आज हम आपके लिए लाए हैं एक ऐसे योद्धा की कहानी जो अजेय था जिसे हराना नामुमकिन था आधा शरीर गंवाने के बाद भी जिसका सामना करने की किसी में हिम्मत नहीं थी लेकिन फिर भी क्यों उसके अपनों ने ही उसे मार दिया और इस सब के बाद भारत का इतिहास हमेशा के लिए कैसे बदल गया? क्या था राणा सांगा का इतिहास? और क्या है खानवा का युद्ध का इतिहास? आइए जानते है।
राणा सांगा का इतिहास (History of Rana Sanga in Hindi) :
कहते है बहादुरों के किस्से अजीब होते हैं
क्योंकि इन्हें दुश्मन नहीं अपने ही दगा देते हैं…
बात आज से पांच सौ साल के आस पास की है जब बाबर काबुल से हिंदुस्तान दौलत खान लोदी के बुलावे पर एक विशाल फौज लेकर झेलम के रास्ते बस आया ही था। उसने अपनी सूझबूझ से भारत के कई इलाकों को जीतने के बाद उसका वास्तविक पहला और बड़ा युद्ध उसने इब्राहिम लोदी के ख़िलाफ़ पानीपत में लड़ा। इब्राहिम लोदी की पानीपत के युद्ध में मौत के बाद लोदी वंश के ख़ात्मे के बाद उसने दिल्ली पर अपना कब्ज़ा करके अपना शासन सही मायनों में शुरू किया।
दिल्ली पर अपनी बादशाहत कायम करने के बाद उसे और भी कई मुश्किलों का सामना करना बाकी था क्योंकि पानीपत की जीत तो बस एक शुरुआत थी। अभी तो उसका मुक़ाबला महान योद्धा राणा सांगा से होना बाकी था।
राणा सांगा का असली नाम महाराणा संग्राम सिंह था। वो महाराणा कुम्भा के पोते और राणा रायमल के छोटे बेटे थे। अपने शासन काल में राणा सांगा दिल्ली, मालवा और गुजरात पर कई बार सैन्य अभियान चला चुके थे।
ऐसा कहा जाता है कि राणा सांगा दिल्ली में अफ़ग़ानों को हराकर फिर से हिन्दुराज कायम करना चाहते थे। एएन सांग ने बाबर को दिल्ली का सुल्तान मानने से इनकार कर दिया।
बाबर को भी यह बात बहुत जल्द समझ में आ गयी थी कि राणा सांगा के होते हुए वो हिंदुस्तान में कभी भी अपने पेर नहीं जमा सकता। इसके लिए वो कई छोटे बड़े इलाकों पर आक्रमण कर के अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार कर रहा था और इसके साथ ही वो अपनी सैन्य शक्ति को भी बढ़ा रहा था। बाबर यह मान कर चल रहा था कि एक न एक दिन तो उसका आमना सामना राणा सांगा से ज़रूर होगा।
राणा सांगा अब तक ये समझ कर चुपचाप बैठे हुए थे कि बाबर बाकी अफ़ग़ानों की तरह हिकुच समय तक भारत में लूटपाट कर के वापस चला जायेगा लेकिन उनकी ये बात बहुत जल्द ही गलत साबित हो गई क्योंकि जिस तेज़ी से बाबर अपनी सीमाएं फैला रहा था
उससे ये साफ ज़ाहिर हो गया कि उसका इतनी जल्दी भारत छोड़ने का कोई इरादा नहीं है। अपनी सल्तनत को फैलाने के चक्कर में बाबर ने कालपी, आगरा, धौलपुर और बयाना पर अपना कब्ज़ा कर लिया जो कि राणा सांगा की रियासत के हिस्सा थे। ये सब अब सांगा की सहनशक्ति के बाहर की बात थी।
सांगा न बाबर को सबक सिखाने के लिए राजस्थान के सभी बड़े राजाओं को बुलावा भेज कर बाबर के खिलाफ एक बहुत बड़ी सेना तैयार कर ली।
इस आग में घी का काम किया दो लोगों ने। हसन खान मेवाती और महमूद लोदी ने सांगा को बाबर के खिलाफ युद्ध करने के लिए भड़का दिया। और इस तरह राणा सांगा अपनी विशाल सेना लेकर आगरा और बयाना को वापिस हासिल करने के लिए सेना लेकर रवाना हो गए।
