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बप्पा रावल के जीवन की पूरी जानकारी (Bappa Rawal History in Hindi)

राजस्थान के ऐतिहासिक और गौरवशाली इतिहास के पन्नों से हम आपके लिए सावधानी से चुन-चुन कर वीरता की कहानियां लेकर आते हैं। इसी कड़ी में आज हम आपके लिए लाए हैं मेवाड़ राजवंश के कथित संस्थापक राजा काल भोज, जिन्हें उनके लोगों ने प्रेम और आदरवश बापा नाम दिया जो बाद में बप्पा हो गया। और इस तरह राजा कालभोज इतिहास में हमेशा के लिए बप्पा रावल के नाम से जाने गए। हम आज आपके लिए लाए हैं उन्हीं बप्पा रावल की कुछ सुनी अनसुनी कहानियां।

बप्पा रावल जीवन परिचय (Bappa Rawal Biography in Hindi) :

राजा काल भोज या जिन्हें हम बप्पा रावल के नाम से अधिक जानते हैं। हालांकि बप्पा रावल के बचपन और उनके माता-पिता के बारे में इतिहासकारों में मतभेद है क्योंकि बप्पा रावल की जीवन के बारे में इतिहासकारों को कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि बप्पा रावल ईडर राजघराने के राजकुमार थे जिनके पिताजी का नाम राजा महेंद्र द्वितीय माना जाता है।

वहीं कुछ इतिहासकारों का यह मानना है कि बप्पा रावल के पिता का नाम नागादित्य था। बप्पा रावल राजस्थान के गोहिल राजवंश के संस्थापक महाराज गुहिलादित्य के वंशज माने जाते हैं। गोहिल वंश के राजा स्वयं को भगवान श्री राम के अनुयाई सूर्य के वंशज (सूर्यवंशी) मानते हैं। बप्पा रावल को इनके महल के राजपुरोहित के पास भिजवा दिया गया था जब इनके पिता की रहस्यमई परिस्थितियों में हत्या कर दी गई थी।

बप्पा रावल उस समय सिर्फ तीन वर्ष के थे ऐसा माना जाता है। राजपुरोहित और ब्राह्मणों के बीच में रहने की वजह से वो बहुत धार्मिक प्रवृत्ति के बन गए थे। ऐसा माना जाता है कि काल भोज इन ब्राह्मणों की गायों को चराने के लिए लेकर जाया करते थे। एक दिन उनकी मुलाकात हरित नामक ऋषि के साथ हुई। जिन्होंने यह भविष्यवाणी की काल भोज एक बहुत ही महान शासक और उतने ही महान साम्राज्य के संस्थापक होंगे।

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बप्पा रावल की उपाधियां (Titles of Bappa Rawal in Hindi) :

बप्पा रावल यानी राजा काल भोज को बप्पा की उपाधि उनके विश्वासपात्र भील साथियों ने दी थी ऐसा कहा जाता है कि जब बप्पा रावल तीन साल के थे तब उनके साम्राज्य के ऊपर भीलों ने आक्रमण कर दिया था। लेकिन उनके कुछ विश्वासपात्र भीलों ने उन्हें वहां से निकाल कर छद्म वेश में वहां से जंगल की तरफ ले गए थे। उनके पराक्रम के कारण राजा कालभोज इतिहास में बप्पा रावल के नाम से जाने जाते हैं।

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बप्पा रावल का इतिहास ( Bappa Rawal History in Hindi) :

बप्पा रावल के सलाहकार हरित नामक यह रहस्यमई ऋषि ने उनका जगह-जगह साथ दिया। हरित नामक ऋषि के कहे अनुसार उन्होंने अपनी ताकत को पहचाना और ऋषि के कहे अनुसार मुस्लिम आक्रमणकारियों को भारत से खदेड़ना शुरू किया। उन हरित नामक ऋषि ने बप्पा रावल को अपने अंतिम समय में यह आशीर्वाद दिया कि मेवाड़ पर सदैव उनके वंशजों का पराक्रम रहेगा।

बप्पा रावल, हरित नामक ऋषि से जिस जगह पर मिले थे उसी जगह पर उन्होंने एकलिंग महादेव का प्रसिद्ध मंदिर बनवाया जो बाद में मेवाड़ राजवंश के राजाओं के कुलदेवता बने।

बप्पा रावल से पहले गोहिल वंश में कई शासक हुए लेकिन ऋषि के आशीर्वाद से बप्पा रावल ने अपने इस गोहिल वंश को बहुत नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। लेकिन उन्होंने बाद में खुद को गुहिल वंश से अलग करके मेवाड़ राजवंश नाम से एक नया राजवंश बनाया और आज इतिहास गवाह है कि इसी राजवंश से राजस्थान के सबसे महान वीर योद्धा पैदा हुए। महाराणा कुंभा महाराणा सांगा प्रताप सिंह जैसे अमर योद्धा पैदा हुए।

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बप्पा रावल के युद्ध और उपलब्धियाँ (War and Achievements of Bappa Rawal in Hindi) :

बप्पा रावल के शासनकाल के बारे में इतिहासकारों में मतभेद है। बप्पा रावल के शासन का समय काल चाहे जो भी रहा हो लेकिन उनकी की उपलब्धियां और इनके युद्धों के बारे में इतिहासकारों में कोई दो राय नहीं है।
उनको मुख्यतः उनकी अरबों के साथ हुई लड़ाई में विजय के लिए जाना जाता है। इस प्रमाण मिलते हैं कि अरबों को भारत की भूमि से खदेड़ने के लिए नागभट्ट और कुछ प्रतिहार राजाओं ने ने उन्हें सैनिक सहायता प्रदान की थी। इस तरह राजा काल भोज अपनी संयुक्त सेना की मदद से अरबों को वापस ईरान भगाने में सफल रहे।

