर के राजा सूरत सिंह ने सन 1805 ईस्वी में मंगलवार के दिन ही भटनेर के किले पर विजय प्राप्त की थी और मंगलवार का दिन हनुमान जी का माना जाता है तो बस उसके बाद से ही इसका नाम हनुमानगढ़ पड़ गया। हनुमानगढ़ का यह दुर्ग अजय माना जाता था। यह दुर्ग इतना शक्तिशाली था कि उस समय तक इसे कोई भेद नहीं पाया था।
भटनेर का युद्ध (Bhatner Ka Yudh in Hindi)
मगर नवंबर 1398 में एक ऐसा मंजर घटित हुआ, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। सन 1398 ईस्वी में उज़्बेकिस्तान का क्रूर शासक जिसका नाम तैमूर लंग था उसके बारे में कहा जाता था कि तैमूर लंग इतना क्रूर था कि उस समय के बड़े-बड़े राजा महाराजा उसके नाम मात्र से ही काँप जाते थे।
एक युद्ध के दौरान तैमूर का एक पैर टूट गया था जिसके कारण उसे तैमूर लंग कहा जाने लगा। तैमूर लंग दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण करके उसे लूटना चाहता था इसलिए वो अपने घुड़सवार और अपनी सेना के साथ समरकंद से आगे बढ़ता हुआ मुल्तान पहुँचा, उस समय जब किसी को मुल्तान से दिल्ली या आगरा जाना होता था तो भटनेर दुर्ग के पास से हो के जाना पड़ता था। उस काल के मध्य एशिया के और अरबी व्यापारी मुल्तान से होकर दिल्ली और आगरा जाया करते थे। भटनेर का किला राजस्थान के उत्तरी सीमा का प्रहरी हुआ करता था।
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जिस कारण से अनेक बार विदेशी आक्रमणकारियों के भटनेर के किले पर आक्रमण भी हुए। लेकिन अभी तक ये दुर्ग अजेय था इस पर कोई भी आक्रमणकारी अपना कब्ज़ा नहीं कर पाया था। इस कारण से तैमूर लंग किसी भी कीमत पर इस दुर्ग को जीतना चाहता था जब तैमूर लंग अपनी राजधानी से निकला तो बीच में आने वाले हर नगर हर शहर को लूटता हुआ आगे बढ़ रहा था फिर वह सिंध नदी के किनारे पर अपने अपने पोते शाह आलम से मिला और फिर वहां से दिल्ली आक्रमण करने के लिए निकल पड़ा।
तैमूर लंग ने हर उस नगर को लुटा जो उसके रास्ते में आया। जब भटनेर के किले से कुछ दिनों को दुरी पर था तब आसपास के इलाकों के लोग भी तैमूर लंग से डरकर अपनी जान बचाने के लिए भटनेर के किले में शरण लेने लगे। अब वो दिन भी आ गया जब तैमूर लंग अपनी सेना लेकर भटनेर किले के पास पहुंचा गया।
लेकिन तैमूर लंग के आने से पहले ही भाटी राजपूत शासक राय दुलचन्द ने भटनेर के किले के सारे दरवाजे बंद कर दिए। जब तैमूर लंग ने देख की भटनेर दुर्ग के दरवाजे बंद है तो उसने अपनी सेना को आदेश दिया कि भटनेर दुर्ग के दरवाजे तोड़ दे। तैमूर के सैनिको ने अपना जोर लगाना शुरू किया और काफी घंटो की मेहनत के बाद भटनेर के किले के दरवाजे टूट गए। तभी किले के अंदर जो राजपूती सेना थी उन्होंने तैमूर की सेना पर हमला कर दिया। इन राजपूती सेना के साथ आम जनता भी थी जो भटनेर के दुर्ग में शरण लिए हुए थे।
दोनों सेनाओ के बीच काफी भीषण युद्ध हुआ, लेकिन संख्या में पहले ही भाटी राजपूत शासक राय दुलचन्द की सेना बहुत तैमूर लंग की सेना के सामने काफी कम थी। इसलिए राजपूती सेना ने काफी बहादुरी दिखाई, लेकिन वो तैमूर की सेना के सामने टिक नहीं पाए और जल्दी ही वीरगति को प्राप्त हो गए। राजपूती सेना के हारने के बाद हिन्दू महिलाओ ने ही नहीं अपितु मुस्लिम महिलाओ ने भी जौहर का अनुष्ठान किया था इसके ऐतिहासिक प्रमाण आज भी भटनेर के किले में मौजूद है। तैमूर लंग ने भटनेर दुर्ग में अपनी भयंकर क्रूरता दिखाई और किले से सोना चाँदी, कीमती कपडे और हथियारो को लूटकर दिल्ली की और रवाना हो गया।
तैमूर जब वापस अपनी राजधानी पहुँचा तो उसने एक पुस्तक लिखी उसमे पुस्तक में उसने भटनेर का युद्ध के बारे में लिखा है कि “भटनेर का युद्ध उसके लिए काफी चुनौतियां भरा था। भटनेर का दुर्ग का काफी मजबूत था, राजपूती सेना ने काफी बहादुरी के साथ युद्ध लड़ा, भटनेर का युद्ध के दौरान एक बार तो मुझे लगा की हमारी सेना युद्ध हार जाएगी लेकिन जब मुझे खबर मिली की हमारी सेना ने भटनेर का युद्ध जीत लिया है तो मुझे यकीं ही नहीं हुआ”
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भटनेर का युद्ध कब हुआ था?
भटनेर का युद्ध 1398 ईस्वी में तैमूर और राजपूत शासक महाराजा दुलचन्द सिंह के बीच हुआ था। भटनेर के युद्ध में तैमूर ने दुलचन्द सिंह को युद्ध में पराजित किया।
भटनेर का किला कहाँ स्थित है?
भटनेर का किला राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में घग्घर नदी के किनारे स्थित है।
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