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अजमेर का किला (Ajmer Fort History in Hindi)

अजमेर का किला – राजस्थान के गौरवशाली इतिहास और ऐतिहासिक इमारतों को जानने की हमने जो श्रंखला शुरू की है उसमें हमने सबसे पहले नागौर के किले के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल की थी। नागौर दुर्ग के बारे में जानने के लिए इस लिंक पर क्लिके करें। इसी श्रंखला की दूसरी कड़ी में आज हम आपके लिए लेकर आए हैं अजमेर दुर्ग से जुड़ी जानकारी। हमें आशा है यह पोस्ट भी आपके लिए बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक साबित होगी।

अजमेर का किला (Ajmer Fort in Hindi) :

अजमेर का किला राजस्थान के अजमेर ज़िले में स्थित है। अजमेर का किला गिरी दुर्ग की श्रेणी में आता है। गिरी दुर्ग का मतलब होता है ऐसा किला जो एक ऊंची पहाड़ी को काटकर और उसे समतल करने के बाद बनाया गया हो। गिरी दुर्ग में पानी की व्यवस्था भी उचित तरीके से की जाती है। राजस्थान में कई सारे दुर्ग गिरी दुर्गों की श्रेणी में आते हैं और अजमेर का किला भी गिरी दुर्गों में से एक है।

अजमेर दुर्ग का इतिहास (History of Ajmer Fort in Hindi) :

अजमेर दुर्ग को तारागढ़, गढ़ बिठली और अजयमेरु दुर्ग भी कहा जाता है। अजमेर दुर्ग को एक चौहान शासक अजय पाल ने तारागढ़ की पहाड़ियों में से एक बिठली नामक पहाड़ी पर सातवीं शताब्दी में निर्मित करवाया था इसलिए इस दुर्ग को गढ़ बिठली के नाम से भी जाना जाता है। चौहान शासक अजय राज ने अजमेर नामक शहर की स्थापना भी इसी दुर्ग की तलहटी में ग्यारह सौ तेरह ईसवी में की थी। मेवाड़ वंश के राणा रायमल के पुत्र युवराज पृथ्वीराज ने इस दुर्ग के कुछ हिस्सों का निर्माण करवाया था। उन्होंने इस किले का नामकरण अपनी वीरांगना पत्नी तारा देवी के नाम पर ‘तारागढ़’ किया।

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अंतिम हिन्दू सम्राट कहे जाने वाले पृथ्वीराज चौहान तारागढ़ की पहाड़ी के ठीक नीचे बनी एक अत्यंत प्राचीन गुफा जिसका नाम शिशाखान था, इससे होकर फ़ाईसागर के पास चामुंडा माता मंदिर की पहाड़ियों पर दर्शन करने जाया करते थे।

जब मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के पुत्रों के बीच अगला उत्तराधिकारी बनने के लिए धौलपुर में युद्ध चल रहे थे तब शाहजहाँ की शाही सेना इस युद्ध में हार गई और शाहजहाँ के पुत्र दाराशिकोह ने अपनी जान बचाने के लिए अजमेर के इसी किले में छिपकर अपनी जान बचाई थी। दारा शिकोह को पूरी तरीके से हराने के लिए औरंगजेब ने दौराई नामक जगह पर दाराशिकोह को युद्ध के लिए ललकारा।

दाराशिकोह पराजित हुआ और अजमेर का किला औरंगजेब के अधिकार में आ गया। अजमेर का किला राजस्थान का जिब्राल्टर भी कहा जाता है। इस दुर्ग की सामरिक स्थिति इतनी मजबूत थी कि औरंगजेब ने महाराणा प्रताप को हल्दीघाटी के युद्ध में हराने के लिए इसी किले से अपने सारे सैनिक अभियान संचालित किए थे।

अजमेर दुर्ग के ऐतिहासिक साक्ष्य (Historical Evidences of Ajmer Fort in Hindi) :

अजमेर किले का वर्णन शेर शाह की आत्मकथा तारीख-ए-दाऊदी में मिलता है। अजमेर किले पर बहुत सारे सैन्य अभियान और आक्रमण भी किए गए। सन एक हज़ार चौबीस में महमूद गजनवी ने अजमेर दुर्ग पर आक्रमण करके इसके चारों तरफ घेरा डाल दिया लेकिन इसका कुछ हल निकलता ना देख में महमूद गजनबी ने अपना घेरा हटा लिया।

तराइन के द्वितीय युद्ध में मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया। पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद अजमेर दुर्ग पर मोहम्मद गौरी ने अपना अधिकार कर लिया। मोहम्मद गौरी ने अपने सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को यहां का कार्यभार सौंपा। महाराणा कुंभा के दौरान अजमेर फोर्ट पर मेवाड़ राजवंश का अधिकार हो गया था।

गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने पन्द्रह सौ तैतीस ईसवी में सिसोदिया राजवंश के शासकों को हराकर इस दुर्ग को अपने कब्जे में कर लिया। कुछ समय बाद जोधपुर के राव मालदेव ने भी इस किले को अपने राज्य में मिलाया और आखिरकार शेरशाह सूरी के कब्जे में आने के बाद अजमेर दुर्ग पर मुगल सल्तनत का अधिकार हो गया। लेकिन मुग़ल इसे ज्यादा वक्त तक अपने अधिकार में ना रख सके क्योंकि जोधपुर के राजाओं ने इसे फिर से अपने अधीन ले लिया।