बयाना के मुग़ल शासक को हराने के बाद सांगा ने सीकरी को भी अपने कब्ज़े में कर लिया। यहीं पर बाबर की सेना का एक हिस्सा भी पड़ाव डाले हुए था। लगातार मिल रही हार की वजह से बाबर की सेना में निराशा फैल रही थी। बाबर के कुछ करीबी सैनिकों ने उसे काबुल वापस लौट जाने की सलाह दी लेकिन जब बाबर ने देखा कि उसके सैनिकों का हौसला पस्त हो रहा है तो उसने उनके सामने कभी शराब ना पीने की कसम खायी। उसने उनसे लिए जाने वाले सारे कर माफ कर दिए
लेकिन उनका हौसला था कि किसी भी तरह वापस ही नहीं आ रहा था। तब आखिरकार बाबर ने अपने सैनिकों के सामने जिहाद का नारा दिया जिससे बाबर की मरी हुई सेना में जोश की लहर दौड़ गयी। और जोश से लबरेज उसकी सेना सांगा से युद्ध करने निकल पड़ी।
खानवा का युद्ध (Battle of Khanwa in Hindi)
बाबर की सेना ने राजस्थान के भरतपुर जिले के खानवा नामक स्थान पर आकर अपना पड़ाव डाल दिया। इसलिए इसे खानवा का युद्ध कहा जाता है खानवा का युद्ध में बाबर ने चालाकी से सांगा के एक सेनापति को लालच देकर सेना सहित अपनी तरफ मिला लिया। बिगुल, नगाड़े बज उठे और इस तरह ये ऐतिहासिक खानवा का युद्ध बाबर और राणा सांगा के बीच शुरू हो गया।
खानवा का युद्ध में राणा सांगा अपनी सेना का नेतृत्व सेना के आगे अपने हाथी पर सवार होकर कर रहे थे जबकि बाबर अपनी सेना का नेतृत्व पीछे से कर रहा था।बाबर ने पानीपत के युद्ध में जिस तरह से इब्राहिम लोदी को अपनी नई तुलुगमा युद्ध नीति से हराया था,
वही रणनीति उसने यहाँ खानवा का युद्ध में भी दोहराने का फैसला किया। बाबर को पता था कि भारत में उससे पहले किसी ने भी युद्ध में तोपों का इस्तमाल नहीँ किया है। इस बात का फायदा उठाकर उसने अपने तोपखानों को सेना के पिछले हिस्सों में छुपाकर रखवा दिया।
देखते ही देखते दोनों सेनाओं के सैनिकों में भीषण युद्ध होने लगा। सांगा की सेना के वीर राजपूतों ने खानवा का युद्ध में कुछ ही वक़्त में बाबर की सेना को चारों तरफ से घेर लिया। राणा सांगा ने कुछ ही वक़्त में खानवा का युद्ध को अपने पक्ष में कर लिया। जब सांगा की जीत पक्की होती दिखाई दी और उनकी सेना तेज़ी से बाबर की सेना की और बढ़ने लगी तब बाबर ने अपनी सेना के पिछले हिस्सों में तोपखाने खोलने का आदेश दे दिया।
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और कुछ ही पलों में बाबर की सेना अपने तोपखानों की वजह से सांगा की सेना पर भारी पड़ने लगी। राणा सांगा की सेना का एक बड़ा हिस्सा इन तोपों की वजह हताहत हो गया। राणा सांगा की सेना को खानवा का युद्ध में कमज़ोर होता देख कर बाबर ने अपने तीरंदाजों अपना काम करने दिया।
एक तीर सांगा को लग गया और वो अपने हाथी से गिर गए। ये देख कर उनके एक विश्वासपात्र सैनिक ने उन्हें खानवा का युद्ध के मैदान से हटा दिया और खुद उनका बख्तरबंद पहन कर उनकी कह युध्द करने लगा।
राणा के घायल होने की खबर जैसे ही उनके सैनिको के पास पहुंची, उनमें अफर तफरी मच गई। उनका हौसला टूटने लगा। बाबार को इसी मौके की तलाश थी। उसने बची खुची राजपूत सेना पर प्रचंड वेग से आक्रमण कर दिया। राणा के खानवा का युद्ध हारने के बाद बाबर ने उनके इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया और इस तह भारत में मुग़ल वंश की स्थापना हुई।