चंदेरी का युध्द – राजस्थान के राजपूतों का गौरव, बलिदान की एक अनूठी मिसाल पेश करता है। पूरे भारत में राजपूतों ने अपनी ताकत, वीरता और बलिदानों की वजह से अपना नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखा है। राजस्थानी वीर सपूत अपनी मातृभूमि की आन बान और शान की खातिर कई बार कुर्बान हुए हैं। बलिदान के लिए राजपूत वीर योद्धा ही नहीं वरन वीर क्षत्राणीयाँ भी पीछे नहीं हटी हैं। राजपूत वीरांगनाओं के जौहर ने यह साबित किया है कि बात चाहे शासन करने की हो या बलिदान करने की, ये वीरांगनाएं कभी भी अपने कर्तव्यों से पीछे नहीं हटी हैं।
चंदेरी का युध्द (Battle of Chanderi in Hindi)
चंदेरी का युध्द के तार हमें आज से पांच सौ साल पीछे ले जाते हैं जब चंदेरी की सरज़मीन एक बहुत बड़े ऐतिहासिक युद्ध “चंदेरी का युध्द” की साक्षी बनने वाली थी। चंदेरी का युद्ध भारत में मुगल इतिहास के नए अध्याय को शुरू करता दिखाई देता है। पानीपत के पहले युद्ध में मिली जीत की वजह से भारत में बाबर और मुगल साम्राज्य का वक्त शुरू हो गया था। पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर की जीत यह संकेत दे गई कि भारत फिर से विदेशी ताकतों का गुलाम होने वाला था।
पानीपत और खानवा के युद्ध में मिली जीत से बाबर बहुत ज़्यादा महत्वाकांक्षी हो गया था और वह भारत में अपने साम्राज्य को बढ़ाने में दिन-रात एक करने लगा। खानवा के युद्ध में राणा सांगा के हार जाने के बावजूद राजपूतों की ताकत का लोहा मान चुके बाबर ने खानवा के युद्ध में राणा सांगा की तरफ से उससे लड़ने आए राजपूत सरदारों का का भी सफाया करने के लिए बहुत बड़ी रणनीति बनाना शुरू किया।
राणा सांगा की तरफ से खानवा के युद्ध में शामिल होने आए हर एक राजपूत सरदार से बदला लेने के लिए बाबर ने एक विशाल सेना तैयार की और उन सब को एक-एक करके हराने के लिए अपना युद्ध अभियान शुरू कर दिया।
चंदेरी का युद्ध के कारण (Causes of Battle of Chanderi in Hindi) :
चंदेरी के राजा मेदिनी राय भी खानवा के युद्ध में राणा सांगा की तरफ से लड़े थे। राणा सांगा के खानवा के युद्ध में घायल होने के बाद यह युद्ध बाबर के लिए निर्णायक साबित हुआ और राजपूत सरदार इस युद्ध के बाद अपनी अपनी रियासतों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए खुद को सैनिक दृष्टि से मज़बूत करने लगे थे।
मेदिनी राय भी मारवाड़ लौटने के बाद अपनी रियासत की सुरक्षा को लेकर चिंतित रहने लगे थे क्योंकि उन्हें अंदेशा था कि बाबर एक न एक दिन ज़रूर चंदेरी पर हमला करके अपना बदला पूरा करने की कोशिश करेगा। और उनका यह शक बहुत जल्द ही हकीकत में बदल गया। चंदेरी पर आक्रमण करने के लिए बाबर के पास बहुत सारे कारण थे।
बाबर के शत्रुओं की मदद करने के अलावा चंदेरी उस समय राजस्थान का एक बहुत ही संपूर्ण संपन्न राज्य हुआ करता था। सैनिक दृष्टि से भी चंदेरी का किला उस समय का सबसे मज़बूत किला माना जाता था। इसके अलावा रेशम मार्ग चंदेरी से होकर जाता था। इस वजह से चंदेरी पर अपना कब्ज़ा करके बाबर पूरे रेशम मार्ग को और इससे होने वाले व्यापार को अपने अधीन ले सकता था। इस तरह बाबर इस रेशम मार्ग से बहुत ज़्यादा कमाई कर सकता था।
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बाबर ने इस बात की पेशकश मेदिनी राय के सामने भी रखी जिसमें उसने मेदिनी राय के सामने एक शर्त रखी की बाबर कभी चंदेरी पर आक्रमण नहीं करेगा अगर मेदिनी राय अपनी इच्छा से चंदेरी का किला बाबर को सौंप दें और इसके बदले वह बाबर का कोई भी किला अपने पास रख सकता था। इस समझौते को अपनी शान और स्वाभिमान के ऊपर एक आघात समझकर मेदिनी राय ने बाबर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। बाबर तो बस एक बहाने की तलाश में था और उसे वह मिल भी गया।
मेदिनी राय के मना करने की वजह से बाबर को चंदेरी पर आक्रमण करने का एक मौका मिल गया और आखिरकार बाबर की विशाल सेना मेदनी राय को हराने के लिए चंदेरी की तरफ निकल पड़ी।
चंदेरी का युद्ध कब हुआ था? (When did the battle of Chanderi take Place in Hindi?) :
