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आमेर का किला (Amer Fort History in Hindi)

आमेर का किला – राजस्थान की स्थापत्य कला के अद्वितीय उदाहरणों की जानकारी हासिल करने के लिए शुरू की गई हमारी इस श्रृंखला में अब तक हमने सबसे पहले नागौर का किला, चित्तौड़गढ़ दुर्ग, तारागढ़ दुर्ग के बारे में बात की है। आज की पोस्ट में हम राजस्थान की राजधानी जयपुर में बनाए गए आमेर फोर्ट के बारे में जानकारी हासिल करेंगे। आमेर फोर्ट के साथ ही इसका इतिहास, स्थापत्य कला, विशेषताएं, ऐतिहासिक साक्ष्यों और प्रमुख पर्यटन स्थलों के बारे में भी जानकारी हासिल करेंगे। हमें आशा है कि हमारी यह पोस्ट आपके लिए बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक साबित होगी।

आमेर का किला (Amer Fort in Hindi) :

आमेर दुर्ग गिरी दुर्गों की श्रेणी में आता है। आमेर दुर्ग को प्राचीन काल में अंबरीश, अंबिकापुर, अमरावती और अंबेर के नाम से जाना जाता था। आमेर दुर्ग बहुत लंबे समय तक कछवाहा राजाओं की राजधानी था। कछवाहा वंश के राजाओं ने सूसावत मीणाओं को हराकर ग्यारहवीं शताब्दी में आमेर को अपने अधीन किया। आमेर से पहले इनकी राजधानी दौसा हुआ करती थी। आमेर का किला सात सौ वर्षों से भी ज्यादा तक कछवाहा नरेशों की राजधानी रहा। सत्रह सौ सत्ताईस ईस्वी में सवाई जयसिंह ने यहां जयपुर नामक नगर बसाकर आमेर को अपनी राजधानी बनाया।

आमेर दुर्ग का इतिहास (Amer Fort History in Hindi) :

पन्द्रह सौ बानवे ईस्वी में राजा मान सिंह प्रथम द्वारा बनाया गया आमेर का किला और यहां के महलों को देखकर यह पता चलता है कि इन्हें हिंदू इस्लाम की मिश्रित शैलियों में बनाया गया है। यहां पर शिला माता का मंदिर, जगत शिरोमणि मंदिर और शीशमहल प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। आमेर दुर्ग में प्रसिद्ध मावठा जलाशय और दिलाराम का बाग भी स्थित है। मिर्ज़ा राजा जयसिंह ने सोलह सौ चौसठ ईसवी में इस बगीचे को अपनी देखरेख में बनवाया था। इस बगीचे का एक हिस्सा वर्तमान में संग्रहालय के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

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मिर्ज़ा राजा जयसिंह ने ही आमेर स्थित गणेश पोल को सोलह सौ चालीस ईसवी में बनवाया था। पहली बार यह दुर्ग सत्रह सौ सात ईस्वी में मुगल सल्तनत के अंतर्गत आया। आमेर का किला को मुगल बादशाह बहादुर शाह ने अपने कब्ज़े में लेकर इसका नाम बदलकर मोमीनाबाद रख दिया था। इस अपमान का बदला लेने के लिए महाराजा सवाई जयसिंह ने मेवाड़ और जोधपुर की सेनाओं की मदद से आमेर को पुनः हासिल कर लिया।

आमेर दुर्ग का स्थापत्य (Architecture of Amer Fort In Hindi) :

आमेर दुर्ग के स्थापत्य की बात करें तो यहां की गणेश पोल बहुत ही सुंदर रंग बिरंगी चित्रकारी की गई है। यहां के शीश महल में अलग अलग रंग के कांच के टुकड़ों का इस्तमाल कर के भव्य कलाकृतियां बनाई गई हैं। आमेर दुर्ग में स्थित सुहाग मंदिर में संगमरमर की अत्यंत ही सुंदर नक्काशी की हुई है। सुख मंदिर में हाथी दांत और चंदन का इस्तेमाल करके बेजोड़ कलाकृतियां बनाई गई हैं। आमेर दुर्ग में बने दीवान-ए-खास, दीवान-ए-आम और बारादरी सभी स्थापत्य कला के उत्कृष्ट और अतुल्य उदाहरण हैं।