राजा काल भोज ने ईरान के एक आक्रमणकारी जिसका नाम हज्जाज था, को कई बार हराया। अरब आक्रमणकारियों पर नजर रखने के लिए उन्होंने भारत के सीमा पर एक सैन्य चौकी बनवाई थी जो आज पाकिस्तान का रावलपिंडी कहलाता है। और इस रावलपिंडी शहर का नाम बप्पा रावल के नाम पर ही रखा गया था

उस समय सिंध पर महाराजा दाहरसेन का शासन हुआ करता था। हज्जाज के बाद उसके दामाद मोहम्मद बिन कासिम ने भारत पर अपने अरब आक्रमणों को जारी रखा। जब उसने देखा दाहरसेन से पार पाना मुमकिन नहीं है तो उसने अपने सैनिकों को महिलाओं के छद्म वेश में दाहर सेन के सैनिक तंबू में भेजा और इस तरह दाहरसेन की मृत्यु हो गई। जब मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर अपना हक जमा लिया तब वहां के आसपास के इलाकों को अपने कब्जे में करना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। वह पाकिस्तान की तरफ से थार के रेगिस्तान को पार करते हुए कई इलाकों को अपने कब्जे में करता हुआ लूटपाट मचा चुका था।

मोहम्मद बिन कासिम के डर से भारत के कई राजा उस से युद्ध करने की स्थिति में नहीं थे। और इस समय Bappa Rawal अपने आसपास के सभी राजाओं को आश्वासन देकर उनकी सेना को अपने साथ मिलाने के लिए राज़ी कर लिया।

इस तरह Bappa Rawal ने अपनी इस मिली जुली विशाल सेना से मोहम्मद बिन कासिम और उसके अरब आक्रांताओं को भारत से बाहर का रास्ता दिखाया और इस तरह उसके द्वारा लूटे गए सारे इलाकों को उन्होंने वापस हासिल कर लिया। और इसी के बाद से उन्होंने अपना अलग मेवाड़ राजवंश बनाया जिसकी सिसोदिया शाखा में पैदा हुए राजाओं को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। इस तरह Bappa Rawal ने भारत से अरब आक्रांताओं से हमेशा के लिए मुक्ति दिलाई।

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बप्पा रावल द्वारा निर्मित दुर्ग (Fort Built by Bappa Rawal in Hindi) :

राजा काल भोज ने अपने शासनकाल में कोई दुर्ग नहीं बनवाया जिस चित्तौड़गढ़ दुर्ग में वह रहते थे उसे उन्होंने उस समय के मौर्य शासक राजा मान को युद्ध में हराकर उस पर अपना कब्जा जमाया था और इस तरह चित्तौड़गढ़ Bappa Rawal की प्रशासकीय राजधानी भी बन गई।

बप्पा रावल की ऊंचाई और वजन (Bappa Rawal Height and Weight in Hindi) :

बप्पा रावल की ऊंचाई और वजन की मामले में लोगों में कई किवदंती प्रचलित हैं। कुछ दंत कथाओं के अनुसार बप्पा रावल की ऊंचाई सामान्य से कई ज्यादा यानी नौ फुट की थी। हालांकि या सुनने में बहुत अतिश्योक्तिपूर्ण लगता है लेकिन अफसोस है कि उनकी की ऊंचाई से संबंधित कोई ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है।

कुछ दंतकथाऐं इतना भी कहती हैं कि Bappa Rawal की तलवार का वजन नौ सौ किलो से भी ज्यादा का था जो सुनने में बहुत ही अजीब लगता है। Bappa Rawal के शरीर के गठन के बारे में भी बहुत सी दंत कथाएं प्रचलित हैं जिनके अनुसार Bappa Rawal पैंतीस हाथ लंबी धोती पहना करते थे।

बप्पा रावल की मृत्यु (Death of Bappa Rawal in Hindi) :

Bappa Rawal से संबंधित लिखित जानकारी इतिहासकारों के पास उपलब्ध नहीं है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि Bappa Rawal की मृत्यु 753 ईसवी में हुई थी जबकि कुछ का मानना है कि उनकी की मृत्यु 810 ईसवी में हुई थी। लेकिन सभी इतिहासकार इस इस मत पर एक राय हैं की बप्पा रावल की मृत्यु के समय उनकी आयु सन्तानवे वर्ष की थी जब उन्होंने नागदा में अपनी अंतिम सांसे ली Bappa Rawal की समाधि पर एक सुंदर छतरी बनी हुई है। इसे Bappa Rawal की समाधि के नाम से जाना जाता है

हमें आशा है आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आई होगी ऐसे ही और ज्ञानवर्धक और रोचक कहानियों के लिए हमारी वेबसाइट को विज़िट करते रहें। मिलते हैं अगली कहानी के साथ
तब तक के लिए
धन्यवाद

Filed Under: Rajasthan History Tagged With: Biography, Rajasthan History

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Comments

  1. Milind Raval says

    May 1, 2022 at 4:54 pm

    We live in Pune, Maharashtra our name is too रावळ but I have been told that our ancestors are Bappa Raval. Can you please explore it.
    Milind Raval
    9561347991.

    Reply

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