भारत के लोक नृत्य – हम यहाँ भारत के प्रमुख लोक नृत्य के बारे में जानकारी देने वाले है।
गरबा लोक नृत्य (Garba Lok Nritya in Hindi) :
गरबा का नाम सुनते ही मन में अचानक एक अलग ही तरह की स्फूर्ति महसूस होती है। गुजरात के इस लोक नृत्य को किसी भूमिका की ज़रूरत नहीं रही। गुजरात से निकल कर गरबा भारत ही नहीं विदेशों में भी समान रूप से प्रसिद्ध हैं।
गरबा कब किया जाता है?
गरबा सौभाग्य का प्रतीक है। इसे खास कर नवरात्रि की स्थापना जिसे घटस्थापना कहा जाता है से लगाकर रामनवमी तक किया जाता है यानी गरबा नवरात्रि के सारे नौ दिन किया जाता है। नवरात्रि के पहले दिन मिट्टी के एक छोटे घड़े में मिट्टी भरकर उसमें जवारे बोए जाते हैं जो अगले नौ दिनों तक उगते रहते हैं। इसे अम्बा माता की चौकी के पास रखा जाता है।
मिट्टी के ऐसे ही एक और छोटे घड़े में जिसमें सब तरफ छेद होते हैं, के बीच में एक दिया जलाया जाता है। ज़्यादातर यह दिया पूरे नौ दिनों तक अखंड जलता रहता है और आरती के बाद लोग इस दिए के चारों तरफ गरबा नृत्य करते हैं। पुराने समय में गरबा करते समय दुर्गा माता और कृष्ण लीला के गीत गाए जाते थे लेकिन आधुनिक समय में गरबा के समय बजाया जाने वाला संगीत बहुत ज्यादा विविधता पूर्ण हो गया है।
इसमें बॉलीवुड गानों से लगाकर गुजराती लोकगीतों तक हज़ारों गाने इस्तेमाल किए जाते हैं। यह नृत्य महिला और पुरुष, बालक और बालिकाओं सभी के द्वारा समान रूप से किया जाता है।
गरबा और डांडिया में क्या अंतर है?
अक्सर लोग डांडिया और गरबा को एक ही चीज़ मानते हैं लेकिन इनमें काफी ज्यादा अंतर पाया जाता है। सामान्य तौर वह नृत्य जो हाथ में दो लकड़ी की छड़िया लेकर किया जाता है वह डांडिया कहलाता है और दूसरा जिसमें चुटकी बजाकर और तालियों का इस्तेमाल करके नृत्य किया जाता है उसे गरबा कहते हैं। इस ताली वाले गरबा में एक निश्चित क्रम में क्रमशः दो ताली, तीन ताली,चार ताली, आठ ताली और बारह ताली वाले नृत्य पदों का इस्तेमाल किया जाता है।
गरबा की वेशभूषा क्या है?
गरबा की वेशभूषा बहुत ही ज्यादा रंगीन होती है। वेशभूषा में खासतौर से महिलाएं चटक रंगों का इस्तेमाल करना पसंद करती हैं। इसमें गुलाबी, नीला, हरा, पीला, केसरी और लाल रंग का ज़्यादा इस्तमाल देखने को मिलता है। महिलाओं की वेशभूषा को ‘चनिया चोली’ कहा जाता है और पुरुषों की वेशभूषा को ‘केडिया’ कहा जाता है। इन कपड़ों पर गुजराती शैली की कशीदाकारी होती है।
जिसको और ज़्यादा सुंदर बनाने के लिए कौड़ियों का, कांच का और चमकीले तारों का इस्तेमाल किया जाता है। पुरुषों की वेशभूषा में घुटनों से थोड़ी ऊपर तक घेरदार अचकन, धोती और सिर पर पचरंगी पगड़ी होती है। और हां, चमकीले तारों में सजाए गए लकड़ी और स्टील के डांडिया हम कैसे भूल सकते हैं!!