राजस्थान के दूसरे महलों के विपरीत आमेर दुर्ग के राजप्रासाद इसके दुर्ग की मुख्य दीवार के अंदर समतल ज़मीन पर ना बनाकर पहाड़ी की ढलान पर बनाए गए हैं। और इन अलग-अलग महलों को ही जोड़ कर दुर्ग का रूप दे दिया गया है। कछवाहा वंश के शासकों ने अपने राज्य के शुरू में ही मुगल साम्राज्य की अधीनता स्वीकार कर ली थी इस वजह से आमेर दुर्ग शत्रु सेनाओं के आक्रमणों से हमेशा बचा रहा। आइए अब बात करते हैं अमीर दुर्ग में बनाए गए कुछ खास महलों और राजप्रासादों के बारे में।

आमेर दुर्ग की विशेषता (Features of Amer Fort in Hindi) :

आइये जानते हैं आमेर का किला के कुछ विशेष महलों के बारे में –

शीश महल (Shish Mahal in Hindi) :

शीश महल, आमेर दुर्ग में बने हुए सभी महलों में सबसे बड़ा, सुंदर और भव्य महल है। शीश महल की छत और दीवारें कांच के कई तरह के रंगीन टुकड़ों की जड़ाई से सजाया गया है। शीश महल को कांच के बहुत ही बारीक काम से सजाया गया है। यहां एक हिस्से में रोशनी करने पर हर कांच के टुकड़े में आप के हजारों प्रतिबिंब और परछाइयां बनते हैं जो देखने वाले को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। आमेर दुर्ग में बना शीश महल यहां घूमने आने वालों की पहली पसंद होता है।

सुख मंदिर (Sukh Mandir in Hindi) :

यह मंदिर दीवान-ए-खास के सामने वाले बगीचे के दूसरी तरफ बना हुआ है। यहां के राजा गर्मी के मौसम में इस महल में रहने आते थे। सुख मंदिर यहां के राजाओं का ग्रीष्मकालीन आवास हुआ करता था। सुख मंदिर की एक दीवार में एक बहुत ही सुंदर और आकर्षक झरना बना हुआ है जिसे संगमरमर का इस्तेमाल करके बनाया गया है। इसमें बने मेहराबों में छोटे-छोटे छेद किए गए हैं जहां से होकर ठंडी हवा अंदर आती है।

यश मंदिर (Yash Mandir in Hindi) :

यश मंदिर को आम भाषा में ‘जस मंदिर’ भी बोला जाता है। यश मंदिर को दुर्ग में रहने वाली रानियों के लिए बनाया गया था। इस महल में बैठकर रानियां दीवान-ए-खास में हो रही सारी गतिविधियों को देख पाती थीं।

दीवान-ए-खास (Diwan-i-Khas in Hindi) :

दीवान-ए-खास को जय मंदिर भी कहा जाता है। मिर्ज़ा राजा जयसिंह ने इस जय मंदिर को बनवाया था। इस महल को दुर्ग के सबसे बड़े आंगन की पूर्वी हिस्से में बनाया गया है। आमेर दुर्ग के राजा यहां अपने विश्वासपात्र मंत्रियों, नजदीकी सामंतो और रिश्तेदारों से सलाह मशवरा करने के लिए आते थे।

सौभाग्य मंदिर (Saubhagya Mandir in Hindi) :

सौभाग्य मंदिर को सुहाग मंदिर भी बोला जाता था। यह महल सिर्फ रानियों के मनोरंजन के लिए ही बनाया गया था। सुहाग मंदिर में रानियां हंसी मजाक के साथ-साथ अपना मन बहलाने के लिए आती थीं। सौभाग्य मंदिर में भी एक बहुत सुंदर झरना बनाया गया है।

जलेब चौक (Jaleb Chowk in Hindi) :

आमेर दुर्ग के अंदर आते ही प्रमुख प्रवेश जयपोल के विशाल आंगन में बनाया गया है।

गणेश पोल (Ganesh Pol in Hindi) :

गणेश पोल को महाराजा सवाई जयसिंह ने बनवाया था। आमेर का किला के बाकी महलों के अंदर वाले हिस्से में जाने के लिए गणेश पोल वाले रास्ते का इस्तेमाल किया जाता है।

दीवान-ए-आम (Diwan-i-Aam in Hindi) :

दीवान-ए-आम वह जगह थी जहां राजा का आम दरबार लगता था। इस महल में राजा सामान्य लोगों से मिलते और उनसे बातें करते थे। दीवान-ए-आम का निर्माण मिर्ज़ा राजा जयसिंह ने करवाया था।

