हमने बचपन से ही भगवान शिव की बहुत सारी तस्वीरें देखी है और उन तस्वीरों में एक बात सबसे कॉमन है वो है भगवान शिव की सिर पर चाँद।
लेकिन क्या आप जानते हैं? क्यों रहता है शिव जी के सिर पर विराजमान आधा चाँद?
इस बात को लेकर हमारे हिन्दू धर्मशास्त्रों और पुराणों में दो कहानियों का उल्लेख मिलता है। आज हम आपको इन दोनों पौराणिक कथाओं के बारे में आपको विस्तार सेबताएंगे तो इस पोस्ट को अंत तक ज़रूर पढ़े।
क्यों रहता है शिव जी के सिर पर विराजमान आधा चाँद :
भगवान शिव की कथा के अनुसार जब सारे देवता और राक्षस मिल कर हमारी आकाशगंगा का मंथन कर रहे थे, तब उसमें से चौदह रत्न निकले थे। चौदह रत्न में से एक था, हलाहल नामक विष। जिसको लेने से देवताओं और राक्षसों दोनों ने साफ़ मना कर दिया क्युकी जो भी उस विष को पियेगा उसकी मौत निश्चत थी। तो इस समस्या के समाधान के लिए देवों के देव भगवान शिव आगे आए और समुद्र मंथन से निकले उन चौदह रत्न में से एक उस हलाहल विष को हमारी इस सृष्टि को बचाने के लिए पी गए।
लेकिन उस खतरनाक विष को पीने के बाद भगवान शिव का पूरा शरीर बहुत ही तेज गति से गर्म होने लग गया। भगवान शिव को इस हालत में देखकर वहां उपस्थित सारे देवतागण बहुत परेशान हो गए। उन्हें भगवान शिव के तपते शरीर को देखकर ये चिंता होने लगी कि कहीं यह हलाहल विष भगवान शिव के शरीर के ऊपर कोई गहरा दुष्प्रभाव न छोड़ दे।
भगवान शिव की इस हालत को देखकर चन्द्र देव ने शिव भगवान से प्रार्थना कर के कहा कि अगर भगवान शिव मुझे अपने सर पर धारण कर लेंगे तो उनके शरीर को शीतलता मिलेगी और उनका शरीर धीरे – धीरे ठंडा हो जाएगा और इस हलाहल विष का प्रभाव भी कम होने लगेगा।
लेकिन भगवान शिव ने चंद्र देव को अपने सर पर बैठाने से साफ़ मना कर दिया, क्योकिं भगवान शिव जानते थे कि अगर चन्द्र देव उनके सर पर आकर बैठे तो उनके शरीर की सारी गर्मी तो समाप्त हो जाएगी और ऐसा भी हो सकता है कि इस विष का प्रभाव चंद्र देव पर भी हो जाए और वो इस विष का दुष्प्रभाव सहन नहीं कर पाए।
लेकिन जैसे – जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे भगवान शिव का शरीर भी और ज्यादा गर्म होने लगा। देवताओं के बहुत विनती करने के बाद अंततः भगवान शिव चंद्र देव को अपनी जटा पर धारण करने को राज़ी हो गए। भगवानT शिव ने चन्द्र देव को अपने सर पर धारण कर लिया और उनके शरीर की गर्मी धिरे धीरे कम होने लगी।
उस हलाहल विष का प्रभाव तो भगवान शिव के शरीर से तो उतर गया। लेकिन उनका गला हमेशा के लिए नीला ही रह गया। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि उस समय से भगवान शिव ने चन्द्र देव को अपने सर पर धारण किया हुआ है और इस चन्द्र के प्रभाव से भगवान शिव पूरी धरती को शीतलता प्रदान कर रहे हैं।
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भगवान शिव की कथा के अनुसार जिसका उल्लेख शिव पुराण में भी मिलता है, राजा दक्ष की सत्ताईस कन्याऐं थी। राजा दक्ष ने अश्विनी समेत अपनी सत्ताईस कन्याओं का विवाह चंद्र देव से करवा दिया।
लेकिन कुछ समय बीतने के बाद चंद्र देव राजा दक्ष की एक कन्या जिसका नाम रोहिणी था, उसके साथ सबसे ज़्यादा समय व्यतीत करने लगे। जब यह बात राजा दक्ष के पास पहुंची कि चन्द्र देव उनकी एक पुत्री रोहिणी पर पूरी तरह से मोहित हो गए हैं और वो अपने पूरा समय बस रोहिणी के साथ ही व्यतीत करते है। चंद्रदेव अपनी अपनी दूसरी पत्नियों के साथ बहुत बिलकुल समय व्यतीत नहीं करते हैं।