जोधपुर के महाराजा विजय सिंह को सत्रह सौ छप्पन ईसवी में इस दुर्ग को युद्ध हारने पर हर्जाने के तौर तारागढ़ को मराठा सरदार सिंधिया को देना पड़ा था। आखिरकार अजमेर दुर्ग पर आक्रमणों का सिलसिला तब खत्म हुआ जब अंग्रेजों ने अजमेर फोर्ट पर अट्ठारह सौ अट्ठारह ईसवी अपना कब्जा कर लिया और भारत की आजादी तक अजमेर का किला अंग्रेजों के ही कब्जे में रहा।

अजमेर दुर्ग की विशेषता (Features of Ajmer Fort in Hindi) :

कुछ इतिहासकारों के अनुसार अजमेर का किला भारत में बना पहला गिरी दुर्ग था। अजमेर का किला चौहान शासकों की प्रमुख राजधानी रहा है। चौहान शासकों के बाद अजमेर कभी भी किसी रियासत की राजधानी नहीं बन पाया। कुछ इतिहासकार अजमेर दुर्ग को दूसरा ज़िब्राल्टर भी कहते हैं। राजस्थान राज्य सरकार ने अजमेर कोर्ट में एक पृथ्वीराज स्मारक बनाया है जिसमें पृथ्वीराज चौहान की आदमकद प्रतिमा घोड़े पर सवार है। अजमेर दुर्ग राजस्थान के लोक संगीत का भी एक अहम हिस्सा रहा है।

अजमेर जिले से जुड़ा हुआ एक प्रसिद्ध दोहा इस प्रकार है –

गौड़ पँवार सिसोदिया, चहुवाणां चितचोर।
तारागढ़ अजमेर रो, गर्वीजै गढ़ चोर।।

अजमेर किला का स्थापत्य (Architecture of Ajmer Fort In Hindi) :

बात करें अजमेर दुर्ग के स्थापत्य की तो यहां के मुख्य दरवाज़े जिनका नाम हाथीपोल, विजयपोल, फूटा दरवाजा, भवानीपोल, अरकोट दरवाजा, लक्ष्मीपोल आदि प्रमुख हैं। अजमेर दुर्ग की प्राचीर में चौदह बुर्ज़ हैं इनमें से दौराई बुर्ज़, इब्राहिम शहीद की बुर्ज़, जाणुनायक की बुर्ज़, इमली बुर्ज़, पिपली बुर्ज़, खिड़की बुर्ज़, बन्दारा बुर्ज़, फतेह बुर्ज़, सैयद बुर्ज़, आर पार का अत्ता, हुसैन बुर्ज़ आदि सामरिक महत्व की हैं।

अजमेर दुर्ग में बड़े बड़े तालाब भी आकर्षण का केंद्र हैं जिनमें गोल झालरा, नाना साहब का झालरा और इब्राहिम का झालरा प्रमुख जलाशय हैं। अजमेर फोर्ट के अंदर ही मीरा साहब नामक एक प्रसिद्ध मुस्लिम संत की दरगाह भी मौजूद है। इस दरगाह का निर्माण अजमेर फोर्ट के पहले गवर्नर मीर सैयद हुसैन ने करवाया था। मीर सैयद हुसैन ने बारह सौ दो ईसवी में अजमेर फोर्ट की रक्षा करते समय वीरगति पाई। और तो और इस किले में घोड़े की मजार भी है।

अजमेर दुर्ग कैसे पहुंचे? (How to reach Ajmer Fort in Hindi) :

अगर आप अजमेर का किला घूमने का मन बना रहें हैं और यह जानना चाहते हैं कि अजमेर किला तक कैसे पहुंचा जाए तो हम आपको बताते हैं कि आप ट्रैन, हवाई जहाज और बस से अजमेर किला पहुंच सकते हैं।
ट्रैन से जाने पर सबसे नज़दीकी अजमेर रेलवे स्टेशन पड़ेगा जहां से अजमेर का किला सिर्फ डेढ़ किलोमीटर दूर है।

अगर आप हवाई जहाज़ से जा रहें हैं तो आप को सबसे नजदीकी एयरपोर्ट किशनगढ़ एयरपोर्ट पर उतरना पड़ेगा। यह अजमेर में ही है। यहां से आप तारागढ़ किला के लिए कैब ले सकते हैं। तारागढ़ यहां से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
और अगर आप तारागढ़ घूमने के लिए बस से यात्रा करने की सोच रहे हैं तो अजमेर, आसपास के सारे प्रमुख शहरों से अच्छी तरीके से जुड़ा हुआ है तो आपको यहां आराम से बस मिल जाएगी।

अजमेर का किला किसने बनवाया?

अजमेर का किला चौहान शासक अजय पाल ने सातवीं शताब्दी में बनवाया।

तारागढ़ किला कहां है?

तारागढ़ किला राजस्थान राज्य के अजमेर ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है।

तारागढ़ किला घूमने के लिए कितनी फीस देनी पड़ती है?

तारागढ़ किला घूमने के लिए आपको किसी भी तरह का कोई प्रवेश शुल्क नहीं देना पड़ता। यह भारतीय और विदेशी दोनों तरह के नागरिकों के लिए निशुल्क है।

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