आमेर दुर्ग के बाकी महलों की बात करें तो महाराजा मानसिंह का महल और रनिवास भी बहुत ज़्यादा प्रसिद्ध है। इन के महलों के पीछे वाले हिस्से में महाराजा पृथ्वीराज द्वारा बनाई गई ‘रानी बाला बाई की साल’ भी बहुत फेमस है। आमेर का किला में शीला देवी का मंदिर जिसे महिषमर्दिनी मंदिर भी कहा जाता है, नरसिंह जी का मंदिर, अंबिकेश्वर महादेव मंदिर, जगत शिरोमणि मंदिर भी पाए जाते हैं।

आमेर का किला में जगत शिरोमणि मंदिर का निर्माण महाराजा मानसिंह की रानी कनकावती ने अपने दिवंगत बेटे जगत सिंह की याद में बनवाया था। इसी मंदिर में भगवान कृष्ण की काले पत्थर से बनी हुई वह मूर्ति विराजमान है जिसके लिए कहा जाता है कि यह वही मूर्ति है जिसकी पूजा मीरा बाई चित्तोड़ में किया करती थी। आमेर दुर्ग को जून, दो हज़ार तेरह में यूनेस्को के द्वारा विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल किया गया था।

आपको शायद नहीं पता होगा लेकिन भारत का एकमात्र तोपें बनाने का कारखाना जयपुर के इसी आमेर का किला में बनाया गया था और क्या आपको पता है एशिया की सबसे बड़ी तोप कौन सी है?
आपको जानकर हैरानी होगी कि एशिया की सबसे बड़ी तोप भी आमेर दुर्ग में है रखी हुई है जिसे ‘जयबाण’ कहा जाता है। इस विशाल तोप की नाल बीस फुट लंबी है।

आमेर दुर्ग तक कैसे पहुंचे? (How to Reach Amer Fort in Hindi) :

आमेर का किला जयपुर के मुख्य आबादी वाले इलाकों से ग्यारह किलोमीटर दूर स्थित है। जयपुर राजस्थान की राजधानी है इसलिए यहां पहुंचने के लिए आपको राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह की फ्लाइट्स आसानी से मिल जाएंगी।
अगर आप ट्रेन से जयपुर आना चाहते हैं तो जयपुर जंक्शन के लिए आपको लगभग सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों से ट्रेन मिल जाएगी
बस से सफर करने वालों के लिए यहां पर रोडवेज और प्राइवेट दोनों तरह की बस हर समय उपलब्ध है।

आपको आमेर का किला जाने के लिए ऑटो रिक्शा, कैब, टैक्सी और बसें अजमेरी रोड और एमआई रोड से आसानी से मिल जाएंगी। अगर आप एक लिमिटेड बजट पर आमेर का किला घूमने जा रहे हैं तो आप लोकल बस भी ले सकते हैं जिसमें सामान्य किराया पन्द्रह रुपये और एसी वाली बस में पच्चीस रुपये तक हो सकता है जो आपको पुराने जयपुर में हवा महल के पास से मिल जाएंगी।

आमेर का किला एक पहाड़ की चोटी पर बना है तो ऊपर तक पहुंचने के लिए आप या तो पैदल जा सकते हैं या आप हाथी की सवारी कर सकते हैं। अगर आप पहली बार आमेर का किला जा रहे हैं तो हम आपको यही सलाह देना चाहेंगे कि अपनी इस यात्रा को और ज्यादा रोमांचक बनाने के लिए आप हाथी की सवारी जरूर करें।
आमेर का किला यात्रियों के लिए सुबह दस बजे से लगाकर शाम के पांच बजे तक खुला रहता है जिसमें भारतीय पर्यटकों के लिए सौ रुपये प्रति व्यक्ति और विदेशी पर्यटकों के लिए दो सौ पचास रुपये प्रति व्यक्ति रखी गई है।

आमेर का किला कहां है?

आमेर का किला राजस्थान की राजधानी जयपुर में है।

शीश महल कहां है?

शीश महल राजस्थान के जयपुर में स्थित आमेर दुर्ग के सबसे सुंदर महल का नाम है।

जगत शिरोमणि मंदिर कहां है?

जगत शिरोमणि मंदिर जयपुर के आमेर दुर्ग में है।

जयपुर किसने बसाया?

सवाई जयसिंह ने 1733 में जयपुर नगर बसा कर इसे अपनी राजधानी बनाया था।

एशिया की सबसे बड़ी तोप कौन सी है?

एशिया की सबसे बड़ी तोप का नाम जयबाण है जिसे जयपुर के आमेर का किला में रखा गया है।

जयबाण क्या है?

जयबाण एशिया की सबसे बड़ी तोप है जिसे जयपुर के आमेर दुर्ग के तोपखाने में बनाया गया था।

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