लावणी लोक नृत्य (Lavni Lok Nritya in Hindi) :
लावणी महाराष्ट्र का बहुत ही प्रसिद्ध लोकनृत्य है। यह मुख्य रूप से महिलाओं के द्वारा ही किया जाता है। ऐसा मन जाता है कि लावणी तेरहवीं शताब्दी में ईजाद किया गया था जिसे मराठा पेशवाओं के समय सबसे ज़्यादा ख्याति मिली। युद्ध से थक कर आए सैनिकों को जोश दिलाने और उनका मनोरंजन करने के लिए लावणी एक प्रमुख साधन बन गया था।
इस नृत्य के दौरान गायकी में साथ देने के लिए ढोलकी, मंजीरा, डफ आदि वाद्य यंत्र बजाए जाते है। लावणी शब्द ‘लावण्य’ से बना है जिसका मतलब होता है खूबसूरती। नृत्य की शुरुआत धीमी लय के साथ होती है जो बढ़ते बढ़ते बहुत तेज़ हो जाती है। नर्तकियों द्वारा पहने जाने वाले घुंघरुओं की ताल भी बहुत आकर्षक लगती है। लावणी के जैसा ही एक और नृत्य किया जाता है जिसे तमाशा कहते हैं।
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लावणी की वेषभूषा क्या है?
लावणी नृत्य को देखते समय जो चीज़ सबसे ज़्यादा आकर्षक लगती है वह है नृत्य के दौरान नर्तकी के द्वारा पहनी जाने वाली साड़ी। इस साड़ी को महाराष्ट्र में सामान्य तौर पर ‘नव्वारी’ कहा जाता है। महाराष्ट्र में नव्वारी का मतलब नौ मीटर की साड़ी होता है। इसे पहनने के कई तरीके हैं लेकिन लावणी के लिए नव्वारी पहनने का एक खास तरीका होता है किसे ‘काष्ठा’ कहा जाता है। वर्तमान समय में लावणी की लोकप्रियता पहले से थोड़ी कम हो गई है। महाराष्ट्र में पेशेवर लावणी नर्तक बहुत थोड़े रह गए हैं।
घूमर लोक नृत्य (Ghumar Lok Nritya in Hindi) :
घूमर का नाम सुनते ही सबसे पहले राजस्थान की छवि दिमाग में आती है। घूमर राजस्थान का सबसे प्रमुख और सबसे प्रसिद्ध लोक नृत्य है। इस नृत्य को करते समय राजपूती नफ़ासत साफ देखने को मिलती है। यह नृत्य मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है जिसमें महिलाएं राजपूती पोशाक पहनकर एक गोल घेरे में घूमते हुए नृत्य करती हैं। गोल घेरे में घूम कर नृत्य करने की वजह से इसे ‘घूमर’ कहा गया। घूमर नृत्य के दौरान हाव भाव चेहरे से नहीं वरन हाथों की से की गई भाव भंगिमा के द्वारा दिखाया जाता है।
घूमर कब किया जाता है?
घूमर नृत्य शादी- विवाह, होली, फाग, गणगौर और नवरात्रि जैसे अवसरों पर किया जाता है।
घूमर की वेशभूषा क्या है?
घूमर नृत्य के दौरान पहने जाने वाली वेशभूषा को राजपूती पोशाक कहते हैं और आम भाषा में इसको ‘कुरती कांचली’ कहा जाता है। राजपूती पोशाक मुख्यतः सूती कपड़े की बनी होती है जिस पर बहुत ही सुंदर ज़री का काम होता है। इस नृत्य के दौरान ओढ़े जाने वाले दुपट्टे को औढ़ना कहते हैं जिस पर ज़री और गोटे का आकर्षक काम किया हुआ होता है।
भंगड़ा लोक नृत्य (Bhangda Lok Nritya in Hindi) :
भंगड़ा पंजाब का बहुत ही प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह महिला और पुरुष दोनों के द्वारा समान रूप से किया जाता है। नई फसल की कटाई पर मनाए जाने वाले बैसाखी के त्यौहार के समय होली जला कर उसके चारों तरफ घूम कर किया जाने वाला भांगड़ा देश भर में प्रसिद्ध है। यह जोश, उत्साह और उमंग का प्रतीक है। पुरुषों द्वारा किए जाने वाले नृत्य को भांगड़ा कहते हैं और महिलाओं के द्वारा किए जाने वाले नृत्य को गिद्धा कहते हैं।
भांगड़ा कब किया जाता है?