तो राजा दक्ष अपने दामाद चन्द्र देव को समझाने के लिए गए। चन्द्रदेव ने अपने ससुर राजा दक्ष की बातो को बहुत ध्यान से सुना और चंद्रदेव ने वचन दिया कि अब आगे से आपके पास कोई भी शिकायत नहीं आएगी।
राजा दक्ष के जाने के बाद चंद्र देव अपनी सारी पत्नियों के साथ बराबर समय देने लगे और उनकी पत्नियों की तरफ से आने वाली शिकायतें भी खत्म हो गईं। लेकिन कुछ समय के बाद फिर से चंद्रदेव रोहिणी के साथ ज्यादा समय व्यतीत करने लगे।
यह बात फिर से राजा दक्ष को पता चली। इस बार राजा दक्ष चंद्रदेव पर अत्यंत क्रोधित हो गए। जब राजा दक्ष चंद्र देव से मिलने गये और उन्हें बोले कि “मैं आपको एक बार पहले भी समझा चूका हूँ, लेकिन मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि आप पर उस बात का कोई असर नहीं हुआ है। आपने मेरी बात ना मान कर मेरा अपमान किया है।
राजा दक्ष को इतने गुस्से में देख कर चन्द्रदेव बुरी तरह घबरा गए और दक्ष को प्यार से समझाने लगे कि आखिर उनके और उनकी पत्नियों के बीच क्यों हुआ था। लेकिन राजा दक्ष कहाँ किसी की सुनने वाले थे। उन्होंने गुस्से से आगबबूला होकर चंद्र देव को श्राप दे दिया कि आज के बाद से तुम्हें क्षय रोग हो जाएगा। यह बात कह कर दक्ष वहां से चले गए और चंद्र देव बहुत चिंतित हो गए।
राजा दक्ष के वहां से जाते ही उनके श्राप के प्रभाव की वजह से चन्द्रदेव को क्षय रोग हो गया। चन्द्र देव बुरी तरीके से बीमार पड़ गए और इस रोग की वजह से उनकी आँखों की रौशनी भी धीरे – धीरे चली गयी। चंद्र देव की हालत बिगड़ती ही चली गई। यह देख कर सारे देवता गण परेशान हो गए। उन्होंने ब्रह्म देव के पास जाकर चंद्र देव की बीमारी का इलाज पता करने की बात सोची। सारे देवता ब्रह्म देव के पास गए और उनसे विनती भरे स्वर में बोले की हे ब्रह्म देव! चंद्र देव की हालत बिगड़ती ही जा रही है। आप इसका कुछ उपाय बताइये।
तब ब्रह्म देव ने सारे देवताओं से कहा कि चन्द्रदेव की बीमारी का बस एक ही उपाय है और वह यह है कि चन्द्र देव को सोमनाथ नामक जगह पर जाकर तपस्या करनी पड़ेगी तभी चन्द्र देव राजा दक्ष द्वारा दिए गए श्राप से मुक्त हो सकेंगे।
चंद्रदेव ने सोमनाथ जगह पर जाकर भगवान शिव की तपस्या करनी शुरू कर दी। चंद्रदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने चन्द्रसेन कहा कि जिस व्यक्ति ने आपको श्राप दिया है वो एक बहुत ही महान राजा है। उनका श्राप तो मैं वापस नहीं ले सकता। लेकिन इसका एक हल हम ज़रूर निकाल सकते हैं। भगवान शिव उपाय बताते हुए चन्द्र देव को कहते हैं कि एक महीने में दो पक्ष होते हैं। एक होता है कृष्ण पक्ष और दूसरा है शुक्ल पक्ष। महीने के पन्द्रह दिन यानी एक पक्ष के दौरान आपका तेज हर रात के साथ ही घटता जाएगा।
लेकिन अगले पन्द्रह दिन यानी महीने के दूसरे पक्ष में आपका तेज और आपकी शक्ति हर गुज़रती रात के साथ और ज़्यादा बढ़ती जाएगी। और इस तरह भगवान शिव के आशीर्वाद से चन्द्र देव धीरे धीरे बिल्कुल ठीक हो गए और चन्द्र देव के सभी कष्टों को भगवान शिव के आशीर्वाद से मुक्ति मिली।