चंदेरी का युद्ध मुग़लों तथा राजपूतों के बीच 29 जनवरी 1528 ईस्वी में हुआ था। बाबर के लिए मेदिनी राय को हराना इतना भी आसान नहीं था क्योंकि चंदेरी का किला ऊंची – ऊंची पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच बना हुआ था।
बाबर के लिए सबसे मुश्किल बात तो यही होती कि किले तक पहुंचा कैसे जाएं? बाबर की सेना में उसके प्रसिद्ध विनाशक तोपखाने थे और हाथियों के विशाल सेना थी जो जंगलों से होकर तो गुज़र जाती लेकिन पहाड़ियों पर चढ़ पाने में असमर्थ हो जाती। बाबर यह भी बहुत अच्छी तरीके से जानता था कि अगर उसकी सेना जंगलों के रास्ते से होकर बाहर निकल भी गई तो बाहर निकलते ही उसकी सेना पर पहले से तैयार होकर बैठे राजपूत हमला कर देते। इस अचानक हुए हमले की वजह से सेना का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो जाता।
वहीं दूसरी तरफ मेदिनी राय अपने महल में बहुत निश्चिंत होकर बैठे थे क्योंकि उन्हें लग रहा था कि बाबर इतने घने जंगलों को पार करके आ भी जाए तो पहाड़ियां चढ़ के किले को घेरना उसके लिए एक बहुत बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। लेकिन मेदिनी राय ने बाबर को समझने में यहां पर बहुत बड़ी भूल कर दी। कोई भी जंगल, कोई भी पहाड़ी बाबर के इरादों के बीच में नहीं आ सकती थी।
उसने अपने सैनिकों से कहकर एक रात में ही एक पूरी पहाड़ी को तोड़कर एक नया रास्ता बनाने का आदेश दिया जिस पर से होकर उसके हाथी और तोपखाने चंदेरी पहुंच कर उस अभेद्य किले को घेर सकें। रातो रात एक पहाड़ को बीच में से काटकर रास्ता बनाना सुनने में बहुत ही अजीब और असंभव लगता है लेकिन अगली सुबह जब मेदिनी राय सूर्य को अर्घ्य देने के लिए अपने महल के झरोखे में गए तो वे पूरी तह भोंचक्के रह गए।
क्योंकि उनकी आंखों के सामने बाबर की पूरी की पूरी विशाल सेना मानो उनके बाहर आने का ही इंतज़ार कर रही थी। मेदिनी राय के पास बाबर का सामना करने के अलावा अब ना कोई उपाय था और ना ही वक़्त। राजपूत वीरों को फिर एक बार अपनी तलवार का शौर्य दिखाना था। इस विदेशी आक्रांता से अपनी मातृभूमि को बचाना था। मेदिनी राय ने अपनी तरफ से चंदेरी का युध्द की घोषणा कर दी।
लेकिन उनकी सेना बाबर की सेना के सामने कुछ भी नहीं थी। बाबर की सेना का आकार देख कर कोई भी यह बता सकता था कि जीत किसकी होगी लेकिन अपने स्वाभिमान, पराक्रम और शौर्य के लिए मशहूर राजपूत बिना लड़े अपनी मातृभूमि किसी विदेशी के हाथों में दे दे यह कभी हो नहीं सकता था।
चंदेरी का युध्द में चंदेरी के सैनिकों ने आखिरी बार अपनी क्षत्राणियों को अलविदा कहा और केसरिया बाना पहन कर चंदेरी का युध्द के लिए रवाना हो गये। चंदेरी का युध्द में एक भयानक लड़ाई हुई और संख्या में थोड़े होने के बावजूद राजपूत वीरों ने बाबर की सेना में जैसे आतंक मचा दिया। राजपूत वीर मुग़ल सेना का एक बड़ा हिस्सा क्षत विक्षत करने में कामयाब तो हो गए लेकिन इनकी संख्या भी धीरे धीरे कम हो रही थी।
बाबर ने चंदेरी का युध्द के अंत में मेदिनी राय को अपना बंधक बना लिया। और बाबर की सारी कल्पनाओं के उलट चंदेरी महल की क्षत्राणियों ने एक विशाल चिता जला कर अग्नि जौहर कर खुद के शरीर को पवित्र आग के हवाले कर के मुगलों को स्तम्भित कर दिया।
ऐसा माना जाता है कि बाबर आखिरकार जब किले के अंदर दाखिल हुआ तब किला पूरी तरह वीरान था। खाने पीने की सारी चीज़ें नष्ट कर दी गईं थी। पूरी तरह से खाली चंदेरी के किले को देख कर बाबर इतना आगबबूला हो गया कि उसने बिना कुछ सोचे समझे पूरे किले को ही तोड़ने का हुक्म दे दिया और खाली हाथ लेकर वह चन्देरी से लौट गया। इस युद्ध में बाबर को सिवाय नुकसान और हिक़ारत के कुछ भी हासिल नहीं हुआ। बाबर की सेना, वक़्त और यहाँ तक पहुँचने में लगाई मेहनत सब बेकार चली गई।
ऐसा था पन्द्रह सौ अट्ठाइस ईसवी में लड़े गए चंदेरी का युध्द (Battle of Chanderi) का आख्यान जिसमें वीरगति को प्राप्त हुए वीर राजपूतों ने राजस्थान के स्वर्णिम और गौरवशाली इतिहास में एक और अमर कहानी जोड़ दी।
हमें आशा है कि आपको हमारी यह कहानी चंदेरी का युध्द (Battle of Chanderi) पसन्द आयी होगी।
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