इस नृत्य की प्रमुख भाव भंगिमा एक फसल की बुवाई से लगाकर फसल कटाई तक की सारी गतिविधियों को मिलाकर बनाई गई है। भांगड़ा का इतिहास पांच सौ वर्षों से भी पुराना माना जाता है। भांगड़ा करते समय जिन संगीत वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है उनमें सबसे प्रमुख है ढोल। ढोल के साथ साथ चिमटे और ईकतारे का इस्तेमाल होता है। भांगड़ा करते समय गाए जाने वाले छोटे गीतों को ‘बोलीस’ कहा जाता है।
भांगड़ा की वेशभूषा क्या है?
भांगड़ा करते समय पहने जाने वाली वेशभूषाएं चटक रंगों की होती हैं। इसमें पुरुष धोती कुर्ता और अपने सिर पर पगड़ी धारण करते हैं जबकि महिलाएं सलवार कमीज़ या घाघरा और कुर्ती के साथ दुपट्टा पहनती हैं। इस नृत्य की पोशाकों को सामान्य रूप से साटन या रेशम के कपड़े से बनाया जाता है जो नृत्य करते समय बहुत ही चमकीली लगती हैं।
हिकत लोक नृत्य (Hikat Lok Nritya in Hindi) :
हिकत नृत्य कश्मीर का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। इसे लगभग हर त्यौहार, मांगलिक कार्यक्रमों और उत्सवों पर किया जाता है। इसमें महिलाएं और बालिकाएं अपने एक हाथ से अपने पास वाली महिला का हाथ और अपना दूसरा हाथ अपने दूसरी तरफ वाली महिला की कमर पर रखकर आगे पीछे झुकते हुए नृत्य करती हैं। यह नृत्य धीमी ताल के साथ शुरू होता है और लय तेज़ होती जाती है। कश्मीरी भाषा में हिकत का मतलब होता है खुशी। अपने प्रारंभिक समय में हीकत बिना किसी वाद्ययंत्र के किया जाता था। वर्तमान समय में के रबाब और ढोल भी इस्तेमाल किए जाते हैं।
हिकत नृत्य कब किया जाता है?
यह नृत्य वसंत ऋतु की आगमन पर प्रकृति के बदलते रंगों कि खुशी ज़ाहिर करने के लिए किया जाता है।
हिकत की वेशभूषा क्या है?
पारंपरिक रूप से हिकत नृत्य करते समय मखमल से बना कुर्ता और सफेद पठान पहनी जाती है। कहीं-कहीं पर औरतें सलवार कमीज़ पहनकर भी यह नृत्य करती दिखाई देती हैं। इसकी कमीज़ पर सफेद ज़री से बहुत ही सुंदर कशीदाकारी की जाती है। महिला नर्तकियाँ हिकत के दौरान अपने पारम्परिक कश्मीरी गहने पहनना भी पसन्द करती हैं।
कथकली लोक नृत्य (Kathkali Lok Nritya in Hindi)
यह केरल राज्य का अत्यधिक प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह नृत्य अपने आप में अद्वितीय है। कथकली का शाब्दिक अर्थ नृत्य नाटिका होता है जिसमें नृत्य के द्वारा एक नाटक या पौराणिक कहानी का प्रदर्शन किया जाता है। इस नृत्य का उद्भव आर्य सभ्यता और द्रविड़ संस्कृति के साथ ही हुआ माना जाता है। कथकली नृत्य बाकी सारे नृत्यों से बहुत ही अलग है।
क्योंकि इसमें नर्तक पूरे नृत्य के दौरान अपने होठों को नहीं हिलाता है। इस नृत्य की सारी भाव भंगिमाएं वह अपनी पलकों, गाल और हाथों के चलन से ही करता है। इस नृत्य के दौरान की जाने वाली कलाएं बहुत ही ज़्यादा कठिन हैं। इस नृत्य को मुख्यतः पुरुष ही करते हैं। यह पूरी रात चलता है और सूरज उगने से पहले तक चलता रहता है।
कथकली की वेशभूषा क्या है?
भारत के बाकी शास्त्रीय नृत्यों से अलग कथकली की वेशभूषा बहुत ही रोचक और पेचीदा होती है। इस नृत्य में कमर से नीचे पहना जाने वाला हिस्सा उभरा हुआ होता है और चेहरे की साज सज्जा यानी मेकअप करने में कई घंटे लग जाते हैं। नर्तक की आंखों का मेकअप बहुत ही ज़्यादा सुंदर और आकर्षक होता है। इसमें पहने जाने वाली सफेद घघरी या स्कर्ट को दो-तीन लोग एक साथ मिलकर पहनाते हैं।
चेहरे को हरे रंग से ढका जाता है और यह हरा रंग बहुत ही चटक होता है। चेहरे का मेकअप अधिकतर महिलाएं ही करती हैं। चेहरे के मेकअप की सबसे खास खास बात होती है कृत्रिम दाढ़ी जो गाल के दोनों तरफ सफेद रंग से बनाई जाती है।
बिहू लोक नृत्य (Bihu Lok Nritya in Hindi)
बिहू लोक नृत्य असम में किया जाता है। असम के बाकी लोक नृत्यों से बिहू सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध है। इसे बहुत भव्यता से मनाया जाता है। बिहू नृत्य को फसल के पकने की खुशी में किया जाता है। यह उत्सव पूरे एक महीने तक मनाया जाता है और इस दौरान बिहू के कई रूप देखने को मिलते हैं। यह नृत्य असम की संस्कृति को समझने का सर्वश्रेष्ठ ज़रिया है। इस नृत्य को महिला और पुरुष दोनों समान रूप से करते हैं।
इस नृत्य के दौरान नर्तक अपने शरीर को बहुत ही लयात्मक तरीके से लहराते हैं जो देखने वालों को बहुत ही आकर्षक लगता है। इस नृत्य में सभी नर्तक एक जैसी वेशभूषा पहनते हैं।
बिहू नृत्य की वेशभूषा क्या है?
इस नृत्य के दौरान महिला नर्तकियाँ एक खास तरह के रेशम जिसे मुगा रेशम कहा जाता है, से बनी हुई साड़ियां पहनती है, साड़ी को मेखला सदोर कहा जाता है। यह एक तरह से ऐसा है जैसे एक साड़ी के दो हिस्से कर दिए गए हों। इसमें एक मेखला यानी कमर पर पहना जाने वाला लहंगा होता है। इसे बिल्कुल वैसे ही पहना जाता जाता है।
जैसे औरतें साड़ी पहनती हैं और दूसरा हिस्सा मेखला के आगे वाले भाग से निकालकर कमर के पीछे से होकर आगे लाया जाता है। दूर से देखने पर यह बिल्कुल एक साड़ी की तह ही दिखता है। पुरुष नर्तकों की वेशभूषा में धोती और गमछा होते हैं। इस नृत्य के दौरान बांसुरी, ढोल और हॉर्नपाइप जैसे वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है। बिहू की लोकप्रियता का आप इसी बात से पता लगा सकते हैं कि भारत की कुछ पेशेवर बिहू नर्तकीयों ने लंदन ओलंपिक में भारत के इस खूबसूरत नृत्य का प्रदर्शन किया था।
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